चर्चित कानून: भारत में आत्महत्या को लेकर क्या कानून है और इस पर क्यों है विवाद?
क्या है खबर?
भारत के संविधान में हर नागरिक को जीने का अधिकार है, लेकिन जीवन को खुद समाप्त करने का अधिकार किसी को नहीं है।
यही कारण है देश में आत्महत्या के प्रयास को अपराध घोषित करते हुए सजा का प्रावधान किया गया है। हालांकि, इस कानून को लेकर देश में लंबे समय से विवाद रहा है और इसे खत्म करने की मांग चल रही है।
आइए जानते हैं कि आत्महत्या के खिलाफ क्या कानून है और इस पर विवाद क्यों है।
विवाद
आत्महत्या के खिलाफ कानून को लेकर क्या है विवाद?
इस कानून को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। विभिन्न कानूनी विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक संगठन लंबे समय से इसे खत्म करने की मांग करते आए हैं।
इन संगठनों का कहना है कि कोई भी व्यक्ति शौक से मरना नहीं चाहता। जीवन से पूरी तरह हताश, गहन अवसाद से पीड़ित या फिर आर्थिक तंगी, पारिवारिक कलह जैसे अन्य कारण ही उसे यह कदम उठाने को मजबूर करते हैं। ऐसे में उसे सजा देना गलत है।
जानकारी
भारत में आत्महत्या के प्रयास को लेकर क्या है कानून?
भारतीय दंड संहिता प्रक्रिया (IPC) की धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास को अपराध घोषित किया गया है। ऐसा करने वाले को एक साल तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।
प्रयास
1978 से चल रहे हैं कानून को खत्म करने के प्रयास
इस कानून को हटाने के प्रयास काफी पहले से चल रहे हैं।
साल 1978 में IPC संशोधन बिल में धारा 309 को हटाने का प्रावधान किया गया था और यह बिल राज्यसभा में पास भी हो गया था, लेकिन लोकसभा में पहुंचने से पहले ही संसद भंग हो गई।
इसी तरह 1987 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 'राइट ऑफ लाइफ' में जीने और जान देने, दोनों अधिकारों को समाहित मानते हुए इस धारा को खत्म करने का आदेश दिया था।
जानकारी
क्या अभी तक किसी को सजा मिली?
इस कानून के तहत अब तक किसी पर भी अपराध सिद्ध तो नहीं हो सका है, लेकिन इस कानून के कारण आत्महत्या का प्रयास कर चुके सैकड़ों लोगों को कानूनी पचड़ों से जरूर जूझना पड़ा है।
वैध
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में धारा 309 को ठहराया था वैध
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद इस धारा को हटाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जिसके बाद साल 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया था, लेकिन इसे फिर से चुनौती दे दी गई।
इसके बाद 1996 में पांच जजों की पीठ ने फैसला दिया कि संवैधानिक तौर पर मिले 'राइट टू लाइफ' में जान देने का अधिकार शामिल नहीं है और धारा 309 वैध है। ऐसे में इसे नहीं हटाया जा सका।
जानकारी
लॉ कमीशन ने साल 2008 में दिया था कानून को हटाने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कानून का विरोध जारी रहा। साल 2008 में लॉ कमिशन ने आत्महत्या को अपराध के दायरे से बाहर के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के बाद अपनी 210वीं रिपोर्ट में कानून को खत्म करने का सुझाव दिया था।
सहमति
लॉ कमिशन की रिपोर्ट पर सरकार ने जताई थी सहमति
लॉ कमिशन की सिफारिश को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 10 दिसंबर, 2014 को संसद में गृह मंत्रालय के हवाले से कहा था कि आत्महत्या के प्रयास के खिलाफ धारा 309 पूरी तरह से अनुचित है और इसे हटाया जा सकता है। देश के 18 राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश इस धारा को खत्म करने के पक्ष में हैं, लेकिन उसके बाद भी आज तक IPC में संशोधन कर इस निरर्थक धारा को खत्म नही किया जा सका है।
बचाव
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम की धारा 115 से हो रहा है बचाव
वर्तमान में आत्महत्या का प्रयास करने के बाद जिंदा बचे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की धारा 115 के तहत कार्रवाई से बचाव किया जा रहा है।
दरअसल, यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि देश का कानून दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) के अनुरूप हो।
भारत में दिव्यांगों की के हितों की रक्षा के लिए 2017 में यह अधिनियम बनाया गया था और साल 2018 में इसे लागू किया गया था।
स्पष्ट
क्या है धारा 115?
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 की धारा 115 के आत्महत्या का प्रयास करने वाले का बचाव करते हुए कहती है कि कोई भी इंसान आत्महत्या जैसा भयावह कदम भारी तनाव में उठाता है, ऐसे में उसे अपराधी मानकर दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
सरकार का यह दायित्व है कि वह आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोगों का पर्याप्त उपचार कराए, उनका ख्याल रखे और उनका पुनर्वास करने के लिए आवश्यक सभी कदम उठाए।
आत्महत्या
देश में क्या है आत्महत्या की स्थिति?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में आत्महत्या के मामलों में इजाफा हो रहा है।
2020 में देश में 1,53,052 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह संख्या 2019 की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है।
आत्महत्या करने वालों में से 14.6 प्रतिशत यानी 22,372 शादीशुदा महिलाएं शामिल रही। इसी तरह 2020 में कुल 12,500 छात्रों ने आत्महत्या की थी, यानी रोज औसतन 34 छात्र खुदकुशी कर रहे थे।
हेल्पलाइन
इन हेल्पलाइन से ले सकते हैं मदद
आत्महत्या एक गंभीर समस्या है। अगर आप या आपके जानने वाले किसी भी प्रकार के तनाव से गुजर रहे हैं तो आप नीचे दिए नंबरों पर फोन कर मदद प्राप्त कर सकते हैं।
आसरा: यह मुंबई स्थित NGO है, जो परेशान और अवसाद से घिरे लोगों की मदद करता है। हेल्पलाइन नंबर- 91-22- 27546669
स्नेहा इंडिया फाउंडेशन: यह संस्था हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे सेवा देती है। हेल्पलाइन नंबर- 91-44-24640050
वंद्रेवाला फाउंडेशन फॉर मेंटल हेल्थ: हेल्पलाइन नंबर- 18602662345