राजस्थान: बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय मामले में अशोक गहलोत को हाई कोर्ट से राहत

राजस्थान की अपनी सरकार को बचाने में जुटे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुरूवार को राजस्थान हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली। कोर्ट ने बसपा विधायको के कांग्रेस में विलय पर अस्थाई रोक लगाने की बसपा की अपील को खारिज कर दिया है। अब मामले का फैसला पूरी तरह से कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है जो 11 अगस्त को आ सकता है। अगर ये फैसला गहलोत खेमे के खिलाफ आता है तो उनकी सरकार संकट में पड़ सकती है।
2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव में बसपा के छह विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे और पिछले साल सितंबर में ये विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। विधायकों ने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी से बसपा विधायक दल का विलय कांग्रेस में करने का अनुरोध किया था, जिसे स्पीकर ने तत्काल स्वीकार कर लिया। इस विलय से पहले से ही बसपा विधायक गहलोत सरकार का समर्थन कर रहे थे और मायावती ने इसे पीठ में छुरा घोंपने के समान बताया था।
मायावती तभी से गहलोत से अपना हिसाब चुकता करने का मौका ढूढ़ रही थीं और अब सचिन पायलट की बगावत ने उन्हें ये मौका दिया है। उनका कहना है कि बसपा विधायकों का कांग्रेस में विलय असंवैधानिक था और वह कांग्रेस और अशोक गहलोत को सबक सिखाने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थीं। बसपा ने उसके विधायकों के कांग्रेस में विलय को मंजूरी देने के स्पीकर सीपी जोशी के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी है।
मामले में राजस्थान हाई कोर्ट की एक सदस्यीय बेंच सुनवाई कर रही है। कल बसपा महासचिव सतीश मिश्रा और भाजपा विधायक मदन दिलवर ने कोर्ट से विलय पर अस्थाई रोक लगाने की मांग की थी, जिसके बाद कोर्ट ने स्पीकर को नोटिस जारी किया था। अब कोर्ट ने अस्थाई रोक लगाने की बसपा की अपील को खारिज कर दिया है और अब सब कुछ उसके फैसले पर निर्भर करता है जो अगले हफ्ते आ सकता है।
बता दें कि बसपा ने कांग्रेस में शामिल हो चुके अपने इन छह विधायकों को व्हिप भी जारी किया है और उनसे विधानसभा में बहुमत परीक्षण होने पर कांग्रेस के खिलाफ मतदान करने को कहा गया है।
बसपा विधायकों के विलय पर हाई कोर्ट का फैसला गहलोत सरकार के लिए बेहद अहम है। अगर मामले में बसपा के पक्ष में फैसला आता है तो गहलोत के लिए अपनी सरकार बचाना मुश्किल हो जाएगा। अभी 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में गहलोत को 102 विधायकों का समर्थन हासिल है और बसपा विधायकों के बिना उनके पास मात्र 96 विधायकों का समर्थन रह जाएगा जो बहुमत के आंकड़े 101 से पांच विधायक कम है।