सुप्रीम कोर्ट की शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में दिए जा रहे मराठा आरक्षण पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र में मराठियों को मिल रहे आरक्षण के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मराठियों को शिक्षा और रोजगार में दिए जा रहे आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया है। शीर्ष अदालत की ओर से सुनाए गए इस अहम फैसले के बाद अब महाराष्ट्र में किसी भी नए व्यक्ति को मराठा आरक्षण के आधार पर कोई नौकरी या कॉलेज में सीट नहीं दी जा सकेगी।
महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में दिया था आरक्षण
बता दें मराठा आरक्षण की मांग को लेकर राज्य में लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद हाराष्ट्र सरकार ने साल 2018 में मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। सरकार ने इसके पीछे जस्टिस एन जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाया था। इसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था। इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
पांच जजों की पीठ ने सुनाया अहम फैसला
जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और रवींद्र भट की पांच जजों वाली पीठ ने यह अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) अधिनियम, 2018 के तहत आरक्षण देना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार उल्लंघन है। इसी तरह यह आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा का भी उल्लंघन है। ऐसे में इसका लाभ नहीं दिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को ही सुरक्षित रख लिया था फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट के आरक्षण को जारी रखने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन तक लगातार सुनवाई करने के बाद 26 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसले के लिए 5 मई की तारीख दी थी।
1992 के फैसले की नहीं की जाएगी समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा आरक्षण के मामले में कहा कि 1992 में देश में अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा तय की गई थी। ऐसे में कोर्ट अब उस फैसले की दुबारा से समीक्षा नहीं करेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है और किसी भी राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। आरक्षण सिर्फ पिछड़े वर्ग को दिया जा सकता है और मराठा पिछड़े हुए नहीं है।
आरक्षण का लाभ ले चुके लोगों को नहीं होगा नुकसान
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने के दौरान यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले से पूर्व में आरक्षण का लाभ ले चुके लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यानी पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले लिए गए दाखिले बने रहेंगे और पहले की सभी नियुक्तियों में भी कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला भविष्य में शिक्षा के लिए होने प्रवेश और नौकरियों पर लागू होगा और इसमें मराठा आरक्षण नहीं दिया जा सकेगा।
महाराष्ट्र में 75 प्रतिशत पर पहुंच गया था आरक्षण
विभिन्न समुदायों व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया है। 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत आरक्षण था। मराठियों को दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण के बाद यह बढ़कर 66 प्रतिशत पर पहुंच गया था। इसी तरह केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत कोटा भी राज्य में प्रभावी है।