इस सर्दी वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठा रही है सरकार?
हर साल सर्दी की शुरुआत के साथ ही हवा में प्रदूषण के रूप में जहर घुलना शुरू हो जाता है और लोगों को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। सबसे बुरी हालत दिल्ली और NCR क्षेत्र की होती है। खेतों में जलाई जाने वाली पराली, पटाखे और वाहनों का जहरीला धुआं स्थिति को और खराब कर देता हैं। ऐसे में आइए जानते हैं इस सर्दी सरकार हवा को दूषित होने से बचाने के लिए क्या कदम उठा रही है।
सरकार ने लागू किया GRAP का पहला चरण
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 5 अक्टूबर को वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 'खराब' श्रेणी 211 पर पहुंच गया है। ऐसे में इसे नियंत्रित करने के लिए बुलाई गई वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग (CAQM) की बैठक में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) का पहला चरण लागू करने का निर्णय किया है। ऐसे में अब दिल्ली में 500 वर्ग मीटर से बड़े निर्माण कार्य नहीं होंगे। आवश्यक कार्य होने पर सरकारी वेब पोर्टल पर पंजीयन कराना आवश्यक होगा।
सबसे पहले जानते हैं क्या होता है GRAP?
GRAP हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के बाद लागू किया जाता है। यह AQI में सुधार के लिए अमल में लाया जाता है। इसे चार चरणों में लागू किया जाता है। पहला चरण AQI के खराब श्रेणी (201 से 300) होने, दूसरा चरण AQI के बहुत खराब श्रेणी (301 से 400) होने, तीसरा चरण AQI के गंभीर श्रेणी (401 से 450) होने तथा चौथा चरण AQI के बेहद गंभीर श्रेणी (450 से अधिक) होने पर लागू होता है।
कब से हुई थी GRAP की शुरुआत?
GRAP को पहली बार पर्यावरण मंत्रालय ने जनवरी 2017 में अधिसूचित किया था। पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण को इसे दिल्ली-NCR में लागू करने का काम सौंपा गया था। हालांकि, CAQM के गठन के बाद इसे पहली बाद 2021 में लागू किया गया था।
GRAP के पहले चरण में क्या होता है?
GRAP के पहले चरण में 500 वर्ग मीटर से बड़े निर्माण कार्यों पर रोक लगाई जाती है और कार्य के आवश्यक होने पर सरकारी वेब पोर्टल पर पंजीयन कराना होता है। इसी तरह इसमें CAQM प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करता है और सड़कों पर धूल को उड़ने से रोकने के लिए मशीनों से सफाई के साथ पानी का छिड़काव किया जाता है। निर्माण स्थलों पर एंटी-स्मॉग गन का इस्तेमाल आवश्यक कर दिया जाता है।
पहले चरण में ये भी किए जाते हैं उपाय
पहले चरण में दिल्ली में पेट्रोल पंपों पर 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों के मालिकों से प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र लिया जाता है। इसी तरह ट्रैफिक पुलिस सिग्नल पर वाहनों का इंजन बंद कराने के लिए स्वतंत्र होती है।
GRAP के दूसरे चरण में क्या बरती जाती है सख्ती?
GRAP के दूसरे चरण में होटल और रेस्टोरेंट में काम आने वाले तंदूर सहित कोयले और जलाऊ लकड़ी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इसी तरह डीजल से चलने वाले जनरेटरों (आवश्यक और आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर) के उपयोग रोक लगाने के साथ वाहनों के इस्तेमाल को कम करने के लिए पार्किंग शुल्क बढ़ाया जाता है। इसके अलावा CMC और इलेक्ट्रिक बसों के साथ मेट्रो सुविधा और सार्वजनिक परिवहन सेवा के अधिक इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है।
GRAP के तीसरे चरण में क्या उठाए जाते हैं कदम?
इस चरण में आवश्यक परियोजनाओं को छोड़कर सभी प्रकार की निर्माण और विध्वंस गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इसी तरह ईंट भट्ठों, हॉट मिक्स प्लांट और स्टोन क्रशर के संचालन के साथ-साथ प्रदूषणकारी खनन गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है। CNG आपूर्ति वाले उद्योगों को प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल बंद करने के लिए पाबंद किया जाता है। इसी तरह BSIII पेट्रोल और BSIV डीजल वाहनों का उपयोग सीमित किया जाता है।
GRAP के तीसरे चरण में क्या बतरी जाती है सख्ती?
इस चरण में दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश (आवश्यक, सीएनजी और इलेक्ट्रिक ट्रकों को छोड़कर) बंद किया जाता है। इसी तरह आवश्यक सेवाओं को छोड़कर दिल्ली में पंजीकृत डीजल वाहन और भारी माल वाहनों का संचालन बंद कर दिया जाता है। BS-VI वाहनों और आवश्यक सेवाओं को छोड़कर NCR के जिलों में चौपहिया डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। 50 प्रतिशत कर्मचारियों को घर से काम करने का विकल्प दिया जाता है।
चौथे चरण में ये कदम भी उठाए जाते हैं
इस चरण में हवा का स्तर और खराब होने पर अतिरिक्त आपातकालीन उपाय जैसे स्कूल बंद करना, वाहनों को सम-विषम आधार पर चलाना और राज्य सरकारों द्वारा उचित समझे जाने पर अन्य उपाय भी किए जाते हैं। यह चरण बहुत सख्त होता है।
27 मिलियन टन पराली निकलने की संभावना
अनुमान के अनुसार, इस खरीफ सीजन में लगभग 27.6 मिलियन टन धान की पराली पैदा होने की संभावना है। इसमें पंजाब में सबसे अधिक 19.9 मिलियन टन, हरियाणा से 70 लाख टन और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों से लगभग 0.67 मिलियन टन पराली हो सकती है। ऐसे में इस पराली को इकट्ठा करना, जुटाना और फिर उसका निपटान करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस तरह इस बार भी पराली जलाने की घटनाएं होने से प्रदूषण बढ़ने का खतरा रहेगा।