चर्चित कानून: क्या होता है मैरिटल रेप और इसको लेकर क्यों छिड़ी है बहस?
देश में मैरिटल रेप यानी वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है। नागरिक समुदाय का एक धड़ा इसे अपराध नहीं मानने तो महिलाओं के बहुमत वाला दूसरा धड़ा अपराध की श्रेणी में लेने की वकालत कर रहा है। हालांकि, पांच साल पहले केंद्र सरकार इसे अपराध मानने से इनकार कर चुकी है, लेकिन अब फिर दिल्ली हाई कोर्ट में इस पर लंबी बहस जारी है। आइए जानते हैं आखिर क्या है मैरिटल रेप और इसको लेकर विवाद क्यों है।
क्या होता है मैरिटल रेप?
दरअसल, अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बिना या जबरन यौन संबंध स्थापित करता है तो उसे मैरिटल रेप कहा जाता है। हालांकि, भारतीय दंड संहिता प्रक्रिया (IPC) में दुष्कर्म की परिभाषा तो तय की गई है, लेकिन मैरिटल रेप को कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऐसे में यदि शादी के बाद कोई पति अपनी पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाता है तो उसके लिए रेप केस में कानूनी मदद का प्रावधान नहीं है।
IPC में क्या है दुष्कर्म की परिभाषा?
IPC की धारा 375 के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी महिला से उसकी इच्छा और सहमति के बिना, जान से मारने की धमकी या अन्य तरीके से सहमति लेकर, शादी का झांसा देकर, महिला की खराब मानसिक स्थिति में या नशीला पदार्थ खिलाकर सहमति लेकर बनाया गया यौन संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में आता है। इसी तरह 16 साल से कम उम्र की किशोरी से उसकी सहमति या जबरन बनाया गया यौन संबंध भी दुष्कर्म माना जाता है।
धारा 375 के तहत इसे भी माना जाता है दुष्कर्म
धारा 375 के तहत इन परिस्थितियों के साथ किसी के निजी अंगों को यौन संबंध बनाने के मकसद से नुकसान या चोट पहुंचाना या फिर ओरल सेक्स और अप्राकृतिक यौन संबंधों को भी दुष्कर्म की श्रेणी में माना जाता है।
धारा 375 में क्या है बड़ा अपवाद?
IPC की धारा 375 में एक बड़ा अपवाद रह गया है। इसके कारण ही मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है। धारा 375 में प्रावधान है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम भी है तो पति का उसके साथ बनाया गया यौन संबंध दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। फिर चाहे पति ने वह यौन संबंध जबरदस्ती या पत्नी की सहमति के बगैर ही क्यों न बनाया हो। ऐसे में यह अपवाद विवाद का कारण बना हुआ है।
IPC की धारा 376 में है दुष्कर्म के लिए सजा का प्रावधान
IPC की धारा 376 में दुष्कर्म के लिए सजा का प्रावधान है। इसमें 18 साल से अधिक उम्र की महिला से दुष्कर्म पर सात साल से उम्रकैद, 18 साल से कम की युवती से दुष्कर्म पर सात साल से उम्रकैद और युवती की जिंदगी को खतरा होने पर फांसी भी दी जा सकती है। इसी तरह 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म पर 20 साल से लेकर उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है।
धारा 376 में पति के लिए भी है सजा का प्रावधान
धारा 376 में पत्नी से दुष्कर्म करने वाले पति के लिए भी सजा का प्रावधान है, लेकिन पत्नी की उम्र 12 साल से कम होना जरूरी है। इसमें दुष्कर्म करने पर पति पर जुर्माना या दो साल तक की जेल अथवा दोनों हो सकती हैं।
मैरिटल रेप के अपराध नहीं होने के क्या आ रहे हैं परिणाम?
देश में मैरिटल रेप के अपराध की श्रेणी में नहीं होने से आज भी कई महिलाएं अपने घरों में इसका सामना करने को मजबूर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, देश में अब भी 29 प्रतिशत से अधिक महिलाएं अपने पति की शारीरिक या यौन हिंसा झेलने को मजबूर हैं। ग्रामीण और शहरी इलाकों में अंतर और भी ज्यादा है। ग्रामीण इलाकों में यह स्थिति 32 प्रतिशत और शहरों में 24 प्रतिशत से अधिक है।
महिलाओं के लिए बचाव के लिए क्या हैं प्रावधान?
सारी स्थिति को देखते हुए सरकार ने महिलाओं को घर में यौन शोषण से बचाव के लिए घरेलू हिंसा कानून, 2005 लागू किया है। यह कानून महिलाओं को घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है। इसमें घर के भीतर यौन शोषण को परिभाषित किया गया है। इसके अलावा हिंदू मैरिज एक्ट भी है जिसमें पति और पत्नी की जिम्मेदारियों तय है। हालांकि, इसमें सेक्स के लिए इनकार करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है।
मैरिटल रेप को अपराध मानने की लंबे समय से चल रही है मांग
देश में मैरिटल रेप को अपराध मानने की मांग लंबे समय से है। 2015 में गैर सरकारी संगठन (NGO) RIT फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन तथा दो महिला और पुरुषों ने दिल्ली हाई कोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर की थी, जिस पर अब सुनवाई हो रही है। उसमें कहा गया था कि धारा 375 के प्रावधान धारा 377 (अप्राकृतिक संबंधों) से मेल नहीं खाते हैं। इसमें पतियों को कानून से बचने का अधिकार दिया गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
लंबी दलीलों के बाद सोमवार को जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस हरिशंकर की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मुद्दे पर सैद्धांतिक रूप से अपनी स्थिति स्पष्ट करे। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में विचार-विमर्श कभी समाप्त नहीं होता। यह 2015 की याचिका है और कोर्ट अब इस मामले को खत्म करना चाहती है। इस पर सरकार ने कोर्ट से विचार-विमर्श के लिए समय की मांग की है।
केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध मानने से किया था इनकार
साल 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी। इसी तरह सरकार ने यह तर्क भी दिया कि इसे अपराध की श्रेणी में लेने से महिलाओं को अपने पतियों को सताने के लिए एक आसान हथियार मिल जाएगा। उसके बाद हाई कोर्ट ने इसकी समीक्षा के लिए एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र नियुक्त किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कही थी अपराध मानने की बात
11 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और इसे दुष्कर्म माना जा सकता है। नाबालिग पत्नी एक साल में शिकायत दर्ज करा सकती है।