लॉकडाउन: मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर शिक्षक और एक लाख रुपये कमाने वाली सॉफ्टवेयर कर्मचारी
क्या है खबर?
कोरोना वायरस महामारी के कारण कितना बड़ा आर्थिक संकट पैदा हुआ है, हैदराबाद के कुछ मामलों से इसकी बानगी मिलती हैं। यहां कुछ महीने पहले तक शिक्षक के पद पर कार्य करने वाले कई लोग अब अपना पेट भरने के लिए मनरेगा में दैनिक मजदूरी करने को मजबूर हैं।
यही नहीं एक लाख रुपये प्रति महीने कमाने वाली एक सॉफ्टवेयर कर्मचारी भी मनरेगा में मजदूरी करने जा रही है, ताकि उसकी जमापूंजी बची रहे।
शिक्षक दंपत्ति
दो महीने से नहीं मिली सैलरी, मनरेगा में काम करने जा रही शिक्षक दंपत्ति
हैदराबाद के भोंगीर-यदाद्रि गांव के रहने वाले चिरंजीवी के पास पोस्ट-ग्रेजुएशन और BEd की डिग्रियां हैं और वे पिछले 12 साल से सामाजिक विज्ञान पढ़ा रहे थे। वहीं उनकी पत्नी पद्मा के पास MBA की डिग्री है और वे एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाती थीं।
कोरोना वायरस संकट के कारण उन्हें पिछले दो महीने से सैलरी नहीं मिली है और अब वे पिछले कुछ दिनों से अपने गांव के पास मनरेगा में काम करने जा रहे हैं।
बयान
चिरंजीवी बोले- बिना सैलरी के गुजारा नामुमकिन
चिरंजीवी और पद्मा के परिवार में दो बच्चों और माता-पिता समेत छह लोग हैं और बिना सैलरी के उनका गुजारा नामुमकिन है। चिरंजीवी ने कहा, "हम जो 200-300 रुपये कमाते हैं, उससे हम परिवार के लिए कम से कम सब्जियां खरीद लेते हैं।"
उन्होंने कहा, "कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण मेरी नौकरी चली गई, इसलिए मजदूरी कर रहा हूं। केवल मेरी नहीं, हजारों युवाओं की नौकरी गई है। मैं सरकार से बेरोजगारों को कुछ मदद देने का अनुरोेध करता हूं।"
नाराजगी
मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से नाराज हैं चिरंजीवी
चिरंजीवी ने बताया कहा, "निजी प्राथमिक विद्यालों के शिक्षकों को मुश्किल से 5,000-10,000 रुपये मिलते थे। हाईस्कूल के शिक्षकों को 20,000 रुपये मिलते हैं, वहीं माध्यमिक विद्यालयों के अनुभवी शिक्षकों को 25,000 रुपये तक मिल सकते हैं। अब ये भी चला गया।"
मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करते हुए चिरंजीवी ने कहा कि उन्होंने वादे किए थे, लेकिन सत्ता में आने के बाद कभी भी शिक्षकों की भर्ती नहीं की।
बयान
एक शिक्षक बोले- फीस इकट्ठा करने के समय हुआ लॉकडाउन
एक माध्यमिक विद्यालय में प्राणि विज्ञान पढ़ाने वाले कृष्णा ने कहा कि निजी विद्यालयों के शिक्षकों के लिए ये असामान्य नहीं है क्योंकि वैसे भी ज्यादातर शिक्षकों को केवल 10 महीने की सैलरी मिलती है।
उन्होंने बताया, "इस बार जब फीस इकट्ठा करने का समय आया तो लॉकडाउन हो गया और हमें मार्च की भी सैलरी नहीं मिली।"
सैलरी देने की बजाय निजी विद्यालयों और कॉलेजों ने कई शिक्षकों को निकाल दिया है और वे मजदूरी करने को मजबूर हैं।
अन्य शिक्षक
अन्य शिक्षक भी कर रहे मजदूरी
मनरेगा कार्यस्थल पर ऐसे कई शिक्षक हैं जो अब मजदूरी करने को मजबूर हैं। इनमें दो बार PhD कर चुके रमेश और शारीरिक शिक्षा के शिक्षक कृष्णा शामिल हैं।
रमेश ने बताया कि उनके माता-पिता मजदूरी करते हैं और उन्हें बुरा लगता है कि इतना शिक्षित होने के बावजूद में भी मजदूरी कर रहा हूं, लेकिन और विकल्प ही क्या है।
वहीं कृष्णा ने बताया कि वे अपनी पत्नी के साथ काम पर आते हैं ताकि खाने लायक कमा सकें।
अन्य मामला
एक लाख प्रति महीने कमाने वाली स्वप्ना भी कर रहीं मजदूरी
शिक्षक ही नहीं चंद महीने पहले तक एक लाख रुपये कमा रहीं सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल स्वप्ना भी मनरेगा में मजदूरी करने जा रही हैं।
उन्होंने कहा, "मैं अपने जमापूंजी से खर्च चला सकती हूं। मुझे अभी मजदूरी करने की जरूरत नहीं है। लेकिन मेरे जमापूंजी कब तक चलेगी? दुनिया और भविष्य अनिश्चित हो गया है। मुझे कल इमरजेंसी के लिए बचाना पड़ेगा। इसलिए जब मेरे ससुरालजन काम पर जाते हैं तो मैं उनके साथ जा रही हूं।"
जानकारी
मनरेगा को दिए गए हैं अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये
गौरतलब है कि आर्थिक संकट के इस दौर में मनरेगा के इसी महत्व और बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने इसे अतिरिक्त 40,000 हजार करोड़ रुपये दिए हैं। बजट में पहले से ही इसे 61,500 करोड़ रुपये दिए गए हैं।