कौन हैं देश के नए विदेश मंत्री जयशंकर और क्यों प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें चुना, जानें
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में अगर किसी एक नाम को चौंकाने वाला कहा जा सकता है तो वह विदेश मंत्री बनाए गए सुब्रह्मण्यम जयशंकर का है।
पिछली सरकार में विदेश सचिव रहे जयशंकर सुषमा स्वराज की जगह लेंगे। वह कैबिनेट मंत्री बनने वाले देश के पहले विदेश सचिव हैं।
तीन दशक तक राजनयिक के तौर पर देश की सेवा करने वाले जयशंकर ने विभिन्न सरकारों के राज में शानदार काम किया।
आइए उनके सफर के बारे में जानते हैं।
शिक्षा
JNU से पढ़े जयशंकर को कई भाषाओं की जानकारी
जयशंकर का जन्म 15 जनवरी, 1955 को दिल्ली में हुआ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक करने वाले जयशंकर ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में MA और अंतरराष्ट्रीय संबंध में M.Phil और Ph.D की है।
1977 IFS बैच के अधिकारी को रूसी भाषा में निपुणता हासिल है और इसलिए उनकी पहली बड़ी पोस्टिंग मास्को के भारतीय दूतावास में सचिव के तौर पर हुई।
इसके अलाव जापानी और हंगेरियन भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ है।
UPA कार्यकाल
अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते में था अहम रोल
जयशंकर को अमेरिका, चीन और रूस संबंधित मामलों में विशेषज्ञ माना जाता है और वह तीनों देशों में भारतीय राजदूत के तौर पर काम कर चुके हैं।
UPA सरकार के पहले कार्यकाल में हुई भारत-अमेरिकी के ऐतिहासिक परमाणु समझौते में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी और वह उस समय विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (अमेरिका) थे।
मनमोहन सिंह को जयशंकर पर भरपूर भरोसा था और वह 2013 में उन्हें विदेश सचिव बनाना चाहते थे, लेकिन नाकाम रहे।
मोदी सरकार
जयशंकर के कार्य से प्रभावित थे मोदी
जब 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो वह अमेरिका में भारतीय उच्चायुक्त थे।
बतौर प्रधानमंत्री सितंबर 2014 में अमेरिकी के पहले दौरे पर मोदी जयशंकर के काम से काफी प्रभावित हुए।
जिन सुजाता सिंह की वरिष्ठता के कारण मनमोहन 2013 में जयशंकर को सचिव नहीं बना पाए थे, उन्हीं सुजाता को 2015 में उनका कार्यकाल खत्म होने से 6 महीने पहले हटाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जयशंकर को विदेश सचिव बना दिया।
जानकारी
मोदी की रणनीति से मेल खाती है जयशंकर की सोच
2015-2018 में विदेश सचिव रहते हुए जयशंकर ने दुनिया में भारत की मजबूत छवि बनाने और उस छवि का फायदा उठाने की प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति के तहत काम किया। डोकलाम विवाद को सुलझाने में उनका सहयोग योगदान रहा था।
संबंध
काफी पुराना है मोदी और जयशंकर का रिश्ता
जानकारों का कहना है कि मोदी से जयशंकर की रिश्ता उन दिनों से है जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
चीन के अपने एक दौरे पर मोदी की मुलाकात तब चीन में भारतीय राजदूत रहे जयशंकर से हुई।
उनके कार्यकाल में चीन ने भारत में जो महत्वपूर्ण निवेश किए, उसमें से एक गुजरात के साथ था।
इसके बाद भी विभिन्न बैठकों और विचार-विमर्शों के जरिए मोदी को जयशंकर के शानदार काम के बारे में पता चलता रहा।
विदेश नीति
क्या संकेत देता है जयशंकर का चुनाव?
कम बोलने वाले जयशंकर रणनीतिक मामलों में देश के सबसे अच्छे लोगों में से एक माने जाते हैं।
ऐसे समय में जब अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है, तब दोनों देशों के मामलों के जानकार जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया जाना, प्रधानमंत्री मोदी के उन पर भरोसे को दर्शाता है।
उनके चुनाव से दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार की विदेश नीति की दिशा भी मालूम होती है, जिसके केंद्र में अमेरिका और चीन रहने वाले हैं।