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लोकसभा चुनाव परिणाम: कैसे पश्चिम बंगाल में खिला भाजपा का कमल, पढ़ें विश्लेषण

लोकसभा चुनाव परिणाम: कैसे पश्चिम बंगाल में खिला भाजपा का कमल, पढ़ें विश्लेषण

May 24, 2019
03:55 pm

क्या है खबर?

लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 303 सीटों पर कब्जा जमाया और लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की। पार्टी ने उन सारे आंकलनों को ध्वस्त कर दिया, जिनमें उसकी सीट कम होने की संभावना जताई जा रही थी। बल्कि उसकी सीटों की संख्या में इजाफा ही हुआ। इसका एक कारण रहा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उसका प्रदर्शन। आइए राज्य में भाजपा के शानदार प्रदर्शन का विश्लेषण करते हैं।

इतिहास से

वैचारिक तौर पर भी जीत महत्वपूर्ण

राज्य में जीत को भाजपा के लिए वैचारिक तौर पर भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारतीय जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल से ही आते थे और अपने वैचारिक गुरू की धरती पर भगवा झंडा लहराना भाजपा का एक बड़ा सपना था।

मिशन 23

अमित शाह ने रखा था 23 सीट जीतने का लक्ष्य

पश्चिम बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें हैं और जब चुनाव प्रचार शुरु करने से पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यहां 23 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था, तो कम ही लोगों को लगा था कि इसे हासिल किया जा सकता है। अब जब चुनाव परिणाम में उसने 18 सीटों पर कब्जा जमाया है तो साफ नजर आ रहा है कि शाह का लक्ष्य कोई ख्याली पुलाव नहीं था और इसे सोच विचार के बाद तय किया गया था।

वोट प्रतिशत

भाजपा को राज्य में 40 प्रतिशत वोट

भाजपा को राज्य में 40 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त हुए। पिछले चुनाव में उसका वोट शेयर इसके आधे से भी कम 18 प्रतिशत था और उसे 2 सीटें हासिल हुईं थीं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के खाते में 22 सीटें गईं। कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, कभी 4 दशक तक बंगाल में राज करने वाले वामदलों का सबसे बड़ा डर सच साबित हो गया और राज्य में उनका सूपड़ा साफ हो गया।

जानकारी

भाजपा ने किया ममता के नारे का इस्तेमाल

भाजपा ने अपने प्रचार में 'चुपचाप कमल छाप' (चुपचाप कमल को वोट दें) नारे का इस्तेमाल किया, जो ममता के 'चुपचाप फूले छापे' नारे की याद दिलाता है, जिसका उपयोग उन्होंने 34 साल के वामदलों के राज को खत्म करने के लिए किया था।

रणनीति

ममता की छवि का भाजपा ने उठाया फायदा

भाजपा ने बंगाल में ममता की 'तुष्टिकरण' वाली छवि को जमकर भुनाया। उनकी इस छवि का फायदा उठाते हुए पार्टी चुनाव को धार्मिक रंग देने में कामयाब रही। ममता के इतिहास ने उसके दावों को और मजबूती दी और उनकी 'मुस्लिम हितैषी' छवि ने भाजपा को मदद पहुंचाई। धार्मिक रंग के अलावा बंगाल की राजनीतिक हिंसक भी रही है और इन दोनों का फायदा उठा भाजपा अपने पैर जमाने में कामयाब रही।

हिंसक राजनीति

बंगाल की हिंसक राजनीति का भाजपा को फायदा

बंगाल की राजनीति का हिंसक चरित्र भी सबको पता है और इस बार भी कुछ अलग नहीं हुआ और अन्य राज्यों के मुकाबले यहां चुनाव ज्यादा हिंसक रहे। भाजपा ने TMC की हिंसक राजनीति और ढेरों FIR का सामना कर रहे अपने कार्यकर्ताओं को कानूनी और अन्य सहायता प्रदान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। भाजपा के बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कार्यकर्ताओं को 'कुछ भी हो जाए भागना नहीं है' का संदेश दिया था।

आंकलन

वामदलों को वोटबैंक भाजपा के खाते में

चुनाव परिणाम से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि वामदलों का वोटबैंक भाजपा की तरफ खिसक गया है। यहां 204 में उन्हें 22.96 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, इस बार उनके वोट मात्र 6.54 प्रतिशत पर सिमट कर रह गए। साफ है कि वामदलों के लगातार कमजोर होने से निराश इस वोटबैंक ने भाजपा का दामन थाम लिया है। उसके कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल हुए, जिसका भाजपा को फायदा हुआ।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव

2021 में ममता के सामने गद्दी बचाने की चुनौती

अब सबकी निगाहें 2021 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव पर लगी है। सफलता का स्वाद चख चुकी भाजपा का लक्ष्य अब राज्य में सरकार बनाने का है और उसे रोकना ममता और TMC के लिए एक बड़ी चुनौती है। अगर ममता को अपनी गद्दी बचानी है तो उसे अपनी गलतियों की समीक्षा करनी होगी। वहीं, भाजपा अब और भी आक्रामक होकर प्रचार करेगी, जिससे राज्य में हिंसा बढ़ने की संभावना भी है।