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    भारत इन दवाइयों के दम पर लड़ रहा है कोरोना वायरस के खिलाफ जंग
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    देश 1 मिनट में पढ़ें

    भारत इन दवाइयों के दम पर लड़ रहा है कोरोना वायरस के खिलाफ जंग

    लेखन भारत शर्मा
    Jun 10, 2020
    09:26 pm
    भारत इन दवाइयों के दम पर लड़ रहा है कोरोना वायरस के खिलाफ जंग

    कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में अब तक 70 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं। भारत में यह आंकड़ा तीन लाख होने वाला है। सभी देश वायरस के खात्मे के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे है। भारत में भी वैक्सीन पर काम चल रहा है, लेकिन अभी सफलता नहीं मिली है। इन सबके बीच भारत में कुछ दवाइयों के दम पर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है। हम उन सभी दवाइयों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

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    DCGI ने दी मरीजों पर रेमडेसिवीर के उपयोग की अनुमति

    रेमडेसिवीर एक एंटीवायरल दवा है। अमेरिकी फार्मास्युटिकल गिलियड साइंसेज ने साल 2014 में इबोला वायरस के इलाज के लिए इसे विकसित किया था। गत 3 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गंभीर कोरोना मरीजों के इलाज में इसके उपयोग की अनुमति दी थी। इसके बाद गत एक जून को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने भी पांच दिन के लिए इस दवा के उपयोग की अनुमति दे दी।

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    परीक्षण में सामने आए थे बेहतरीन परिणाम

    इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज ने पिछले महीने रेमडेसिवीर को लेकर किए गए परीक्षण के परिणाम जारी किए थे। जिसमें बताया गया कि इस दवा के उपयोग से 15 में से 11 मरीजों में तेजी से सुधार हुआ। इस इंजेक्शन के एक शीशी की कीमत 10,000-20,000 रुपये है। गिलियड साइंसेज ने इसकी भारत और पाकिस्तान में सप्लाई के लिए सिप्ला, फिरोजसंस लैब्स, हेटेरो लैब्स, जुबिलेंट लाइफसाइंसेस के साथ करार किया है।

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    भारत में एंटी-इन्फ्लूएंजा दवा के रूप में काम में ली जा रही है फेविपिराविर

    फेविपिराविर एक एंटीवायरल है जो शरीर में वायरल को फैलने से रोकती है। इसे एंटी-इन्फ्लूएंजा दवा के रूप में काम लिया जाता है। जापान की फुजीफिल्म टोयामा केमिकल लिमिटेड ने इसे तैयार किया है। भारत में इसका निर्माण ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल और स्ट्राइड्स फार्मा द्वारा किया जा रहा है। यह गंभीर कोरोना संक्रमितों के इलाज में काम ली जा रही है, लेकिन यह आसानी से नहीं मिल रही है। मरीजों पर इसके परीक्षण का कार्य जारी है।

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    मुंबई के अस्पतालों में किया जा रहा है 'टोसिलिजुमैब' का इस्तेमाल

    टोसिलिजुमैब एक इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवा है। इसका उपयोग आमतौर पर गठिया के इलाज में किया जाता है। इसका विशेषकर उपयोग मुंबई में वेंटिलेटर पर रहे 100 संक्रमितों पर किया गया है। इसकी एक खुराक की कीमत 40,000-60,000 रुपये है। सरकारी अस्पतालों में यह मुफ्त दी जा रही है। भारत में कई जगहों पर इसका परीक्षण चल रहा है। इसे भारत में रोचे फॉर्मा द्वारा तैयार कर सिप्ला के जरिए एक्टेम्रा नाम से बेचा जा रहा है।

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    मिले-जुले आ रहे हैं दवा के परिणाम

    भारत में इस दवा का सबसे पहले उपयोग मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती एक 52 वर्षीय मरीज पर किया गया था, लेकिन उसकी सेहत में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। लीलावती अस्पताल के डॉ जलील पारकर ने कहा कि वह निमोनिया और सांस की परेशानी वाले रोगियों को यह दवा दे रहे हैं। नायर अस्पताल के प्रमुख डॉ मोहन जोशी ने कहा कि इस दवा का सबसे ज्यादा अच्छा असर सिवनी के अस्पतालों में भर्ती मरीजों में देखा गया है।

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    आईटोलिजुमैब

    आईटोलिजुमैब का उपयोग आमतौर पर त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में किया जाता है। साल 2013 में बायोकॉन ने इसे भारत में लॉन्च किया था। मुंबई और दिल्ली में गंभीर कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए इस दवा का उपयोग किया गया है। इसके परिणाम जुलाई के पहले सप्ताह तक आएंगे। नायर हॉस्पिटल के प्रमुख डॉ जोशी ने बताया कि इसके पूरी तरह से उपयोग में समय लगेगा। इसके नतीजों की समीक्षा की जा रही है।

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    हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन के उपयोग को लेकर दुनिया में छिड़ी है बहस

    हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (HCQ) आमतौर पर मलेरिया के उपचार में काम में ली जाती है। कोरोना के खिलाफ इसकी प्रभाविकता को लेकर पूरी दुनिया में बहस छिड़ी हुई है। भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में कोरोना संक्रमितों के उपचार में इसका उपयोग किया जा रहा है। ICMR ने इस दवा की नौ दिन तक खुराक लेने के निर्देश दिए हैं। इससे मरीजों की सेहत में तेजी से सुधार हो रहा है, लेकिन यह शुरुआती परिणाम ही है।

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    कुछ मरीजों को दवा के उपयोग से हुई परेशानी

    बता दें कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से जहां अधिकतर मरीजों को फायदा हो रहा है, वहीं कई मरीजों को मिचलन और तेज धड़कन की शिकायत भी हुई है। इसके बाद कुछ अस्पतालों में कोरोना मरीजों पर इस दवा के उपयोग को कम कर दिया गया है।

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    डॉक्सीसाइक्लिन + आइवरमेक्टिन का भी हो रहा उपयोग

    डॉक्सीसाइक्लिन एक एंटीबायोटिक दवा है। इसका उपयोग मूत्र, आंख या श्वांस नली में संक्रमण होने पर किया जाता है। इसी तरह आइवरमेक्टिन का उपयोग खुजली, जूँ और फाइलेरिया के उपचार में किया जाता है। इन दोनों दवाओं का मिलाकर कोरोना मरीजों के उपचार के लिए भी दिया जा रहा है। बांग्लादेश मेडिकल कॉलेज के अध्ययन में सामने आया था कि इन दवाइयों को मिलाकर उपयोग करने से 60 कोरोना मरीज ठीक हुए थे।

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    वायरस को 48 घंटे में खत्म करने का दावा

    एक मोनाश बायोमेडिसिन डिस्कवरी संस्थान के अध्ययन ने प्रयोगशाला विश्लेषण के माध्यम से यह भी पाया कि आइवरमेक्टिन 48 घंटों में वायरस को खत्म करने में मदद करती है। कोरोना मरीजों पर इसका उपयोग अभी प्रायोगिक चरण में है।

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    कोरोना मरीजों पर आंशिक रूप से किया जा रहा है रितोनवीर + लोपिनवीर का उपयोग

    इन एंटीवायरल दवाओं का उपयोग आमतौर पर HIV रोगियों के इलाज में किया जाता है। फिलहाल सॉलिडैरिटी ट्रायल में इनकी जांच की जा रही है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि ये दवा कोरोना रोगियों की मृत्यु दर को कम करती है। भारत में एक दर्जन से अधिक निर्माता इनकी आपूर्ति करते हैं। डॉक्टर कभी-कभी गंभीर कोरोना संक्रमितों पर इनका मिलाकर उपयोग करते हैं। कई डॉक्टरों ने इन दवाओं के ज्यादा कारगर नहीं होने की बात कही है।

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    प्लाज्मा थेरेपी से भी किया जा रहा है कोरोना मरीजों का इलाज

    प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल ऑक्सीजन के कम स्तर और गंभीर साइटोकिन मरीजों पर किया जाता है। कोरोना संक्रमण से उबरने वाले मरीजों के प्लाज्मा को लेकर अन्य मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। ICMR की गाइडलाइंस के अनुसान चयनित कुछ लोगों का ही प्लाज्मा लिया जाता है और फिर उसका अन्य मरीजों पर उपयोग किया जाता है। इसके लिए साइटोकिन स्ट्रोम वाले मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है।

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