पित्त दोष को संतुलन में कर सकते हैं ये योगासन, ऐसे करें अभ्यास
आयुर्वेद के मुताबिक शरीर के वात, पित्त और कफ दोष का संतुलन में होना जरूरी है क्योंकि इनके असंतुलन से शरीर में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। खासकर, जब बात पित्त दोष की हो तो इसका असंतुलन शरीर को कई गंभीर शारीरिक और त्वचा संबंधित समस्याओं का घर बना सकता है। आप चाहें तो कुछ योगासनों की मदद से पित्त दोष को संतुलन में कर सकते हैं। आइए उन योगासनों के अभ्यास का तरीका जानते हैं।
चक्रासन
इस योगासन का अभ्यास करने के लिए सबसे पहले योगा मैट बिछाकर पैर फैलाते हुए पीठ के बल लेट जाएं। अब धीरे-धीरे अपने घुटनों को मोड़े और एड़ियों को नितंबों से सटाएं, फिर अपनी कोहनियां मोड़कर हथेलियों को सिर के ऊपर से ले जाते हुए जमीन पर रखें। इसके बाद सामान्य तरीके से सांस लेते हुए धीरे-धीरे सिर को उठाने के साथ पीठ को मोड़ने की कोशिश करें। कुछ देर इसी मुद्रा में रहने के बाद सामान्य हो जाएं।
अर्ध चंद्रासन
अर्ध चंद्रासन के लिए योगा मैट पर दोनों पैरों को सामान दूरी पर फैलाकर खड़े हो जाएं। अब दाईं ओर झुकते हुए दाएं हाथ को दाएं पैर के पास रखें और बाएं पैर को ऊपर उठाएं। वहीं, बाएं हाथ को सीधे आसमान की ओर उठाएं और इस मुद्रा में अपना ध्यान बाएं हाथ पर केंद्रित करें। इस दौरान शरीर का भार दाहिने पैर और हाथों की उंगलियों पर रखें। कुछ देर इसी मुद्रा में रहने के बाद सामान्य हो जाएं।
बकासन
बकासन के लिए पहले योगा मैट पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं और अपने हथेलियों को जमीन पर रखें। अब दोनों पैरों को अंदर की तरफ खींचते हुए घुटनों को कोहनियों के पास ले जाएं, फिर शरीर के भार को हथेलियों पर डालकर अपने दोनों पैरों को ऊपर उठाएं और घुटनों को कोहनी के ऊपर ट्राइसेप्स के साथ सटाएं। कुछ देर इसी मुद्रा में बने रहें और फिर सामान्य स्थिति में आ जाएं।
बालासन
बालासन करने के लिए योगा मैट पर वज्रासन की मुद्रा में बैठें और गहरी सांस लेते हु हाथों को ऊपर उठाए, फिर सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुककर माथे को जमीन से सटाये। इस अवस्था में दोनों हाथ सामने, माथा जमीन से टिका हुआ और छाती जांघों पर रहेगी। कुछ सेकंड इसी मुद्रा में रहकर सामान्य रूप से सांस लेते रहें। इसके बाद सांस लेते हुए वापस वज्रासन की मुद्रा में आ जाए और सामान्य हो जाए।