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    दूसरों का पसीना सूंघने से कम हो सकती है सामाजिक चिंता, अध्ययन में हुआ खुलासा
    पसीना सूंघने से सामाजिक चिंता को सकेगी कम

    दूसरों का पसीना सूंघने से कम हो सकती है सामाजिक चिंता, अध्ययन में हुआ खुलासा

    लेखन गौसिया
    Mar 26, 2023
    04:26 pm

    क्या है खबर?

    सामाजिक चिंता यानी सोशल एंग्जायटी एक ऐसी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें लोग सामाजिक स्थितियों के बारे में अत्यधिक चिंता करते हैं।

    इस समस्या से पीड़ित रोगी अक्सर लोगों से मिलना, बाते करना और दुनिया के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ महसूस करता है। हालांकि, अब इसका इलाज शरीर के पसीने से किया जा सकता है।

    जी हां, एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि दूसरों के पसीने को सूंघने से सामाजित चिंता का इलाज किया जा सकता है।

    अध्ययन

    शोध के लिए अंडरआर्म्स के पसीने का किया गया इस्तेमाल

    स्वीडन के करोलिंस्का संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है और इससे वह खुद भी थोड़े हैरान हैं।

    शोधकर्ताओं का मानना है कि मानव शरीर की गंध हमारी खुशी या चिंता जैसी भावनात्मक स्थिति को बता सकती है। इसके अलावा इसे सूंघने वाले अन्य लोगों में भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं प्राप्त होती हैं।

    इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ स्वयंसेवकों को खुशी और डरावनी फिल्म देखते वक्त उनके अंडरआर्म्स के पसीने को इकट्ठा करने को कहा।

    शोध

    सामाजिक चिंता से पीड़ित महिलाओं पर किया गया शोध

    अध्ययन में आगे बताया गया कि इस शोध में 48 महिलाएं भी शामिल थीं, जो सामाजिक चिंता से पीड़ित थीं।

    उनमें से कुछ महिलाएं स्वच्छ हवा के संपर्क में थीं, जबकि अन्य महिलाओं ने पसीने के संपर्क में रहकर मांइडफुलनेस सत्र पूरा किया।

    इसके बाद जो महिलाएं पसीने के संपर्क में थीं, उनमें सामाजित चिंता में 39 प्रतिशत की कमी देखी गई।

    वहीं बगैर पसीने के संपर्क में रहने वाली महिलाओं में सिर्फ 17 प्रतिशत की कमी ही देखी गई।

    अध्ययन

    पसीने को सूंघने से अधिक प्रभावी थी मांइडफुलनेस- अध्ययन

    अध्ययन से पता चला है कि शरीर के पसीने को सूंघने से मांइडफुलनेस अधिक प्रभावी थी।

    वहीं शोधकर्ताओं का मानना है कि इंसान के पसीने में कुछ तो ऐसा है जो इस प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है। फिलहाल इसकी पुष्टि करने के लिए शोधकर्ताओं को इस पर अधिक काम करने की आवश्यकता है।

    इसके अलावा शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्हें लगा था कि स्वयंसेवकों की भावनाओं के आधार पर उपचार पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

    बयान

    प्रमुख शोधकर्ता एलिसा विग्ना ने अध्ययन के बारे में क्या कहा?

    रिपोर्ट्स के मुताबिक, करोलिंस्का संस्थान की प्रमुख शोधकर्ता एलिसा विग्ना ने कहा, "किसी के खुश होने पर पसीने का उत्पादन वैसा ही होता है जैसा डरने पर होता है। इसलिए पसीने में इंसानी फेरोमोन से जुड़ी कुछ चीजें हो सकती हैं, जो उपचार की प्रतिक्रिया को प्रभावित करती है।"

    उन्होंने आगे कहा कि ऐसा हो सकता है कि किसी और की उपस्थिति के संपर्क में आने से यह प्रभाव पड़ता है, लेकिन उन्हें अभी इसकी पुष्टि करने की आवश्यकता है।

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