अब ब्लैक फंगस की दवा को लेकर मारामारी, जानिये क्यों पड़ रही है कमी
देश में कुछ दिनों से म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामलों की संख्या बढ़कर 11,000 से ज्यादा हो गई है। बढ़ते मामलों की बीच अब इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसीन बी (Amphotericin B) की भारी कमी पड़ रही है। इसके लिए भी कई जगहों पर ऑक्सीजन और रेमडेसिवीर की तरह मारामारी दिख रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को इसकी कमी का कारण बताने को कहा है। आइये, जानते हैं कि इसकी कमी क्यों है।
सबसे पहले ब्लैक फंगस के बारे में जानिये
म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस एक दुर्लभ संक्रमण है। यह म्यूकर फंगस के कारण होता है जो मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। यह आमतौर पर उन लोगों को प्रभावित करता है जो लंबे समय दवा ले रहे हैं और जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है। देश में ब्लैक के बाद व्हाइट फंगस और येलो फंगस के भी मामले सामने आ चुके हैं। ये बीमारी आंख और दिमाग के अलावा कई अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंचाती है।
महामारी की दूसरी लहर के बाद अचानक से बढ़े मामले
म्यूकरमायकोसिस दुर्लभ संक्रमण है, लेकिन भारत इसकी सबसे ज्यादा मार सहने वाले देशों में शामिल है। 2019 में जर्नल ऑफ फंगी में छपे एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रति 10 लाख लोगों में 140 लोग इससे संक्रमित पाए जाते हैं। लगभग ऐसा ही हाल पाकिस्तान का है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बाद भारत में इसके मामले एकाएक बढ़ने लगे हैं। इसे देखते हुए केंद्र ने हाल ही में राज्यों को दवाई की लगभग 23,000 शीशियां भेजी थी।
राज्यों को अधिसूचित बीमारी घोषित करने को कहा गया
इसी महीने दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के प्रमुख डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया था कि देश के कई हिस्सों में फंगल संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। इन्हें कोविड एसोसिएटिड म्यूकरमाइकोसिस (CAM) के नाम से भी जाना जाता है। स्टेरॉयड का अधिक इस्तेमाल इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। इसके बाद केंद्र ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर ब्लैक फंगस को अधिसूचित बीमारी घोषित करने के लिए कहा था।
इसका इलाज क्या है?
डॉक्टरों का कहना है कि फंगस का इलाज तुरंत किए जाने की जरूरत है। आमतौर पर इसके इलाज में एंटी-फंगल दवाओं का इस्तेमाल होता है और कई मामलों में फंगस हटाने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है। इलाज में सबसे ज्यादा लिपोसोमल एम्फोटेरिसीन बी इंजेक्शन का उपयोग होता है। अगर यह न मिले तो एम्फोटेरिसीन बी डिऑक्सीक्लोरेट इंजेक्शन, इसावुकोनाजोल (Isavuconazole) और पोसाकोनाजोल (Posaconazole) का इस्तेमाल होता है। अंतिम दो गोली और इंजेक्शन दोनों रूप में उपलब्ध हैं।
दवाओं के इस्तेमाल को लेकर सावधानी की जरूरत
मुंबई स्थित कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में संक्रामक बीमारियों की विशेषज्ञ डॉ तनु सिंघल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "हम लिपोसोमल एम्फोटेरिसीन बी के साथ शुरुआत करते हैं। अगर वह उपलब्ध नहीं होती तो दूसरी दवाएं ली जाती हैं। एम्फोटेरिसीन बी डिऑक्सीक्लोरेट भी प्रभावी है, लेकिन ये गुर्दों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसे केवल उन्हीं जवान मरीजों को दिया जाता है, जिन्हें गुर्दों से संबंधित किसी तरह की परेशानी नहीं होती।"
मामले बढ़ने के कारण मांग में आया तेज उछाल
एम्फोटेरिसीन की मदद से चलने वाला इलाज 4-6 सप्ताह तक चल सकता है। इस दौरान मरीज को 90-120 इंजेक्शन देने की जरूरत पड़ सकती है। इनकी खरीद पर लगभग 5-8 लाख रुपये का खर्च आता है। अगर एक मरीज के लिए 100 इंजेक्शन की जरूरत मानकर चला जाए तो भी देश में 11-12 लाख इंजेक्शन्स की जरूर पड़ेगी, जबकि इसकी आपूर्ति बेहद कम है। मरीजों की बढ़ती संख्या के साथ ये मांग भी बढ़ती जाएगी।
भारत में ये कंपनियां करती हैं उत्पादन
देश में भारत सीरम एंड वैक्सीन्स, BDR फार्मास्यूटिकल, सन फार्मा, सिप्ला और लाइफ केयर इनोवेशन एम्फोटेरिसीन का उत्पादन करती है। वहीं माइलन विदेश से आयात कर भारत में इसकी आपूर्ति करती है। अभी तक संक्रमितों की संख्या कम होने के कारण इसका उत्पादन कम रहा है। मई में सभी कंपनियों को इसकी 1.63 लाख शीशियों का उत्पादन करना था। इसके अलावा 3.63 लाख शीशियां विदेश से मंगवाई जानी थी। अचानक से मांग बढ़ने के कारण आपूर्ति कम हो गई है।
अगले महीने भी पर्याप्त नहीं होगी आपूर्ति
केंद्र ने राज्यों को 10-31 मई के लिए एम्फोटेरिसीन बी के लगभग 68,000 इंजेक्शन भेजे थे, जो उनकी मांग से बेहद कम थे। महाराष्ट्र को हर महीने तीन लाख इंजेक्शन की जरूरत है, लेकिन उसे महज 21,590 इंजेक्शन ही मिल पाए हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि अगले महीने देश में इस दवा की 2.55 लाख शीशियों का उत्पादन होगा और लगभग 3.15 शीशियां विदेशों से मंगाई जाएगी। मांग को देखते हुए यह संख्या भी कम है।
पांच अन्य कंपनियों को दिया गया लाइसेंस
सरकार ने बढ़ती मांग को देखते हुए पांच अन्य कंपनियों को इसके उत्पादन का लाइसेंस दिया है, लेकिन वो शीशियां जुलाई में ही उपलब्ध हो पाएंगी। उसके बाद भी भारत को इसके लिए कुछ हद तक विदेशों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
कच्चा माल न मिलने से भी उत्पादन प्रभावित
BDR फार्मा के प्रबंधक निदेशक धर्मेश शाह ने कहा कि एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) एम्फोटेरिसीन बी की दवा उत्पादन में जरूरत पड़ती है। हर महीने इसका 25 किलोग्राम कच्चा माल उपलब्ध हो रहा है, जिससे 1.5-2 लाख इंजेक्शन बनते हैं। लिपोसोमल और प्लेन, दोनों तरह के इंजेक्शन बनाने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है। कई कंपनियां इसे चीन से आयात करती है और अभी इसकी आपूर्ति सीमित ही है। दो महीने बाद आपूर्ति बढ़ने की उम्मीद है।
सिंथेटिक लिपिड की भी भारी कमी
इसके अलावा फार्मा कंपनियों को प्यूरीफाइड सिंथेटिक लिपीड की भी कमी पड़ रही है। mRNA वैक्सीन्स के उत्पादन के चलते दुनियाभर में इसकी मांग बढ़ी हुई है। भारतीय कंपनियों का कहना है कि उन्होंने दिसंबर में स्विट्जरलैंड स्थित कंपनी लिपॉयड को इसका ऑर्डर दिया था, जो अब डिलीवर किया जा रहा है। भारत में केवल मुंबई स्थित VAV लाइफ साइसेंस इसका उत्पादन करती है, जिसकी क्षमता 21 किलोग्राम प्रति माह है। अगस्त तक इसे बढ़ाकर तीन गुना किया जाएगा।