फेसबुक मेटावर्स बनाने को तैयार, भारतीय यूजर्स के सामने अब भी ढेरों चुनौतियां
सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने अपना नाम बदलकर बीते दिनों 'मेटा' कर दिया है। इस बदलाव के साथ फेसबुक ने सोशल मीडिया को बदलने की आधिकारिक घोषणा भी कर दी है और वर्चुअल 'मेटावर्स' तैयार करने जा रही है। मेटावर्स एक ऐसी दुनिया होगी, जहां सब कुछ वर्चुअल होगा और यूजर्स एकदूसरे से वर्चुअल रिएलिटी में जुड़ पाएंगे। भारतीय यूजर्स मेटावर्स में दूसरे देशों और मार्केट्स के मुकाबले देर से जगह बना पाएंगे और इससे जुड़े कई पहलू हैं।
सबसे पहले समझें मेटावर्स का मतलब
फेसबुक का मेटावर्स ऑगमेंटेड और वर्चुअल रिएलिटी की मदद से मिलकर तैयार होगा। माइक्रोसॉफ्ट, रोब्लॉक्स कॉर्पोरेशन और फोर्टनाइट जैसी कंपनियां भी इस दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं। मेटावर्स को दो हिस्सों में बांटा गया है, जिनमें से पहला NFTs और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ा होता है और दूसरा वर्चुअल वर्ल्ड होता है। किसी मुद्दे पर बात या चर्चा करने के लिए मेटावर्स में यूजर्स के अवतार एकसाथ बैठ सकेंगे और अपनी पसंद का स्पेस ऐसा करने के लिए चुन पाएंगे।
भारतीय यूजर्स मेटावर्स के लिए तैयार नहीं
मेटावर्स को इंटरनेट की दुनिया का भविष्य माना जा रहा है और एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह मौजूदा सोशल मीडिया अनुभव की जगह लेगा। हालांकि, पश्चिमी देशों के मुकाबले कोई भी टेक्नोलॉजी भारत तक आने में कई साल का वक्त लगता है और यह बात मेटावर्स पर भी लागू होगी। भारतीय यूजर्स बड़े बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं और उनके सामने कई चुनौतियां हैं। आइए समझते हैं कि भारत में मेटावर्स के सामने क्या समस्याएं आ सकती हैं।
महंगी है AR और VR से जुड़ी टेक्नोलॉजी
मेटावर्स के लिए जरूरी ऑगमेंटेड रिएलिटी और वर्चुअल रिएलिटी से जुड़ी टेक्नोलॉजी महंगी है। भारत में लगभग हर नई टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसकी कीमत ही बनती रही है। किसी भी टेक्नोलॉजी के अफॉर्डेबल होने पर भी ज्यादा यूजर्स उसका इस्तेमाल शुरू करते हैं। ऐसे में मौजूदा टेक्नोलॉजी का सस्ता होना जरूरी है, जिससे इसे खरीदने और इस्तेमाल करने वाले यूजर्स की संख्या बढ़ाई जा सके।
कमजोर इंटरनेट स्पीड बनेगी चुनौती
भारत में अब तक 5G कनेक्टिविटी का आधिकारिक रोलआउट नहीं हुआ है। मेटावर्स के लिए हाईस्पीड इंटरनेट अनिवार्य जरूरत है, जिसके बिना इसकी सेवाएं इस्तेमाल नहीं की जा सकतीं। भारत में अगले साल की दूसरी छमाही में 5G सेवाएं मिलना शुरू हो सकती हैं। हालांकि, शुरुआत में केवल बड़े शहरों में 5G इंटरनेट स्पीड का फायदा यूजर्स को मिलेगा। यानी कि मेटावर्स अमेरिका और साउथ कोरिया जैसे देशों के बाद भारत के चुनिंदा शहरों में ही कदम रखेगा।
आसानी से उपलब्ध नहीं हैं जरूरी उपकरण
मेटावर्स से जुड़े डिवाइसेज महंगे तो हैं ही, मार्केट में इनकी उपलब्धता भी सीमित है। बहुत कम टेक कंपनियां ही भारत में हाई-क्वॉलिटी AR और VR हेडसेट्स ऑफर करती हैं। इन डिवाइसेज के बिना मेटावर्स जैसी सेवाओं का हिस्सा नहीं बना जा सकता इसलिए इनका आसानी से ज्यादा यूजर्स के लिए उपलब्ध होना जरूरी है। इन डिवाइसेज का सामान्य टेक मार्केट में उपलब्ध होना मेटावर्स का एक्सेस आसान और बेहतर बना देगा।
नई टेक्नोलॉजी स्वीकार करने को तैयार नहीं
एक और महत्वपूर्ण पहलू स्वीकार्यता का है और भारतीय यूजर्स नहीं टेक्नोलॉजी को लेकर बहुत सहज नहीं होते। युवा वर्ग ऐसी इनोवेटिव टेक्नोलॉजी को आजमाना तो चाहते हैं, लेकिन इसके लिए ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते। ज्यादातर युवाओं की सोच यह है कि किसी टेक्नोलॉजी को पहले दूसरे आजमाएं और उसके बारे में मिलने वाली प्रतिक्रिया तय करती है कि बाकी भी उस टेक्नोलॉजी से जुड़ेंगे या नहीं। यह बात मेटावर्स पर भी लागू हो सकती है।
भारतीय इंटरनेट स्पेस में दिखेंगे बड़े बदलाव
न्यूजबाइट्स एक्सपर्ट ओपीनियन भारतीय इंटरनेट और सोशल मीडिया स्पेस में बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। स्मार्टफोन्स के मार्केट ने 21वीं सदी की शुरुआत में जिस तरह तेज ग्रोथ देखी और एक समय लग्जरी आइटम समझे जाने वाले स्मार्टफोन्स कुछ साल में ही बहुत कीमत में मिलने लगे, ठीक उसी तरह AR और VR मार्केट भी मजबूत पकड़ बना सकता है। मेटावर्स का प्रभाव बढ़ने के साथ ही भारत भी जल्द से जल्द इसका हिस्सा बनने की कोशिश करेगा।