जंतर-मंतर पर धरना क्यों दे रहे हैं मनरेगा मजदूर?
क्या है खबर?
मीडिया की सुर्खियों से दूर दिल्ली के जंतर-मंतर पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम करने वाले सैकड़ों मजदूर धरना दे रहे हैं।
ये मजदूर देश के अलग-अलग राज्यों से आए हैं और उनकी मांग मनरेगा के तहत मिलने वाली दैनिक मजदूरी बढ़ाने और समय पर मजदूरी देने की है।
आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि मनरेगा क्या है, मजदूर क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें कितनी मजदूरी मिल रही है।
परिचय
क्या है मनरेगा?
मनरेगा एक रोजगार गारंटी अधिनियम है जिसे 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील सरकार (UPA) सरकार लेकर आई थी।
मनरेगा में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है। इस पर होने वाला 90 प्रतिशत खर्च केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है।
इसी तरह 100 दिन से अधिक का रोजगार देने पर उसका पूरा खर्च राज्य सरकार को वहन करना पड़ता है।
इसमें लगभग 15 करोड़ सक्रिय मजदूर हैं।
प्रदर्शन
क्यों प्रदर्शन कर रहे मनरेगा मजदूर?
देश की संसद से चंद किलोमीटर दूर जंतर-मंतर पर धरना दे रहे मनरेगा मजदूरों का कहना है कि उन्हे कम मजदूरी मिलती है और इससे परिवार का पेट नहीं भरा जाता। BBC से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें ये पैसा भी देरी से मिलता है।
रिपोर्ट के अनुसार, ये मजदूर नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर चले यहां इकट्ठा हुए हैं। लगभग 15 राज्यों से सैकड़ों मजदूर इस धरने में शामिल हैं।
मजदूरी
किस राज्य में कितनी मजदूरी मिलती है?
मनरेगा के तहत अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मजदूरी मिलती है। इसमें सबसे नीचे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और त्रिपुरा हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मनरेगा में प्रति दिन 204 रुपये, झारखंड और बिहार में 201 रुपये और त्रिपुरा में 212 रुपये मजदूरी दी जाती है।
इसकी तुलना में हरियाणा प्रति दिन 331 रुपये, गोवा 315 रुपये, केरल 311 रुपये और कर्नाटक 309 रुपये देता है।
हालांकि इन राज्यों में भी ये न्यूनतम मजदूरी से कम है।
कम मजदूरी
कितनी कम मजदूरी मिलती है?
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे के मुताबिक, सरकार की कई समितियों ने कहा है कि न्यूनतम मजदूरी 350 रुपये होनी चाहिए, लेकिन मनरेगा में किसी भी राज्य में इतना पैसा नहीं दिया जाता।
सभी राज्यों की अलग-अलग न्यूनतम मजदूरी दर है। इसके हिसाब से केरल में मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से 179 रुपये कम मिलते हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में 154 रुपये, कर्नाटक में लगभग 140 रुपये और उत्तराखंड और झारखंड में लगभग 100 रुपये कम मजदूरी मिलती है।
देरी
देरी से पैसा मिलने का क्या मामला है?
मनरेगा के तहत मजदूर को काम करने के 15 दिन के अंदर पैसा देना अनिवार्य होता है। पहले आठ दिन में राज्य सरकार को ट्रांसफर ऑर्डर तैयार करके केंद्र सरकार को भेजना होता है और आखिरी सात दिन में केंद्र सरकार ये पैसा सीधे मजदूरों के अकाउंट में ट्रांसफर करती है।
10 राज्यों में अप्रैल, 2021 से सितंबर, 2021 के बीच हुए सर्वे में सामने आया था कि केंद्र 71 प्रतिशत पैसा निर्धारित समय पर ट्रांसफर नहीं कर पाई।
बजट
जुलाई तक ही खत्म हुआ दो-तिहाई बजट, आगे बढ़ेंगी मुसीबत
कम पैसा मिलने और पैसे मिलने में इस देरी के बीच इस बार मनरेगा के बजट में भी 25 प्रतिशत की कटौती की गई है और 2021-22 में 98,000 करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
इसमें से दो-तिहाई बजट तो 21 जुलाई तक ही इस्तेमाल किया जा चुका है और महज 25,000 करोड़ रुपये बचे हैं।
इन आंकड़ों को देखते हुए मनरेगा मजदूरों की आर्थिक मुसीबतें बढ़ना लगभग तय है।