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    ममता बनाम मोदी: क्या है शारदा घोटाला और कैसे तृणमूल से जुड़े हैं इसके तार, जानिये

    ममता बनाम मोदी: क्या है शारदा घोटाला और कैसे तृणमूल से जुड़े हैं इसके तार, जानिये

    लेखन मुकुल तोमर
    Feb 05, 2019
    03:25 pm

    क्या है खबर?

    कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पर केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) के छापे के मामले ने ममता बनर्जी बनाम मोदी सरकार का रूप ले लिया है।

    CBI की कार्रवाई के विरोध में ममता धरने पर बैठी हैं और पूरा विपक्ष उनके पीछे लामबंद है।

    मामले की चर्चा के दौरान बार-बार शारदा चिटफंड घोटाले का जिक्र आ रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि इस घोटाले में क्या हुआ था?

    आइए जानते हैं शारदा चिटफंड घोटाला क्या है।

    शारदा समूह

    ऐसे हुई शारदा समूह की शुरुआत

    साल 2000 की शुरुआत में कारोबारी सुदिप्तो सेन ने शारदा समूह की शुरुआत की और सामूहिक निवेश योजना शुरु की।

    समूह ने कई कंपनियों के नेटवर्क के जरिए छोटे निवेशकों को ज्यादा लाभ के वादे के साथ योजना में शामिल किया।

    ललचाऊ और लुभावनी योजनाओं (पॉन्जी स्कीम) की तरह इस योजना में भी पैसा एजेंट्स के जरिए इकट्ठा किया गया और उन्हें 25 प्रतिशत कमीशन दिया गया।

    योजना में ज्यादातर लोगों ने 50-50 हज़ार रुपए का निवेश किया।

    फैलाव

    जल्द ही अन्य राज्यों में फैली योजना

    योजना के जरिए शारदा ने कुछ ही सालों में 2,500 करोड़ रुपए जमा कर लिए।

    कंपनी ने चर्चित फुटबॉल क्लबों और मीडिया समूहों में निवेश किया और मिथुन चक्रवर्ती जैसे फिल्म स्टार्स से विज्ञापन कराया।

    जल्द ही योजना ओडिशा, असम और त्रिपुरा तक फैल गई और निवेशकों की संख्या 17 लाख तक पहुंच गई।

    कंपनी ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के नियमों का उल्लंघन करते हुए निवेशकों को सुरक्षित ऋणपत्र जारी कर दिए।

    नियम

    SEBI के नियमों का किया उल्लंघन

    SEBI के नियमों के अनुसार, 50 से ज्यादा निवेशकों से पैसे इकट्ठा करने के लिए कंपनियों को उसकी इजाजत लेनी होती है और पूरा प्लान पेश करना होता है।

    जब 2009 में SEBI ने शारदा के तरीके पर सवाल खड़े किए तो वह 239 छोटी-छोटी कंपनियों में बंट गई।

    इन कंपनियों के जरिए शारदा समूह ने पैसे इकट्ठा करना जारी रखा।

    कई लोगों ने योजना में चिटफंड के जरिए निवेश किया। चिटफंड योजनाएं राज्य सरकार के अधिकार-क्षेत्र में आती हैं।

    चिटफंड योजना

    अप्रैल 2013 में डूब गई योजना

    SEBI ने 2012 में शारदा से उसकी मंजूरी मिलने तक निवेशकों से पैसे लेना बंद करने को कहा।

    जनवरी 2013 में पहली बार समूह के पास जितने पैसे आए, उससे ज्यादा पैसे उसके पास से गए और अप्रैल आते-आते योजना फेल हो गई।

    सुदिप्तो सेन पश्चिम बंगाल छोड़कर भाग गया।

    भागने से पहले लिखे गए 18 पेजों के पत्र में उसने कई राजनेताओं पर गलत निवेश करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया, जिससे कंपनी डूब गई।

    SIT

    2013 में राजीव कुमार की अध्यक्षता में गठित हुई SIT

    सेन को उसकी सहयोगी देबजानी मुखर्जी के साथ 20 अप्रैल, 2013 को गिरफ्तार किया गया।

    जांच में सामने आया कि शारदा ने दुबई, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर जैसी जगहों पर अपने पैसों का निवेश किया था।

    मामले में पश्चिम बंगाली की ममता बनर्जी सरकार ने 2013 में विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया।

    विवादों के केंद्र में चल रहे कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार इस SIT के अध्यक्ष थे।

    उधर असम में CBI मामले की जांच कर रही थी।

    तृणमूल कांग्रेस

    शारदा से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का गहरा संबंध

    घोटाले की पहुंच कई राज्यों में होने के कारण मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े सारे केस CBI को दे दिए और SIT को सारे आरोपियों और सबूतों को CBI को सौंपना पड़ा।

    घोटाले में ममता की तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं और सांसदों से CBI ने पूछताछ की और सृंजय बोस, कुणाल घोष और मदन मित्रा को गिरफ्तार किया।

    भाजपा में शामिल हो चुके मुकुल रॉय और हेमंत बिस्वा का नाम भी मामले में सामने आया था।

    राजीव कुमार

    राजीव पर सारे सबूत नहीं सौंपने का आरोप

    CBI का आरोप है कि राजीव की अध्यक्षता वाली SIT ने सारे सबूत उसे नहीं सौंपे और वह उनसे पूछताछ करना चाहती है।

    उनका आरोप है कि SIT ने उसे सेन की डायरी नहीं सौंपी, जिसमें बड़े लोगों को दिए गए पैसों का हिसाब लिखा हुआ था।

    CBI ने राजीव को 5 समन भेजे, लेकिन वह उसके सामने पेश नहीं हुए।

    इसीलिए CBI को रविवार को राजीव के घर धमकने की जरूरत पड़ी और राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया।

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