अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: जानें कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत और भारत के लिए इसका महत्व
क्या है खबर?
आज पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है। इसे मनाने की शुरुआत आज से 18 साल पहले हुई थी।
विश्वपटल पर अंतरराष्ट्रीय दिवस को लाने का श्रेय भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश को जाता है।
भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है। यहाँ लगभग हर राज्य की अपनी भाषा है।
ऐसे में आइए जानें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुरुआत कब और कैसे हुई थी और भारत के लिए इसका क्या महत्व है।
थीम
19वें अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम है विकास, शांति और संधि में मातृभाषा का योगदान
विश्व में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषित को बढ़ावा देने और विश्व की तमाम मातृभाषाओं के प्रति पूरी दुनिया को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस साल 19वाँ मातृभाषा दिवस मनाया जा है। इस बार के अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की थीम, "विकास, शांति और संधि में मातृभाषाओं के मायने" है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
इतिहास
पाकिस्तान ने उर्दू को दिया राष्ट्र्रभाषा का दर्जा
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुरुआत के बारे में जानने के लिए आपको इतिहास पर नज़र डालना होगा।
1948 में जब पाकिस्तान, भारत से अलग हो चुका था, तब वहाँ की सरकार ने उर्दू को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया। उस समय बांग्लादेश, पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था।
बांग्लादेश में बांग्ला भाषा बोली जाती थी, इसलिए मातृभाषा की रक्षा के लिए 21 फरवरी, 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान सरकार की नीति का कड़ा विरोध किया।
विरोध प्रदर्शन
नरसंहार में कई विद्यार्थी हुए शहीद
विरोध प्रदर्शन बहुत ज़्यादा होने लगा था, जिसे रोक पाना मुश्किल हो गया था। आख़िरकार पाकिस्तान पुलिस ने बेरहमी से प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया।
उस नरसंहार में न जाने कितने विद्यार्थियों ने मातृभाषा के लिए बलिदान दे दिया। इसके बाद भी वहाँ प्रदर्शन नहीं रुका।
आख़िरकार चार साल बाद हारकर पाकिस्तान सरकार को 29 फरवरी, 1956 को बांग्ला भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा देना ही पड़ा।
जानकारी
पहली बार 21 फरवरी, 2000 में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
मातृभाषा की लड़ाई सफल हुई और शहीद हुए युवाओं की स्मृति में 1999 में 21 फरवरी को यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पहली बार 21 फरवरी, 2000 को मनाया गया।
भाषायी द्वंद
भारत में काफ़ी समय से चल रहा है भाषायी द्वंद
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देना है।
बहुभाषी राष्ट्र होने की वजह से मातृभाषाओं के प्रति भारत का उत्तरदायित्व बहुत ज़्यादा मायने रखता है।
भारत में भाषाओं को लेकर काफ़ी समय से विवाद चलता रहा है और अभी भी चल रहा है। ख़ासतौर से राजभाषा हिंदी और देश की अन्य भाषाओं को लेकर द्वंद ज़्यादा देखने को मिलता है।
डाटा
भारत की 22 भाषाओं को दिया गया है आधिकारिक भाषा का दर्जा
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 19,500 से ज़्यादा भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं, जिनमें से 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। यहाँ 234 मातृभाषाएँ 10,000 से ज़्यादा लोगों के समूहों द्वारा बोली जाती है।
महत्व
भारत के माहौल के हिसाब से प्रासंगिक है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
गैर हिंदीभाषियों का हमेशा से यह आरोप रहा है कि हिंदी को उनके ऊपर थोपा जा रहा है, वहीं हिंदीभाषी, देश की अन्य भाषाओं को सीखने के प्रति लालायित नहीं होते हैं और न ही अन्य भाषाओं के प्रति कोई संवेदनशीलता रखते हैं।
ऐसे में भाषाओं का यह द्वंद कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इतनी विविधता होने के बाद भी भारत पूरी दुनिया में 'अनेकता में एकता' के प्रतीक के तौर पर जाना जाता है।
जानकारी
ख़तरे में है 3,000 भाषाओं का अस्तित्व
यूनेस्को की इस पहल ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मातृभाषा ही व्यक्ति के संस्कारों की संवाहक है। जानकारी के अनुसार विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं का अस्तित्व ख़तरे में है, जिन्हें बचाने में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
बयान
व्यक्ति के संपूर्ण विकास में अहम भूमिका निभाती है मातृभाषा
किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण विकास में मातृभाषा का योगदान बहुत ज़्यादा होता है।
इस बारे में पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा था, "मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी।"
अब्दुल कलाम द्वारा मातृभाषा के लिए कहा गया एक-एक शब्द भारत के भाषायी द्वंद को समाप्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है। हालाँकि ऐसा कब होगा, यह देखने वाली बात है।