#NewsBytesExplainer: नीतीश कुमार ने कब-कब मारी पलटी और कैसे दिया राजनीतिक पार्टियों को झटका?
बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (JDU) के सुप्रीम नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारते हुए महागठबंधन का साथ छोड़ भाजपा के साथ सरकार बना ली है। एक बार फिर से बिहार में सरकार की बदली है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश ही बने रहेंगे। हालांकि, यह उनके लिए कोई बात नहीं। आइए जानते हैं कि नीतीश ने कब कैसे पलटी मारी है और कैसे सत्ता के केंद्र में बने रहे हैं।
फिर से नीतीश कुमार की पलटी चर्चा में क्यों?
दरअसल, एक बार फिर नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़कर लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा से हाथ मिला लिया है। 13 दिसंबर 2023 को नीतीश ने कहा था कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेंगे। बताया गया कि उन पर तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा था। इसके अलावा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद भाजपा के पक्ष में लहर के होने को भी एक कारण माना जा रहा है।
सत्ता में रहते हुए पहली पलटी कब मारी?
JDU ने 2005 के विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ मिलकर लड़ा और जीत दर्ज की। वह पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2010 का चुनाव जीतकर वह मुख्यमंत्री बने रहे। 2013 में उन्होंने सत्ता में रहते हुए पहली बार पाला बदला क्योंकि वे 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे। इस तरह उन्होंने भाजपा के साथ 17 साल लंबे चले राजनीतिक गठबंधन को खत्म कर दिया।
2015 में महागठबंधन के साथ लड़ा था चुनाव
नीतीश ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और केवल 2 सीटों पर जीत दर्ज की। इस करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पार्टी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर लड़ा और RJD को अधिक सीटें मिलने के बावजूद नीतीश मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2017 उन्होंने फिर से पलटी मारी और भाजपा से हाथ मिला लिया।
2017 में फिर मारी पलटी
दरअसल, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा लालू यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के मामले में आरोप लगाए जाने से नीतीश अपनी 'स्वच्छ' छवि को लेकर चिंतित थे। इस कारण उन्होंने 2017 में पाला बदला और भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनाई। वह मुख्यमंत्री बने, लेकिन गठबंधन में छोटे भाई की भूमिका उन्हें अखरती रही। साल 2020 के विधानसभा चुनावों में JDU को 2015 के मुकाबले 28 सीटों का नुकसान हुआ, जिसके लिए नीतीश ने भाजपा को जिम्मेदार ठहराया।
2022 में मारी तीसरी पलटी
2020 के चुनावों के बाद नीतीश मुख्यमंत्री बने, लेकिन सीटों की संख्या में भाजपा द्वारा उनकी पार्टी पर भारी पड़ने के बाद वह अपनी कम होती स्वायत्तता को लेकर चिंतित थे। मतभेद बढ़ने पर उन्होंने अगस्त, 2022 में गठबंधन तोड़ दिया और भाजपा पर आरोप लगाया कि वह उनकी पार्टी का अस्तित्व खत्म करना चाहती है। एक बार फिर पलटी मारते हुए उन्होंने RJD का हाथ पकड़ा। सीटें कम होने के बावजूद वह मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने।
नीतीश कुमार की पार्टी के सीटों के गणित का क्या हुआ?
बिहार में JDU के प्रदर्शन को देखें तो 2005 से लेकर 2020 तक में काफी कमी आई है। JDU ने 2005 में 243 में से 88 और भाजपा ने 55 सीटों पर जीत दर्ज की थी। साल 2009 में JDU ने 115, जबकि भाजपा ने 91 सीटों पर जीत दर्ज की। 2015 के विधानसभा चुनावों में JDU को 71 और भाजपा को 53 सीटों पर जीत मिली। 2020 में JDU को केवल 43 , जबकि भाजपा को 74 सीटें मिलीं।
न्यूजबाइट्स प्लस
बिहार की 243 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सदस्यों की जरूरत है। फिलहाल RJD के सबसे अधिक 79 विधायक हैं। इसके बाद भाजपा के पास 78, JDU के पास 45, कांग्रेस के पास 19, कम्युनिस्ट पार्टी के पास 12, AIMIM के पास एक और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के 4 विधायक हैं। नीतीश के अलग होने से RJD, कांग्रेस और वाम दलों के पास 114 सीटें बची हैं, जो बहुमत से 8 कम हैं।