समलैंगिक विवाह मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का केंद्र को नोटिस, बताया नागरिक अधिकारों का मामला
समलैंगिक विवाह को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई दो अलग-अलग याचिका पर बुधवार को सुनवाई हुई। इसमें अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि समलैंगिक विवाह को सरकार द्वारा मान्यता दी जाए और विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत शामिल किया जाए। उन्होंने अनुमति नहीं देने को उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
समलैंगिक विवाह की अनुमति देने को लेकर दाखिल हुई पहली याचिका
हाईकोर्ट में पहली याचिका मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल कविता अरोड़ा (47) और अंकिता खन्ना (36) द्वारा दाखिल की गई थी। इसमें उन्होंने कहा कि वह पिछले आठ सालों से साथ हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं। वह शादी करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें रोका जा रहा है। उन्होंने कहा वह किसी भी दूसरे दंपत्ति की तरह हैं, बस फर्क यह है कि दोनों महिलाएं हैं। उन्हें संयुक्त बैंक खाता खुलवाने और परिवार स्वास्थ्य बीमा के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग
याचिका में कहा कि विवाह सिर्फ दो लोगों के बीच बनने वाला संबंध नहीं है, यह दो परिवारों को साथ लाता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है और यह अधिकार विषम-लिंगी जोड़ों की तरह ही समलैंगिकों पर भी लागू होता है। इस दौरान उन्होंने हाईकोर्ट से समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने वाले विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की।
दूसरी याचिका में दो पुरुषों ने की समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग
हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार दूसरी याचिका भारतीय नागरिक वैभव जैन और NRI पराग विजय ने दाखिल की थी। उन्होंने 2017 में अमेरिका में शादी की थी। भारतीय दूतावास ने इस साल फॉरन मैरिज एक्ट, 1969 के तहत उनकी शादी का पंजीयन नहीं किया। इस कारण वो शादीशुदा दंपत्ति की तरह भारत नहीं आ पाए। उन्होंने कहा कि शादी को मान्यता नहीं मिलना उनके आजादी, समानता, जीवन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार नोटिस जारी का मांगा जवाब
दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ और जस्टिस आशा मेनन की बेंच ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने को कहा है। इसके अलावा मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी, 2021 के लिए निर्धारित की है। कोर्ट ने अपने नोटिस में कहा है कि यह कोई साधारण याचिका नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि इस मामले को गंभीरता से लें। यह नागरिकों के अधिकारों से जुड़ा मामला है।
केंद्र के अधिवक्ता ने दी सनातन धर्म की दलील
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से उपस्थित अधिवक्ता राजकुमार यादव ने दलील दी कि यह अजीब स्थिति है। सनातन धर्म के 5,000 सालों में इस तरह की स्थिति कभी नहीं आई है। इस पर बेंच ने कहा कि अब सालों पुरानी रुकावटों को खत्म करना होगा। कानून जेंडर न्यूट्रल है, ऐसे में अधिवक्ता को देश में सनातन धर्म के नागरिकों के लिए कानून की व्याख्या करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यह नागरिक अधिकार का मामला है।
पिछली सुनवाई में भी केंद्र ने दिया था भारतीय मूल्यों का हवाला
दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से संबंध में पिछले महीने रक्षा विश्लेषक अभिजीत अय्यर मित्रा और तीन अन्य की याचिका पर सुनवाई की थी। उस दौरान भी केंद्र ने भारतीय मूल्यों के समान-लिंग यूनियनों को मान्यता नहीं देने की बात कही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 को रद्द कर दिया था। उसमें कहा गया था कि सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे। हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था। ऐसे में वर्तमान में समलैंगिग विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन सरकार उनका पंजीयन नहीं कर रही है।