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    राजनीति

    दिल्ली में कब-कब किसने संभाली मुख्यमंत्री की कमान, यहां जानें पूरा सफर

    दिल्ली में कब-कब किसने संभाली मुख्यमंत्री की कमान, यहां जानें पूरा सफर
    लेखन भारत शर्मा
    Feb 09, 2020, 02:00 pm 1 मिनट में पढ़ें
    दिल्ली में कब-कब किसने संभाली मुख्यमंत्री की कमान, यहां जानें पूरा सफर

    दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 का पहला चरण यानी मतदान शनिवार को पूरा हो गया। अब सभी की निगाहें दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री की सीट पर आ टिकी हैं। आम आदमी पार्टी (AAP), भाजपा और कांग्रेस तीनों ही दल अपनी-अपनी जीत का दावा करते हुए सरकार में आने की बात कर रहे हैं, लेकिन हकीकत तो 11 फरवरी को होने वाली मतगणना के बाद ही सामने आ सकेगी। उससे पहले यहां जानें दिल्ली में अब तक मुख्यमंत्री रहे नेताओं का सफर।

    सात नेताओं ने संभाला मुख्यमंत्री का पद

    आजादी के बाद वर्ष 1952 में दिल्ली को अंतरिम विधानसभा घोषित कर मुख्यमंत्री की नियुक्ति की गई थी, लेकिन चार साल बाद ही दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। इसके बाद 1993 में 69वें संविधान संशोधन के जरिए दिल्ली को पूर्ण विधानसभा का दर्जा दे दिया गया। उसके बाद राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव कराकर मुख्यमंत्री चुना गया था। तब से अब तक दिल्ली में सात मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

    चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह बने थे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री

    साल 1952 में दिल्ली को अंतरिम विधानसभा घोषित करते हुए 17 मार्च को महात्मा गांधी के सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह को महज 33 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनाया गया था। वह सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने दो साल 332 दिन यानी 12 फरवरी, 1955 तक दिल्ली पर राज किया था। उनके योगदान के लिए 11 अगस्त, 2001 को उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था।

    गुरुमुख निहाल सिंह बने दूसरी मुख्यमंत्री

    चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह के बाद 12 फरवरी, 1955 को राजस्थान के प्रथम राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया था। उन्होंने एक साल 263 दिन तक यानी 1 नवंबर, 1956 तक दिल्ली का संचालन किया। उसी दिन दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था। कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शामिल रहे गुरुमुख निहाल सिंह ने लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में B.Sc की डिग्री हासिल की थी।

    मदलाल खुराना बने थे पूर्ण विधानसभा के पहले मुख्यमंत्री

    साल 1993 में दिल्ली को पूर्ण विधानसभा बनाए जाने पर राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव कराए गए थे। चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। 2 दिसंबर, 1993 को भाजपा नेता मदनलाल खुराना ने तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थीं, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उन्होंने 26 फरवरी, 1996 यानी दो साल 86 दिन बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

    खुराना के बाद भाजपा के साहिब सिंह ने संभाली थीं कमान

    26 फरवरी, 1996 को खुराना के इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी थी, लेकिन वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। राजनीति परिदृश्य में बदलाव के कारण 12 अक्टूबर, 1998 को उन्हें भी पद से हटा दिया गया था। साहिब सिंह ने अपना पहला चुनाव 1977 में पार्षद के रूप में जीता था। वह स्वतंत्रता सेनानी गुरु राधा किशन के नाम पर शपथ लेकर अचानक चर्चाओं में आ गए थे।

    दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं थीं सुषमा स्वराज

    साहिब सिंह वर्मा के बाद भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने 12 अक्टूबर, 1998 को पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उन्हें दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी हासिल हुआ था। उन्होंने 3 दिसंबर, 1998 में चुनाव होने तक कुल 52 दिन तक कार्यभार संभाला था। उस दौरान उन्होंने अपनी प्रखर बोली और कामकाज से लोगों के दिलों में अलग जगह बना ली थी। इसके बाद उन्होंने कभी राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    कांग्रेस की वापसी के साथ शीला दीक्षित ने छठीं मुख्यमंत्री के रूप में संभाला काम

    साल 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी के साथ शीला दीक्षित ने 3 दिसंबर, 1998 को छठे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। उस चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों में से 52 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। उस दौरान भाजपा ने दूसरे नंबर पर रहते हुए कुल 15, जनता दल ने एक और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो सीटें जीती थीं। दीक्षित ने मुख्यमंत्री संचार, परिवहन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर जोर दिया था।

    2003 चुनावों में भी कांग्रेस की जीत के साथ शीला दीक्षित के हाथों में रही कमान

    2003 में हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने शीला दीक्षित के पिछले काम को सराहते हुए फिर से उन्हें सत्ता पर काबिज होने का मौका दिया। हालांकि उस चुनाव में कांग्रेस को पांच सीटों का का नुकसान हुआ था और वह 70 में से 47 ही सीट जीत पाई थी। भाजपा ने 20 सीटों पर कब्जा जमाया था। इस बार भी शीक्षा दीक्षित ने 1 दिसंबर, 2003 को सातवें मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ली।

    शीला दीक्षित ने पूरी की मुख्यमंत्री बनने की हैट्रिक

    साल 2008 में कांग्रेस ने जीत की हैट्रिक लगाते हुए लगातार तीसरी बार दिल्ली की सत्ता हासिल की। उस चुनाव में कांग्रेस को 42, भाजपा को 23, बसपा और अन्य को दो-दो सीटें मिली थीं। कांग्रेस के साथ शीला दीक्षित ने भी मुख्यमंत्री बनने की हैट्रिक पूरी करते हुए 29 अक्टूबर, 2008 को आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण ली और 28 दिसंबर, 2013 तक पद पर रहते हुए अपना तीसरा कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया।

    राजनीति में हुआ AAP का आगमन, केजरीवाल बने नवें मुख्यमंत्री

    दिल्ली में साल 1998 से चला आ रहा कांग्रेस का शासन 2013 में आम आदमी पार्टी AAP के आगमन के साथ खत्म हो गया था। AAP ने 28 सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन वह भाजपा 31 से पीछे रह गई थी। कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं थीं। भाजपा के पीछे हटने के बाद AAP ने सरकार बनाई थी। अरविंद केजरीवाल ने नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, लेकिन 49 दिन बाद ही उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया।

    AAP ने रचा इतिहास तो केजरीवाल बनें 10वें मुख्यमंत्री

    केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दिल्ली में 15 फरवरी, 2014 से 11 फरवरी, 2015 तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में AAP ने इतिहास रचते हुए 67 सीटों पर कब्जा जमाया, वहीं भाजपा तीन सीटें ही जीत पाई थी। इसके साथ ही 14 फरवरी, 2015 को अरविंद केजरीवाल ने दसवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। केजरीवाल ने अन्ना हजारे के आंदोलन से अलग हो पार्टी बनाई थी।

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