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    कोरोना वायरस: क्या होती है हर्ड इम्युनिटी और यह कैसे काम करती है?

    कोरोना वायरस: क्या होती है हर्ड इम्युनिटी और यह कैसे काम करती है?
    लेखन भारत शर्मा
    Jul 12, 2020, 12:52 pm 1 मिनट में पढ़ें
    कोरोना वायरस: क्या होती है हर्ड इम्युनिटी और यह कैसे काम करती है?

    कोरोना वायरस महामारी के फैलने के बाद से कई शब्दों ने आम आदमी की बोलचाल में अपनी मजबूत जगह बना ली है। इनमें सोशल डिस्टेंसिंग, महामारी, आइसोलेशन आदि प्रमुख है। कोरोना महामारी ने लोगों को "हर्ड इम्युनिटी" की अवधारणा से भी परिचित कराया है, जो आमतौर पर टीकाकरण की बातचीत में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। यह क्या है? और यह कैसे काम करती है? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ।

    क्या होती है हर्ड इम्युनिटी?

    हर्ड इम्युनिटी का मतलब किसी समाज या समूह के कुछ प्रतिशत लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के माध्यम से किसी संक्रामक रोग के प्रसार को रोकना है। यह संक्रमण के प्रसार के क्रम को तोड़ने में मदद करती है। उदाहरण के तौर पर यदि 80 प्रतिशत आबादी में रोग प्रतिरोधक क्षमता है तो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले पांच लोगों में से चार बीमार नहीं पड़ेंगे और आगे बीमारी का प्रसार नहीं हो सकेगा।

    यह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

    हालांकि, आप संक्रमण से लड़ने के लिए अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के बेहतर होने के लिए आश्वस्त हो सकते हैं, लेकिन यह मुद्दा नहीं है। हर्ड इम्युनिटी उन लोगों के लिए कुछ सुरक्षा प्रदान करती है जिन्हें संक्रमण (बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाएं आदि) का सबसे अधिक खतरा रहता है। ऐसे लोग भी हैं जिनका टीकाकरण नहीं किया जा सकता है, या जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है। इनमें कैंसर से पीड़ित लोग शामिल हैं।

    कैसे हासिल की जा सकती है हर्ड इम्युनिटी?

    हर्ड इम्युनिटी की सफलता बचाव के लिये दिये जाने वाले टीके के प्रभाव, संक्रमण और टीके के प्रभाव की अवधि और संक्रमण के प्रसार के लिये उत्तरदाई समूह पर निर्भर करती है। गणितीय रूप में इसे 'हर्ड इम्युनिटी थ्रेसहोल्ड' के जरिए निर्धारित किया जाता है। यह उन लोगों की संख्या को दर्शाता है जिन पर संक्रमण का प्रभाव और संचार नहीं हो सकता। कोरोना के प्रति हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने हेतु समूह के 70% लोगों का प्रतिरक्षित होना आवश्यक है।

    यह कोरोना के खिलाफ कैसे कारगर है?

    आमतौर पर वैक्सीन के संदर्भ में हर्ड इम्युनिटी की बात की जाती है, क्योकि अभी तक कोरोना की कोई वैक्सीन नहीं बनी है। हालांकि, हर्ड इम्युनिटी भी स्वाभाविक रूप से प्राप्त की जा सकती है। इस प्रक्रिया में कई लोग संक्रमित होते हैं और रोग के कारक के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करते हैं। कोरोना महामारी के शुरुआती चरण में ब्रिटेन ने हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए लोगों को हल्का बीमार होने देने की योजना बनाई थी।

    नैचुरल इम्युनिटी विकसित करने में क्या है नुकसान?

    जैसा अभी तक कोरोना की कोई वैक्सीन नहीं बनी है तो हर्ड इम्युनिटी के कुछ रूप को प्राप्त करने के लिए नैचुरल इम्युनिटी विकसित की जा सकती है। हालांकि, इससे कमजोर इम्यूनिटी और गंभीर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।

    नैचुरल इम्युनिटी विकसित करने के प्रयास में ध्वस्त हो सकती है चिकित्सा प्रणाली

    नैचुरल इम्युनिटी विकसित करने के प्रयास में लाखों लोग बीमारी की चपेट में आ सकते हैं और इससे किसी भी देश के चिकित्सा प्रणाली ध्वस्त हो सकती है। इससे मृत्यु दर में भी इजाफा होगा। ऐसे में महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क जैसे उपाय अपनाए गए हैं। इससे संक्रमण बहुत कम लोगों तक पहुंच रहा है और बहुत कम अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। चरमराई चिकित्सा व्यवस्था सभी को प्रभावित करती है।

    क्या कहता है शोध?

    हाल में बड़े पैमाने पर किए गए स्पैनिश शोध में पाया गया था कि केवल 5% आबादी में ही कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित थीं। विशेष रूप से, स्पेन सबसे ज्यादा खराब स्थिति में था। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोरोना के खिलाफ प्रतिरक्षा लंबे समय तक नहीं रह सकती है। इससे भी महत्वपूर्ण है कि यदि कोरोना से संक्रमित होने या एंटीबॉडी होने से शोधकर्ताओं को संदेह है कि यह आपको दोबारा संक्रमण से बचा सकता है।

    कोरोनो वायरस के खिलाफ जीवन भर नहीं रह सकती इम्युनिटी

    जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार यदि कोरोना के लिए जिम्मेदार वायरस अन्य कोरोनवीर के समान व्यवहार करता है तो रोग के खिलाफ इम्युनिटी केवल महीनों या शायद वर्षों तक रह सकती है, लेकिन जीवनभर नहीं रह सकती।

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