तेलंगाना सरकार ने CBI से वापस ली सामान्य सहमति, जानिए क्या है पूरा मामला
तेलंगाना में गत दिनों भाजपा द्वारा तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के चार विधायकों को खरीदने की कोशिश करने का मामला सामने आने के बाद अब राज्य सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दी सामान्य सहमति वापस ले ली है। सरकार के इस कदम से मामले में भाजपा की ओर से की गई CBI जांच की मांग को भी बड़ा झटका लगा है। आइए जानते हैं कि तेलंगाना सरकार ने यह कदम क्यों उठाया और इसके क्या परिणाम होंगे।
TRS विधायक ने लगाया था भाजपा पर आरोप
27 अक्टूबर को TRS के तंडुर विधायक पायलट रोहित रेड्डी ने शिकायत दी थी भाजपा ने उनके फार्महाउस पर उन सहित चार विधायकों को खरीदने का प्रयास किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि इस डील में शामिल मुख्य व्यक्ति को 100 करोड़ रुपये से अधिक मिलने थे, जबकि हर विधायक के लिए 50-50 करोड़ रुपये दिए जाने तय किए थे। अन्य विधायकों में गा कांथा राव, बीरम हर्षवर्धन रेड्डी और गुववाला बलाराजू शामिल थे।
विधायकों ने भाजपा पर लगाया था धमकी देने का आरोप
विधायक रेड्डी ने आरोप लगाया था कि भाजपा के लोगों ने उन्हें पार्टी में शामिल न होने पर झूठे आपराधिक मामलों में फंसाने, प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर विभाग और CBI की कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहने की भी धमकी दी थी।
पुलिस ने मामला दर्ज कर तीन लोगों को गिरफ्तार किया
TRS विधायक की शिकायत के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर अजीजनगर स्थित एक फार्महाउस पर छापेमारी की। इस दौरान पुलिस ने वहां से मामले में हरियाणा निवासी एक पुजारी सतीश शर्मा उर्फ रामचंद्र भारती, तिरुपति के एक संत डी सिम्याजी और एक कारोबारी नंदकुमार को गिरफ्तार किया था। शनिवार को इन तीनों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया। इस मामले को लेकर TRS ने भाजपा पर 'ऑपरेशन लोटस' चलाने का आरोप लगाया था।
भाजपा ने की मामले की CBI जांच की मांग
इस मामले के सामने आने के बाद भाजपा के राज्य महासचिव गुज्जुला प्रेमेंद्र रेड्डी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मामले की CBI जांच कराने की मांग की थी। उन्होंने याचिका में कहा था कि मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग का ड्रामा रचकर भाजपा को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। ऐसे में मामले में CBI या SIT जैसी तटस्थ एजेंसी से जांच करानी चाहिए।
सुनवाई में आई CBI से सामान्य सहमति वापस लेने की बात
भाजपा महासचिव की याचिका पर शनिवार को हाई कोर्ट में हुई सुनवाई में अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) ने बताया कि राज्य सरकार ने अगस्त में ही CBI को दी गई सभी पिछली सामान्य सहमति वापस ले ली थी। ऐसे में अब वह सरकार की अनुमति के बिना जांच नहीं कर सकती। सरकार के कदम को नेताओं को केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई से बचाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है और राजनीतिक गलियारों में इसकी खासी चर्चा है।
मुख्यमंत्री राव ने अगस्त में की थी अन्य राज्यों से अपील
बता दें कि मुख्यमंत्री राव ने गत अगस्त में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एक रैली में सभी राज्य सरकारों से CBI को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि केंद्र की भाजपा सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए CBI सहित केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। यह अब बंद हो जाना चाहिए और सभी राज्य सरकारों को CBI से अपनी सामान्य सहमति वापस लेनी चाहिए।
समान्य सहमति का क्या मतलब होता है?
राज्य सरकारें जांच के लिए CBI को सामान्य या मामला विशेष से जुड़ी सहमति देती हैं। सामान्य सहमति CBI की केंद्रीय कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में जांच के लिए मदद करती है। अगर यह सहमति न मिली हो तो CBI को हर मामले में छोटी से छोटी कार्रवाई के लिए भी राज्य सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है। आमतौर पर राज्य CBI को यह सहमति दे देते हैं।
सहमति लेना क्यों जरूरी है?
CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम द्वारा शासित है और केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारी ही इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में यह राज्य सरकार के कर्मचारियों और किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच संबंधित सरकार की सहमति के बाद ही कर सकती है। अगर किसी राज्य ने सामान्य सहमति वापस ली है तो CBI उस राज्य में बिना सरकार की मंजूरी के नया मामला दर्ज नहीं कर सकती।
ये राज्य वापस ले चुके हैं सहमति
तेलंगाना से पहले महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल, मिजोरम और मेघालय CBI से सामान्य सहमति वापस ले चुके हैं। मिजोरम ने 2015 में सहमति वापस ली थी, जब वहां कांग्रेस सरकार थी। मिजोरम को छोड़कर सभी राज्यों में विपक्ष की सरकार है।