
AAP के सरकारी विज्ञापनों के नाम पर "राजनीतिक प्रचार" करने का मामला क्या है?
क्या है खबर?
सरकारी विज्ञापनों के नाम पर राजनीतिक प्रचार करने के मामले में आम आदमी पार्टी (AAP) की मुसीबत बढ़ गई है और दिल्ली सरकार के सूचना और प्रचार निदेशालय (DIP) ने उसे लगभग 164 करोड़ रुपये का रिकवरी नोटिस जारी किया है।
पार्टी को 10 दिन के अंदर ये रकम वापस करने को कहा गया है और ऐसा न करने पर उसकी संपत्ति जब्त की जा सकती है।
आइए आपको बताते हैं कि ये पूरा मामला क्या है।
शुरूआत
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से जुड़ी है मामले की जड़
इस पूरे विवाद की जड़ मई, 2015 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से जुड़ी है। अपने इस फैसले में कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों के लिए कुछ गाइलाइंस जारी की थीं और उनकी सामग्री को रेगुलेट करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
उसके निर्देश का पालन करते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अप्रैल, 2016 में तीन सदस्यीय सरकारी विज्ञापन सामग्री नियमन समिति (CCRGA) गठित की थी।
मौजूदा विवाद
CCRGA और मौजूदा विवाद का क्या संबंध है?
CCRGA के गठन के कुछ महीने बाद कांग्रेस नेता अजय माकन ने उसके पास दिल्ली की AAP सरकार के खिलाफ एक शिकायत दाखिल की और उस पर सरकारी विज्ञापनों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।
शिकायत मिलने के बाद CCRGA ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किए। दिल्ली हाई कोर्ट से निर्देश मिलने के बाद CCRGA ने मामले की जांच भी शुरू कर दी और 16 सितंबर, 2016 को एक अहम आदेश जारी किया।
फैसला
CCRGA ने अपने आदेश में क्या कहा?
CCRGA ने अपने आदेश में कहा कि उसकी जांच में पाया गया है कि दिल्ली की AAP सरकार ने सरकारी विज्ञापनों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के कई प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
उसने कहा कि जांच में दिल्ली सरकार को झूठे और भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने, सत्तारूढ़ पार्टी का नाम लिखने, खुद का महिमामंडन करने और राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने आदि से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया है।
खर्च का अनुमान
कैसे पता चली विज्ञापनों पर खर्च हुई रकम?
CCRGA ने अपने आदेश में दिल्ली सरकार के DIP को गाइडलाइंस का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों की पहचान करने, उन पर खर्च हुई रकम का अनुमान लगाने और इसे AAP से वसूलने का निर्देश दिया।
अपने स्तर पर आंकलन के बाद DIP ने इन विज्ञापनों पर कुल 97.14 करोड़ रुपये खर्च होने की बात कही। इनमें से लगभग 42.27 करोड़ रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके थे, वहीं 54.87 करोड़ रुपये बकाया थे।
कदम
खर्च के आंकलन के बाद DIP ने क्या कार्रवाई की?
विवादित विज्ञापनों पर खर्च हुई रकम का अनुमान लगाने के बाद DIP ने 30 मार्च, 2017 को AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल को पहला रिकवरी नोटिस जारी किया।
इस नोटिस में केजरीवाल को 42.27 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में जमा करने और 54.87 करोड़ रुपये का बकाया सीधा प्रकाशकों को देने का निर्देश दिया गया।
AAP ने अब तक इस आदेश का पालन नहीं किया है। यही नहीं, 54.87 करोड़ रुपये के बकाये का भी DIP ने खुद भुगतान कर दिया।
मौजूदा कारण
अब अचानक से सुर्खियों में कैसे आया मामला?
इस मामले के अभी सुर्खियों में आने का कारण दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना का दिसंबर, 2022 का एक आदेश है।
अपने इस आदेश में उन्होंने AAP से 15 दिन के अंदर 97.14 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में जमा करने को कहा था।
हालांकि, AAP ने इस आदेश का पालन नहीं किया, जिसके बाद अब DIP ने उसे अंतिम रिकवरी नोटिस भेजा है।
97.14 करोड़ रुपये और इसकी ब्याज लगाकर कुल 164 करोड़ रुपये की रिकवरी की जानी है।
दूसरा पक्ष
AAP का आरोपों पर क्या कहना है?
AAP कहती आई है कि जनता को सरकार की विभिन्न योजनाओं और अभियानों की जानकारी होनी चाहिए और इसके लिए विज्ञापन जरूरी हैं।
पार्टी ने मामले में उपराज्यपाल पर भी सवाल उठाए हैं और उसका कहना है कि उपराज्यपाल को इस तरह का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।
AAP का कहना है कि जब भाजपा के मुख्यमंत्रियों से ऐसे ही मामलों में 22,000 करोड़ रुपये वसूल लिए जाएंगे, तब वह भी भुगतान कर देगी।
दिल्ली सरकार विज्ञापन
न्यूजबाइट्स प्लस
सूचना के अधिकार (RTI) के तहत दाखिल किए गए एक आवेदन के जवाब में मिले आंकड़ों के अनुसार, विज्ञापनों पर दिल्ली सरकार का खर्च पिछले 10 सालों में 4,273 प्रतिशत बढ़ गया है।
राज्य में 2015 से AAP की स्थायी सरकार है। उसके अब तक के कार्यकाल में विज्ञापनों पर खर्च में चार बार वृद्धि हुई है।
कोरोना वायरस महामारी के दौरान AAP सरकार ने 2019-20 में 199.99 करोड़ और 2020-21 में 293.20 करोड़ रुपये विज्ञापनों पर खर्च किए थे।