नए कोरोना वायरस की वैक्सीन बनने में इतना समय क्यों लग रहा है?
क्या है खबर?
तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोना वायरस (COVID-19) के संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है।
अभी तक लगभग 11 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और 60,000 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
इस महामारी पर काबू पाने में तभी सफल हुआ जा सकता है जब इसका इलाज मिल जाए। कई देशों के वैज्ञानिक इलाज ढूंढने में लगे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा।
आइये, समय लगने की वजह जानते हैं।
जानकारी
44 संभावित वैक्सीन पर चल रहा काम
पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा था कि अलग-अलग देशों में 44 संभावित वैक्सीन पर काम चल रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इलाज के लिए वैक्सीन आने में कम से कम 12-18 महीने का समय लगेगा।
तरीका
पहले जानिये वैक्सीन काम कैसे करती है
वैक्सीन के जरिये हमारे इम्युन सिस्टम में कुछ मॉलिक्यूल्स, जिन्हें वायरस का एंटीजंस भी कहा जाता है, भेजे जाते हैं।
आमतौर पर ये एंटीजंस कमजोर या निष्क्रिय रूप में होते हैं ताकि हमें बीमार न कर सकें, लेकिन हमारा शरीर इन्हें गैरजरूरी समझकर एंटीबॉडीज बनानी शुरू कर देता है ताकि उनसे हमारी रक्षा कर सके।
आगे चलकर अगर हम उस वायरस से संक्रमित होते हैं तो एंटीबॉडीज वायरस को मार देती हैं और हम बीमार होने से बच जाते हैं।
वैक्सीन
वैक्सीन तैयार होने में लग सकते हैं साल
जानकारों का कहना है कि कई वैक्सीन तैयार और इलाज के लिए इस्तेमाल करने में दशकों लग जाते हैं।
उस हिसाब से कोरोना वायरस की वैक्सीन का 18 महीने में तैयार होना राहत की बात है।
इसकी एक वजह यह है कि COVID-19 कोरोना वायरस ग्रुप से संबंध रखता है, जिस पर पहले से ही काफी स्टडी और रिसर्च हो चुकी है।
इससे पहले कोरोना वायरस के कारण SARS और MERS जैसी बीमारियां फैली थीं।
जानकारी
COVID-19 के बारे में ये बातें हैं पता
चीन के वैज्ञानिकों ने नए कोरोना वायरस की जिनोम सीक्वेंसिंग की जानकारी दुनिया को दी है। इसमें पता चला है कि इसकी जेनेटिक बनावट 79 प्रतिशत SARS और 50 प्रतिशत MERS से मिलती है।
वैक्सीन
लंबे ट्रायल हैं वैक्सीन बनने में लगने वाले समय की वजह
अधिकतर वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल होने से पहले जानवरों पर ट्रायल करके देखा जाता है।
हालांकि, अमेरिका में कोरोना वायरस के लिए नया 'मोडर्ना ट्रायल' शुरू हुआ है। इसमें जानवरों पर ट्रायल को छोड़कर सीधा इंसानों पर ट्रायल शुरू हुआ है ताकि वैक्सीन बनने में लगने वाले समय को कम किया जा सके।
इसके बावजूद इंसानी ट्रायल में भी कई प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। वैक्सीन का क्लीनिकल डेवलेपमेंट तीन चरणों में पूरा होता है।
शुरूआती चरण
कई महीनों तक चलते हैं पहले और दूसरे चरण
पहला चरण छोटे स्तर पर होता है और इसमें देखा जाता है कि कोई वैक्सीन इंसानों के लिए सेफ है या नहीं।
आमतौर पर यह ट्रायल 100 लोगों पर होता है। यह चरण कई महीनों तक चलता है।
दूसरे चरण के ट्रायल बड़े होते हैं और इसमें सैंकड़ों चीजें शामिल होती है। इसमें मुख्यत: यह देखा जाता है कि कोई वैक्सीन बीमारी के प्रति कितनी कारगर है।
यह चरण कई महीनों से लेकर कई मामलों में सालों तक चलता है।
ट्रायल
कई सालों तक चल सकता है तीसरा चरण
फिर आता है तीसरा चरण, इसमें मेडिकल सुविधाओं समेत हजारों लोग शामिल होते हैं। इस चरण में यह देखा जाता है कि तय समय के दौरान वैक्सीन बीमारी से लड़ने में कितनी कारगर है। यह चरण कई सालों तक चल सकता है।
तीसरे चरण के बाद ही वैक्सीन को बाजार में लाने के लिए अधिकृत एजेंसियों के पास लाइसेंस के लिए आवेदन किया जा सकता है। इसी दौरान विशेषज्ञ वैक्सीन की समीक्षा भी करते हैं।
जानकारी
तेजी से चल रहा कोरोना वायरस की वैक्सीन पर काम
COVID-19 के इलाज के लिए वैक्सीन बनाने का काम तेज गति से चल रहा है। फिर भी लोगों के इलाज के लिए उपलब्ध होने में इसे 12-18 महीने का समय लग सकता है। वैक्सीन बनाने के साथ-साथ इसका प्रभाव देखना भी जरूरी होता है।