नागरिकता कानून: भाजपा की सहयोगी पार्टी का यू-टर्न, समर्थन के बाद अब जाएगी सुप्रीम कोर्ट
नागरिकता कानून पर अब भाजपा के सहयोगी भी उसके खिलाफ होते जा रहे हैं। असम में भाजपा की मुख्य सहयोगी असम गण परिषद (AGP) ने इस विवादित कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। शनिवार को AGP के शीर्ष नेताओं की अहम बैठक के बाद ये फैसला लिया गया है। बता दें कि असम में भाजपा और AGP की गठबंधन में सरकार है और संसद में उसने नागरिकता (संशोधन) बिल के समर्थन में वोट दिया था।
क्यों लिया AGP ने यू-टर्न?
संसद में बिल के समर्थन में वोट देने के बाद नागरिकता कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के AGP के इस यू-टर्न के पीछे असम में कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन हैं। खुद AGP के कई नेता पार्टी छोड़कर इन प्रदर्शनों से जुड़ गए हैं। विरोध की इसी हवा ने AGP को यू-टर्न लेने को मजबूर किया है। पार्टी ने मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का फैसला भी किया है।
अवैध शरणार्थियों के विरोध से ही जन्मी है AGP
बता दें कि AGP का आधार अवैध शरणार्थियों का विरोध रहा है। पार्टी का जन्म ही 1979 से लेकर 1985 तक चले असम आंदोलन से हुआ था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से आकर अवैध रूप से असम में रह रहे लोगों को राज्य से बाहर किया जाना था। ऐसे में पार्टी का संसद में नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन में वोटिंग करना उसके कई पदाधिकारियों के गले नहीं उतरा और उन्होंने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया।
भाजपा के कई नेताओं ने भी दिया इस्तीफा
केवल AGP ही नहीं असम भाजपा के कई नेताओं ने भी नागरिकता कानून के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दिया है। असम भाजपा के वरिष्ठ नेता और असम पेट्रोकेमिकल लिमिटेड के चेयरमैन जगदीश भुयन, मशहूर अभिनेता जतिन बोरा और रवि शर्मा इस्तीफा देने वाले इन लोगों में शामिल हैं। इनके अलावा विधानसभा के पूर्व स्पीकर पुलकेश बरुआ ने भी मुद्दे पर भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। ये सभी कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों से जुड़ गए हैं।
नागरिकता कानून के खिलाफ क्यों हैं असम के लोग?
दरअसल, नए नागरिकता कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में होने वाले धार्मिक अत्याचार से भागकर भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया है। असम में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आकर लोग बसे हुए हैं और असम के मूल निवासी उन्हें राज्य से बाहर करना चाहते हैं। लेकिन इसके विपरीत ये कानून गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दे देगा।
असम समझौते को अमान्य करता है नागरिकता कानून
असम के लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देकर ये कानून 1985 में हुए असम समझौते को अमान्य करता है, जिसमें 1971 के बाद असम में आने वाले हर धर्म के विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई है। नए कानून के बाद असम के लोगों को भाषाई और सांस्कृतिक पहचान खोने का डर सता रहा है जो राज्य में एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है।
हिंसक से शांतिपूर्ण हुए असम में हो रहे प्रदर्शन
इसी कारण असम के लोग बड़ी संख्या में सड़क पर उतरकर इस कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। पहले ये प्रदर्शन हिंसक रहे और आगजनी की घटनाएं देखने को मिली, लेकिन अब ये पूरी तरह से शांतिपूर्ण हो चुके हैं।