
केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर दिल्ली से कितना अलग और कितना समान होगा जम्मू-कश्मीर, जानें
क्या है खबर?
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल, 2019 संसद से पास हो गया है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही ये कानून का रूप ले लेगा।
इसमें मौजूदा जम्मू-कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में बांटने का फैसला किया गया है।
जम्मू-कश्मीर के पास अपनी विधानसभा होगी और वह दिल्ली और पुडुचेरी के बाद ऐसा मात्र तीसरा केंद्र शासित प्रदेश होगा।
शक्तियों के मामले में जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में क्या समानताएं और अंतर होंगे, आइए आपको बताते हैं।
नियम
राज्य और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकेगा जम्मू-कश्मीर
संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत दिल्ली और पुडुचेरी की विधानसभाएं राज्य सूची और समवर्ती सूची में आने वाले विषयों पर कानून बना सकती हैं।
इन विषयों पर मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल उपराज्यपाल को सलाह देने का काम भी करता है।
केंद्रीय सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर उपराज्यपाल खुद कानून बना सकते हैं और उन्हें मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की सलाह की जरूरत नहीं होती।
जम्मू-कश्मीर में भी लगभग यही नियम लागू होंगे, लेकिन कुछ बदलावों के साथ।
जानकारी
किस सूची में कितने विषय?
संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, राज्य सूची में कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य, जमीन और स्थानीय सरकार समेत कुल 61 विषय हैं। जबकि समवर्ती सूची में वन, सामाजिक सुरक्षा और रोजगार जैसे 52 विषय हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं।
पुलिस
पुलिस होगी केंद्र सरकार के अधीन
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल की धारा 32 में प्रावधान है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा कानून व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर राज्य और समवर्ती सूची के सभी विषयों पर कानून बना सकती है।
यानि पुलिस जम्मू-कश्मीर सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएगी और सीधे केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करेगी।
दिल्ली में भी बिल्कुल समान मामला है और यहां भी पुलिस दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती। इस मामले में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में समानता है।
जमीन
जमीन पर कानून बना सकेगी जम्मू-कश्मीर सरकार
दिल्ली में पुलिस के अलावा जमीन भी दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव का मुद्दा है।
संविधान संशोधन के जरिए संविधान में अनुच्छेद 239AA जोड़कर दिल्ली सरकार को राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषय 'जमीन' पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है।
मौजूदा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल के अनुसार, जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर ऐसी कोई रोक नहीं है और वह जमीन को लेकर अपने कानून बना सकती है।
दिल्ली की तुलना में ये एक बड़ा अंतर है।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो
ACB पर क्या है स्थिति?
अब बात करते हैं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की।
ACB के पास भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में मुकदमा दर्ज करने और गिरफ्तार करने की शक्ति होती है।
दिल्ली में ये दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार और केंद्र सरकार के बीच लड़ाई का एक और बड़ा मुद्दा रहा है।
फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ACB उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आएगी और दिल्ली सरकार के पास इससे संबंधित कोई शक्ति नहीं होगी।
जानकारी
उपराज्यपाल के पास रहेगी ACB
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल इस पर पूरी तरह साफ है और इसकी धारा 53(2)(iii) में लिखा है कि उपराज्यपाल ACB और अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित मामलों पर खुद फैसला ले सकते हैं। यानि ACB सीधे उपराज्यपाल के हाथों में होगी।
सेवाएं
अधिकारियों से संबंधित ये अधिकार उपराज्यपाल के पास
दिल्ली में अधिकारियों के तबादले को लेकर भी AAP सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने आ चुके हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का भी रूख अभी साफ नहीं है।
वहीं, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल की धारा 88(4) में साफ है कि उपराज्यपाल के पास IAS, IPS और IFS के अधिकारियों की संरचना, संख्याबल और आवंटन संबंधित मामलों में फैसला लेने की पूरी शक्ति मौजूद है।
अन्य मामलों पर स्थिति उतनी साफ नहीं है।
तबादला
अधिकारियों के तबादले पर स्थिति साफ नहीं
बिल की धारा 92 में अन्य सेवाओं की भी बात की गई है और लिखा है कि "सक्षम प्राधिकारी" इन सेवाओं में काम करने वाली अधिकारियों से संबंधित मामलों में आदेश दे सकती है।
"सक्षम प्राधिकारी" क्या है, ये साफ नहीं किया गया है।
यानि दिल्ली की तरह यहां भी यह साफ नहीं है कि जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ काम कर रहे अधिकारियों के तबादले की शक्ति किसके अधिकार क्षेत्र में आएगी।
अन्य मामले
अन्य मामलों में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के पास समान शक्तियां
अन्य मामलों में जम्मू-कश्मीर विधानसभा और दिल्ली विधानसभा की शक्तियां लगभग समान होंगी।
बिल की धारा 55 में लिखा है कि उपराज्यपाल कारोबार से संबंधित विषयों पर मंत्रिमंडल की सलाह से कानून बना सकता है।
वहीं, धारा 36(3) के अनुसार, ऐसा कोई बिल जिसमें जम्मू-कश्मीर को प्राप्त फंड से खर्च शामिल हो, उसे विधानसभा में पास करने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी है।
दिल्ली में भी दोनों विषयों पर समान कानून हैं।