#NewsBytesExplainer: डीपफेक क्या है, इसकी पहचान और इससे बचाव कैसे करें?
अभिनेत्री रश्मिका मंदाना के फर्जी वायरल वीडियो ने डीपफेक को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। इस वीडियो ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टेक्नोलॉजी के अनियमित एक्सेस के खतरों को भी उजागर किया है। AI डीपफेक से तैयार वीडियो में एक अन्य महिला के शरीर पर रश्मिका का चेहरा दिखाया गया है। रश्मिका ने इसे अपने साथ ही अन्य लोगों के लिए भी डरावना बताया। आइये जानते हैं कि डीपफेक क्या है और यह कैसे काम करती है।
क्या है डीपफेक टेक्नोलॉजी?
AI डीपफेक एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसमें AI का उपयोग कर वीडियो, तस्वीरों और ऑडियो में छेड़छाड़ की जा सकती है। इसमें AI से नकली या फर्जी कंटेंट तैयार किया जाता है। इसकी मदद से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी और का चेहरा लगाकर उसे बदला जा सकता है। कह सकते हैं कि इस टेक्नोलॉजी से AI का इस्तेमाल कर फर्जी वीडियो बनाये जा सकते हैं, जो देखने में असली लगते हैं, लेकिन होते फर्जी हैं।
वर्ष 2017 में प्रचलन में आया डीपफेक शब्द
द गार्जियन के मुताबिक, डीपफेक शब्द का प्रचलन 2017 में शुरू हुआ, जब एक रेडिट यूजर ने अश्लील वीडियो में चेहरा बदलने के लिए इसका उपयोग किया था। डीपफेक के जरिए तैयार वीडियो में किसी शख्स को ऐसी बातें बोलते हुए दिखाया जा सकता है, जो उसने कभी कही ही नहीं। इसके जरिए बराक ओबामा को डोनाल्ड ट्रंप को 'मूर्ख' कहते हुए, मार्क जुकरबर्ग को लोगों के डाटा पर कंट्रोल होने का दावा करते हुए दिखाया गया।
राजनीति और प्रोपेगैंडा के लिए भी इस्तेमाल होती है डीपफेक टेक्नोलॉजी
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत अश्लील कंटेंट बनाने से हुई थी। डीपट्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में ऑनलाइन पाए गए डीपफेक वीडियो में 96 प्रतिशत अश्लील कंटेंट था। बीते कुछ सालों में राजनीति और प्रोपेगैंडा के लिए डीपफेक का इस्तेमाल खूब हो रहा है। चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए कई तरह के डीपफेक कंटेंट प्रसारित करते हैं। इसी तरह 2 देशों के युद्ध के बीच डीपफेक कंटेंट प्रसारित होता है।
ऐसे काम करती है डीपफेक टेक्नोलॉजी
डीपफेक कंटेंट तैयार करने के लिए कुछ प्रक्रियाओं और 2 एल्गोरिदम का उपयोग किया जाता है। इनमें एक एल्गोरिदम डिकोडर और दूसरा एनकोडर होता है। डिकोडर यह पता लगाने के लिए कहता है कि कंटेंट असली है या नकली। डिकोडर कंटेंट को असली या नकली के रूप में पहचानता है और उस जानकारी को एनकोडर को भेज देता है। चेहरा बदलने के लिए एनकोडेड तस्वीरों को गलत डिकोडर में फीड करना होता है।
ऐसे करें डीपफेक वीडियो की पहचान
कुछ खास बिंदुओं पर ध्यान रखते हुए डीपफेक वीडियो, तस्वीर आदि कंटेंट की पहचान कर सकते हैं। इनमें सबसे पहले चेहरे की पोजिशन का ध्यान देना होगा। डीपफेक टेक्नोलॉजी से तैयार वीडियो में चेहरे और आंख की पोजिशन सामान्य नहीं होगी। इसके जरिए तैयार वीडियो में हो सकता है कि दिख रहे शख्स ने बहुत देर से पलक न झपकाई हो। डीपफेक कंटेंट में कलरिंग भी सामान्य से थोड़ा अलग दिखेगी।
ये हैं डीपफेक से बचाव के तरीके
डीपफेक से बचाव के लिए सोशल मीडिया प्राइवेसी सेटिंग्स में बदलाव करें और अतिरिक्त सुरक्षा के लिए मजबूत और यूनिक पासवर्ड का उपयोग करें। साथ ही अधिक सुरक्षा के लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को चालू करें। संवेदनशील जानकारी या पर्सनल मीडिया को ऑनलाइन शेयर करने से पहले एक बार जरूर सोचें। अपने सोशल मीडिया अकाउंट को पब्लिक करने के बजाय प्राइवेट रखने पर विचार करें। किसी भी डीपफेक कंटेंट की रिपोर्ट संबंधित प्लेटफॉर्म और सरकारी अथॉरिटी से करें।
डीपफेक के लिए कानून
IT एक्ट की धारा 66D धोखाधड़ी या किसी शख्स का मजाक उड़ाने या उसे फ्रॉड की तरह दिखाने के लिए संचार उपकरणों या कंप्यूटर संसाधनों के दुरुपयोग से संबंधित है। IT एक्ट की धारा 66E इंटरनेट पर तस्वीरों को प्रकाशित या प्रसारित करने पर किसी भी गोपनीयता के उल्लंघन से जुड़ी है। डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम, 2023 में व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डाटा के उल्लंघन पर दंड देने का प्रावधान है।
डीपफेक वीडियो से सावधान रहने की जरूरत
भारत में ऐसे वीडियो और खतरनाक साबित हो सकते हैं। यहां ज्यादातर लोग डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं और वो इंटरनेट पर आई किसी भी चीज को सच मान सकते हैं। हालिया वर्षों में लोगों ने कई मौकों पर सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों को सच मानकर उन पर भरोसा किया था। 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेता मनोज तिवारी का डीपफेक वीडियो आया था। ऐसे में इससे चुनाव प्रभावित होने का भी खतरा है।