UPA सरकार के मुकाबले मोदी राज में निलंबित हुए दोगुने से ज्यादा सांसद
संसद का मानसून सत्र जारी है और विपक्ष के 20 से अधिक सांसद निलंबित चल रहे हैं। इनमें से कुछ को एक सप्ताह के लिए निलंबित किया गया है तो कुछ को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। आंकड़े दिखाते हैं कि मोदी सरकार के आठ सालों के कार्यकाल में निलंबित होने वाले सांसदों की संख्या में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के मुकाबले कई गुना इजाफा हुआ है। आइये पूरी खबर जानते हैं।
2014 के बाद से निलंबित हो चुके हैं 139 सांसद
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2014 के मानसून सत्र के बीच राज्यसभा और लोकसभा के कुल 51 सांसदों को निलंबित किया गया था, जबकि 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से लेकर अब तक 139 सांसद निलंबित हो चुके हैं। संसदीय जानकार और विपक्षी सांसद मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में सांसदों के निलंबन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। विपक्ष इसे लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहा है।
लोकतंत्र को कमजोर कर रही सरकार- चिदंबरम
पूर्व वित्त मंत्री और राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम ने कहा कि मोदी सरकार संसद में बहस और बातचीत न करवाकर लोकतंत्र का गला घोंट रही है। उन्होंने पूछा कि अगर बहस ही नहीं होनी है और प्रदर्शनों की इजाजत नहीं है तो लोकतंत्र, चुनाव और संसद का क्या मतलब हुआ? चिदंबरम ने कहा कि सरकार लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। यह धीमी मौत मर रहा है और नागरिकों को इसके खतरे पता होने चाहिए।
जानकारों का क्या कहना है?
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने बताया कि पिछले कुछ समय में निलंबित होने वाले सांसदों के मामले दोगुना से ज्यादा हो गए हैं। यह दिखाता है कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच अब शत्रुता ज्यादा है, जहां दोनों एक-दूसरे को राजनीतिक विरोधी की जगह दुश्मन की तरह समझते हैं। उन्होंने कहा कि इससे न सिर्फ संसद का कामकाज प्रभावित होता है बल्कि कई कानून भी बिना बहस के पास हो जा रहे हैं।
सत्तारूढ़ भाजपा का इस पर क्या कहना है?
भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी ने इससे अलग राय रखते हुए आरोप लगाया कि विपक्ष जानबूझकर संसद की कार्यवाही को बाधित करता है। यह अस्वीकार्य है। विपक्षी सांसदों पर निशाना साधते हुए बलूनी ने कहा कि वे सदन के अंदर प्लेकार्ड लेकर आते हैं, जिसकी इजाजत नहीं है। सरकार ने कई बार बात करने की कोशिश की है। संसद लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने की जगह है, लेकिन कई दिनों से यहां कामकाज नहीं हो पा रहा है।
ये है राज्यसभा का लेखा-जोखा
आंकड़े बताते हैं कि 2006 से लेकर 2014 के बीच केवल एक बार मार्च, 2010 में सरकार ने सात सांसदों के निलंबन का प्रस्ताव पेश किया था। इन सांसदों ने मंत्री के हाथ से महिला आरक्षण विधेयक की कॉपी छीनकर उसे फाड़ दिया था। करीब एक सप्ताह बाद एक सांसद को छोड़कर बाकी का निलंबन वापस ले लिया गया था। वहीं मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्यसभा सांसदों के निलंबन की कोई घटना नहीं हुई।
2020 के बाद राज्यसभा सांसदों का निलंबन हुआ शुरू
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में 2020 के बाद से राज्यसभा में सांसदों को निलंबन करने के मामलों ने जोर पकड़ा है और अलग-अलग मौकों पर विपक्षी सांसदों को निलंबन का सामना करना पड़ा है।
लोकसभा में क्या स्थिति है?
लोकसभा सचिवालय के मुताबिक, 2006-2014 के बीच चार बार में कुल 44 सांसदों को खराब बर्ताव के कारण निलंबित किया गया था। वहीं मोदी सरकार की बात करें तो 2014 के बाद से लेकर अब तक कुल 91 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है। पिछले आठ सालों में एक दिन में सबसे ज्यादा 25 सांसद अगस्त, 2015 में निलंबित हुए थे, जो व्यापम घोटाले और ललित मोदी मामले में विरोध कर रहे थे।