प्राकृतिक खूबसूरती से समृद्ध हैं भारत के ये पांच खूबसूरत गांव
शहरी जीवन शायद कई लोगों को पसंद हो, लेकिन यहां वो सुकून नहीं, जो गांव में है। इसका मुख्य कारण है कि ये प्राकृतिक रूप से बहुत खूबसूरत और शांत वातावरण युक्त होते हैं और यहां मन को काफी सुकून भी मिलता है। भारत भी कई इको-गांवों का घर है और अगर आपको प्राकृतिक परिवेश में रहना पसंद हैं तो आइए आज हम आपको पांच प्रमुख गांवों के बारे में बताते हैं, जहां आपकी छुट्टियां आनंदमय तरीके बितेंगी।
पिपलांत्री (राजस्थान)
राजस्थान के पिपलांत्री गांव ने तब लोकप्रियता हासिल की, जब उसने बेटी पैदा होने पर पेड़ लगाने के लिए एक अनूठा आंदोलन शुरू किया। जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो गांव वाले पेड़ लगाने की परंपरा को निभाते हैं। इसका उद्देश्य लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करना और राज्य के हरित आवरण को भी जोड़ना है। इस गांव में जाकर आपको प्रकृति के प्रति प्रेम का अलग ही अहसास होगा।
बघूवर (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित बघूवर गांव में आजादी के बाद से कोई नेता या सरपंच नहीं रहा है। साल 2007 में इसने एक खुले में शौच मुक्त (ODF) गांव बनने के लिए पूर्ण स्वच्छता हासिल की। गांव में एक भूमिगत सीवेज सेटअप और 55 से अधिक बायोगैस संयंत्र हैं, जो खाना पकाने और घरों को रोशन करने के लिए ईंधन की आपूर्ति करते हैं। इस हरे, टिकाऊ और आत्मनिर्भर गांव की साक्षरता दर भी 100 प्रतिशत है।
खोनोमा (नागालैंड)
नागालैंड में स्थित खोनोमा गांव को एशिया का सबसे पहला हरा-भरा गांव घोषित किया गया है। इस गांव में 100 से ज्यादा अलग-अलग प्रजाति के लोग रहते हैं। अगर आप गौर से इस गांव को देखेंगे तो पाएंगे कि खोनोमा में बना हर घर एक दूसरे से जुड़ा हुआ हैं। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यह पूरी जगह घूमने के लिए बेहतरीन है।
हिवरे बाजार (महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित हिवरे बाजार गांव अपनी सिंचाई प्रणाली और जल संरक्षण कार्यक्रम के लिए जाना जाता है। इस प्रणाली ने साल 1972 के भीषण सूखे से निपटने में मदद की थी। 1990 के दशक में ग्रामीणों ने जल-गहन फसलों की खेती बंद कर दी और डेयरी खेती शुरू की और अन्य जल-बचत उपायों समेत बागवानी ने भूजल स्तर को फिर से भरने में मदद की। इस गांव में 300 पानी से भरे खुले कुएं भी हैं।
ओदंठुरै (तमिलनाडु)
तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में स्थित यह खूबसूरत इको-गांव ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए जाना जाता है। इस गांव में 350 किलोवाट क्षमता वाली पवनचक्की है। इससे पैदा होने वाली 6.75 लाख यूनिट बिजली में से करीब दो लाख यूनिट तमिलनाडु बिजली बोर्ड को बेची जाती है। इस बिजली से मिलने वाले राजस्व का गांव के विकास और ऊर्जा बढ़ाने के प्रयोगों पर किया जाता है।