लोकसभा चुनावों में मोदी की हार की वजह बन सकते हैं ये पांच कारण
क्या है खबर?
आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सारी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है।
केंद्र में शासित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर से सत्ता में वापसी करना चाहेगी, वहीं विपक्षी पार्टियों का सारा जोर किसी भी कीमत पर मोदी को रोकना है।
इस रस्साकशी में कौन जीतेगा, ये तो आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा, लेकिन आज हम आपको 5 ऐसे कारण बताते हैं जिनकी वजह से भाजपा हार सकती है।
विरोधी
विपक्ष 2014 के मुकाबले ज्यादा एकजुट
2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का एक अहम कारण उसके विरोधी वोटों का बंटना भी था।
विरोधी खेमे के वोट बंटने से भाजपा को सीधा फायदा हुआ और वह जीत दर्ज करने में सफल रही।
लेकिन 2019 में विपक्ष पिछली बार के मुकाबले ज्यादा एकजुट है।
भले ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई महागठबंधन शक्ल न ले पाया हो, लेकिन राज्य स्तर पर बन रहे गठबंधनों में भी भाजपा की नांव रोकने का दम है।
विधानसभा चुनाव
हालिया विधानसभा चुनाव के नतीजे
हाल ही में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणामों से साफ हो गया कि इस बार भाजपा के पक्ष में कोई लहर नहीं है।
इनमें से तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी।
भले ही इन चुनावों में मोदी के काम पर वोटिंग न हुई हो, लेकिन इससे जनता के मूड का जरूर पता चला।
इस जीत ने कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से पहले एक लय और नया जोश भी दे दिया है।
किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
किसान है सरकार से नाराज
तीन हिंदी राज्यों में भाजपा की हार से जो एक और बात स्पष्ट हुई, वह ये कि किसानों में सरकार को लेकर गुस्सा है।
मोदी सरकार अपने वादे के मुताबिक किसानों के जीवन में परिवर्तन करने में नाकाम रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी खस्ताहाल है।
कुल मिलाकर सरकार अपने कार्यकाल में ऐसे बेहद कम काम करने में नाकाम रही है, जिनका असर सीधा लोगों के जीवन में और जमीन पर दिखे।
असहनशीलता
बढ़ती धार्मिक असहनशीलता
मोदी सरकार के कार्यकाल में धार्मिक असहनशीलता बढ़ने का आरोप बार-बार लगता रहता है। सरकार के कार्यकाल में विभिन्न समुदायों के बीच दूरी बढ़ी है।
कट्टरपंथी संगठनों की हिम्मत भी अपने चरम पर है और वह कानून की भी धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आ रहे। मॉब लिंचिंग इसी से निकला एक 'जिन्न' है।
भारत के लोगों के बारे में आम राय है कि वह शांतिप्रिय होते हैं, ऐसे में यह बढ़ती हुई असहशीलता सरकार के खिलाफ जा सकती है।
व्यक्तिगत छवि
ब्रांड मोदी पर 'दाग'
2014 में अच्छे प्रशासक की छवि के साथ दिल्ली आए मोदी पर भी निजी 'दाग' लगे हैं।
नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दों पर उनके फैसलों से समाज के अलग-अलग वर्गों में नाराजगी है।
राफेल पर राहुल गांधी यह छवि बनाने में कुछ हद तक कामयाब रहे हैं कि 'चौकीदार चोर है'।
बैंक के पैसे लेकर भागे कारोबारियों का मुद्दे भी उनकी साख पर बट्टा लगाने वाला साबित हुआ है।
ये 'दाग' चुनाव में निर्णायक भी सिद्ध हो सकते हैं।