क्या होते हैं डीपफेक वीडियो और ये कैसे खतरनाक साबित हो सकते हैं?
दिल्ली विधानसभा चुनावोें में प्रचार के लिए भारतीय जनता पार्टी ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) से बने 'डीपफेक' वीडियो का सहारा लिया था। भारत में यह पहली बार था, जब चुनाव प्रचार में ऐसे वीडियो इस्तेमाल किए गए। भाजपा की तरफ से जारी वीडियो में मनोज तिवारी के वीडियो पर दो अलग-अलग भाषाएं जोड़कर व्हाट्सऐप पर शेयर किया गया। एक वीडियो में तिवारी अंग्रेजी भाषा और दूसरे में हरियाणवी लहजे में बात करते हुए नजर आ रहे हैं।
क्या होते हैं डीपफेक वीडियो?
आपने मोबाइल की कई कैमरा ऐप्स में देखा होगा कि किसी फोटो पर चेहरा बदला जा सकता है। इनमें फोटो असली जैसे दिखते हैं, लेकिन नकली होते हैं। डीपफेक वीडियो भी ऐसे वीडियो होते हैं जो AI का इस्तेमाल करके डिजिटल तरीके से तैयार या एडिट किये जाते हैं। इनमें एक वीडियो का चेहरा उठाकर दूसरे वीडियो में लगा दिया जाता है, लेकिन दिखने में ये वीडियो बिल्कुल असली जैसे होते हैं।
AI का एक हिस्सा है डीप लर्निंग
डीपफेक शब्द 'डीप लर्निंग' और 'फेक' से मिलाकर बना है। डीप लर्निंग का इस्तेमाल कर तैयार किए गए नकली वीडियो ही डीपफेक वीडियो होते हैं। 'डीप लर्निंग' AI का हिस्सा है, जिसमें अल्गोरिदम अपने आप चीजों को सीखकर खुद निर्णय लेते हैं। लॉस एंजेल्स की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर विल्लासेनोर का कहना है कि जिस भी व्यक्ति के पास कंप्यूटर और इंटरनेट की एक्सेस है, वह तकनीकी रूप से डीपफेक कंटेट तैयार कर सकता है।
डीपफेक वीडियो बनते कैसे हैं?
कोई भी डीप लर्निंग सिस्टम किसी भी व्यक्ति के फोटो और वीडियो को अलग-अलग एंगल से स्टडी कर इसका फर्जी वीडियो तैयार कर सकता है। यह सिस्टम स्टडी द्वारा किसी व्यक्ति के व्यवहार और बोलने के अंदाज की नकल कर लेता है। एक बार वीडियो बनने के बाद जनरेटिव एडरवर्सियल नेटवर्क (GAN) का इस्तेमाल कर इसे और 'विश्वसनीय' बनाया जा सकता है। कई बार इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद नकली वीडियो एकदम असली लगने लगता है।
ये है डीपफेक वीडियो का सबसे बड़ा खतरा
डीपफेक का सबसे बड़ा खतरा यह है कि लोग इसके द्वारा तैयार किए गए कंटेट को सच मान सकते हैं, जबकि असल में वह नकली है। विल्लासेनोर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने कहा कि यह टेक्नोलॉजी चुनावों को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकती है। इससे किसी उम्मीदवार को कोई ऐसा काम या बात करते हुए दिखाया जा सकता है जो उसने कभी किए ही नहीं। वो इसे चुनाव प्रभावित करने का शक्तिशाली हथियार मानते हैं।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की वीडियो का भी हुआ था इस्तेमाल
2017 में इसकी शुरुआत के बाद से ही पोर्न वीडियो बनाने के लिए इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक मोर्चे पर इसकी शुरुआत 2018 में हुई थी, जब एक कॉमेडियन ने बराक ओबामा 'बनकर' एक भाषण दिया था। इसके बाद ऐसे कई और वीडियो सामने आये। इस साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के प्रचार में भी ऐसे वीडियो इस्तेमाल करने की खबरें हैं।
भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं डीपफेक वीडियो
भारत में ऐसे वीडियो और खतरनाक साबित हो सकते हैं। यहां ज्यादातर लोग डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं और वो इंटरनेट पर आई किसी भी चीज को सच मान सकते हैं। इसकी एक बानगी 2018 में दिखी थी, जब व्हाट्सऐप पर फैली अफवाहों के कारण देशभर में कई लोगों की मौत हुई थी। इनमें से अधिकतर भीड़ का शिकार बने थे। इसके बाद सरकार ने आगे आकर व्हाट्सऐप को कड़े कदम उठाने को कहा था।
चीन में डीपफेक वीडियो पर है प्रतिबंध
डीपफेक के खतरों को देखते हुए चीन और अमेरिका के कई हिस्सों में इस पर प्रतिबंध है। रेडिट, ट्वीटर और फेसबुक जैसी सोशल मीडिया कंपनियों ने भी ऐसे वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए कदम उठाने की घोषणा की है।