कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों के लिए जानलेवा बन रहा 'ब्लैक फंगस' क्या है?
पूरा देश कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से जूझ ही रहा है कि अब एक और नया संकट खड़ा हो गया है। दरअसल, कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद लोगों में म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस बीमारी मिलने लगी है। कोरोना से तुरंत ठीक होने वाले मरीजों में इसका सबसे अधिक खतरा बताया जा रहा है। इसको लेकर सरकार ने एडवाइजरी भी जारी कर दी है। यहां जानते हैं कि क्या है ब्लैक फंगस और क्या है इसके कारण?
इन राज्यों में सामने आ चुके हैं ब्लैक फंगस के मामले
बता दें कि भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान ब्लैक फंगस के मामले सामने आ चुके हैं। सबसे अधिक मामले महाराष्ट, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, गुजरात में देखने को मिले हैं। इन राज्यों में ब्लैक फंगस के कारण मरीजों की आंखों की रोशनी के साथ कई अन्य गंभीर प्रभाव सामने आए हैं। इनमें सबसे अधिक मरीज कोरोना वायरस से ठीक होने वाले ही थे। भारत में दिसंबर में पहली बार ब्लैक फंगस के मामले सामने आए थे।
क्या होता है म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस?
अमेरिका की सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार म्यूकरमायकोसिस या ब्लैक फंगस एक बेहद दुर्लभ संक्रमण है। यह म्यूकर फंगस के कारण होता है जो मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। CDC के अनुसार यह फंगस मिट्टी के साथ हवा और यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी पाई जाती है। यह फंगस साइनस, आंख, दिमाग़ और फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।
किन लोगों में होता है ब्लैंक फंगस का सबसे अधिक खतरा?
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार वर्तमान में ब्लैक फंगस का सबसे अधिक खतरा कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों में पाया जा रहा है। इसी तरह यह रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली बीमारियों से ग्रसित लोगों में भी हो सकता है। इनमें कोरोना संक्रमितों की साथ मधुमेह, कैंसर, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, स्टेरॉइड्स सेवन करने वाले, समय से पहले जन्मे बच्चे और HIV एड्स जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग भी शामिल है।
कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए क्यों है अधिक घातक?
ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है। कोरोना संक्रमितों के उपचार में स्टेरॉइड्स काम लिया जाता है। इससे इम्यून सिस्टम तो सक्रिय हो जाता है, लेकिन इम्यूनिटी कम होती है। इसके कारण कोरोना मरीज ब्लैक फंगस की चपेट में आ रहे हैं।
क्या है ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षण?
CDC के अुनसार ब्लैक फंगस से पीड़ित व्यक्ति को चेहरे के एक हिस्से में सूजन, सिरदर्द, नाक में संक्रमण, नाक या मुंह के ऊपरी हिस्से पर काले घाव, बुखार, खांसी, छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना, अंधापन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले मरीजों में यह ठीक होने के दो-तीन दिन बाद या ठीक होने के दौरान भी नजर आ सकते हैं।
उपचार में देरी पर जा सकती है दोनों आंखें
विशेषज्ञों के अनुसार उपचार में देरी पर ब्लैक फंगस का संक्रमण घातक हो जाता है और मरीज की आंखों की रोशनी चली जाती है। ऐसे में डॉक्टर्स को संक्रमण को दिमाग़ तक पहुंचने से रोकने के लिए आंख निकालनी पड़ती है। कुछ दुर्लभ मामलों में डॉक्टरों को मरीज का जबड़ा भी निकालना पड़ता है ताकि संक्रमण को और फैलने से रोका जा सके। ऐसे में लोगों को इस तरह के लक्षण नजर आने पर तत्काल डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
ब्लैक फंगस से कैसे बचा जाए?
ICMR के अनुसर ब्लैक फंगस से बचने के लिए धूल भरी जगह पर जाने से पहले मास्क जरूर लगाएं। शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें, मिट्टी या खाद का काम करने से पहले हाथों में ग्लव्स पहनें और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
क्या है ब्लैक फंगस को लेकर ICMR की एडवाइजरी?
ICMR की एडवाइजरी के अनुसार कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों में ब्लैक फंगस पाया गया है। यह कमजोर इम्यूनिटी, अत्यधिक मधुमेह यानी शुगर, लंबे समय तक स्टेरॉयड्स लेने वाले, लंबी बीमारी से पीड़ित और लंबे समय से दवा लेने वालों में भी होता है। इसमें नाक के नीचे लाल होना और दर्द होना, बुखार आना, खांसी, खून की उल्टी, मानसिक स्वास्थ्य पर असर, देखने में दिक्कत, दांतों और छाती में दर्द की समस्या होती है।
ब्लैक फंगस से संक्रमित होने पर क्या करें?
ICMR की एडवाइजरी के अनुसार अगर कोई ब्लैक फंगस से संक्रमित हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए और अगर व्यक्ति कोरोना संक्रमण से ठीक हो गया है तब भी लगातार ब्लड शुगर की जांच करते रहना चाहिए। ऑक्सीजन ले रहे हों तो ह्यूमीडिफ़ायर के लिए साफ पानी (स्टेराइल वॉटर) का इस्तेंमाल करें। इसी तरह एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल दवा और स्टरॉयड का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के न करें।