फेसबुक ने बनाया खास न्यूरल EMG रिस्ट बैंड, समझ जाएगा आपके 'मन की बात'
क्या है खबर?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक ने अपना नया ऑगमेंटेड रिएलिटी इंटरफेस टीज किया है, जिसे CTRL-लैब्स की टेक्नोलॉजी के साथ तैयार किया गया है।
फेसबुक की ओर से शेयर किए गए नए वीडियो में दिख रहा है कि किस तरह EMG (इलेक्ट्रोमेयोग्राफी) का इस्तेमाल करने वाला एक रिस्ट बैंड न्यूरल सिग्नल्स को ऐक्शंस में बदल पाएगा।
साल 2019 में कंपनी ने CTRL-लैब्स स्टार्टअप खरीदा है और इसकी नई टेक्नोलॉजी दिमाग के सिग्नल्स का इस्तेमाल कमांड्स देने के लिए करेगी।
रिस्ट बैंड
मन की बात समझ जाएगा रिस्ट बैंड
कंप्यूटर के साथ इंटरैक्शन करने के लिए फेसबुक का खास न्यूरल रिस्ट बैंड दिमाग से आने वाले सिग्नल्स इस्तेमाल करेगा।
इसकी मदद से लिए जाने वाले ऐक्शंस में टाइपिंग, स्वाइपिंग, गेम्स खेलने या (वर्चुअल) तीरंदाजी जैसे काम शामिल होंगे।
साथ ही यूजर्स को इसके साथ हैप्टिक फीडबैक भी मिलेगा, यानी कि यूजर्स अपने ऐक्शंस को फील भी कर पाएंगे।
सामान्य हैंड ट्रैकिंग के मुकाबले यह प्रक्रिया ज्यादा आसान और आरामदायक होगी।
फेसबुक पोस्ट
यहां देखिए वीडियो
ब्लॉग
ऐसे ट्रैकिंग करेगा रिस्ट बैंड
फेसबुक रिएलिटी लैब्स ने एक ब्लॉग पोस्ट में नए रिस्ट बैंड के बारे में ज्यादा जानकारी दी है।
यह बैंड बेसिक 'क्लिक्स' को ट्रैक करने के लिए उंगलियों के मूवमेंट को समझता है और इंडेक्ट फिंगर से अंगूठा छूने पर एक क्लिक रजिस्टर किया जाता है।
विजुअल सेंसर के बजाय यह बैंड यूजर की बांह से सिग्नल्स को ट्रैक करेगा।
फेसबुक EMG रिस्ट बैंड को रोजमर्रा की कंप्यूटिंग से इंटीग्रेट करते हुए अगले स्तर पर लेकर जाना चाहती है।
प्रोटोटाइप
कई डिजाइन्स पर काम कर रही है कंपनी
सोशल मीडिया कंपनी ने बताया कि अलग-अलग हैप्टिक फीडबैक देने वाले कई प्रोटोटाइप्स आजमाकर देखे गए।
इनमें से एक को 'बिलोबैंड' नाम दिया गया, जिसे दोनों बाहों पर पहना जा सकता था और अलग-अलग सेंसेशन देने के लिए इसमें हवा भर जाती थी या कम हो जाती थी।
वहीं, एक और प्रोटोटाइप 'टास्बी' वाइब्रेटिंग एक्युरेटर्स और स्क्वीजिंग मैकेनिज्म का इस्तेमाल सिग्नल्स भेजने के लिए करता है।
यानी कि फाइनल बैंड का डिजाइन अब तक तय नहीं किया गया है।
प्राइवेसी
आपका दिमाग नही पढ़ती टेक्नोलॉजी
फेसबुक CEO मार्क जुकरबर्ग ने हाल ही में न्यूरल इंप्लांट्स की आलोचना की है और कहा है कि यूजर्स को VR या AR का इस्तेमाल करने के लिए अपने शरीर में कुछ लगवाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
यही वजह है कि फेसबुक की EMG जैसे टेक्नोलॉजी बेहतर विकल्प दे रही है।
कंपनी ने इस बात का भरोसा दिया है कि नई टेक्नोलॉजी सिर्फ उतना ही डाटा जुटा सकती है, जितनी यूजर्स को बेहतर अनुभव देने के लिए जरूरी है।