सुप्रीम कोर्ट ने 39 साल पहले हुई वारदात में अब 55 वर्षीय दोषी को माना नाबालिग
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हत्या के 39 साल पुराने मामले के एक 55 वर्षीय दोषी को नाबालिग माना है। इसके अलावा उसके अपराध की सजा को निर्धारित करने के लिए मामले को उच्च प्रदेश के किशोन न्याय बोर्ड (जुवेनाइल बोर्ड) के पास भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कोर्ट में मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। दोषी ने यह वारदात साल 1981 में की थी और उस समय उसकी उम्र 18 साल से कम थी।
दोषी ने 1981 में दिया था हत्या की वारदात को अंजाम
TOI के अनुसार दोषी सत्य देव ने 1981 में बहराइच के एक गांव में एक शख्स की हत्या कर दी थी। इस मामले में उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और पुलिस ने उसके खिलाफ चालान पेश किया था। इसके बाद बहराइच कोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद दोषी ने कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इलाहबाद हाईकोर्ट ने बहराइच कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सजा बरकरार रखने में यह दिया था तर्क
दोषी ने याचिका में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 का लाभ देने की मांग की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उसकी सजा बरकरार रखी थी कि वारदात के समय जुवेनाइल जस्टिस एक्ट अस्तित्व में नहीं था। ऐसे में इसका लाभ नहीं दिया जा सकता।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद दोषी ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती देते हुए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ देने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बहराइच जिला न्यायाधीश को मामले की रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए थे। इसके बाद गत 6 मार्च को जिला न्यायाधीश ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। जिसमें बताया गया था कि वारदात के समय दोषी की उम्र 16 साल 7 महीने और 26 दिन थी।
दोषी को मिलना चाहिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ- सुप्रीम कोर्ट
मामले में बुधवार को जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि अपराध के दिन सत्यदेव 18 वर्ष से कम उम्र का था, इसलिए उसे नाबालिग मानते हुए एक्ट का फायदा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी दोषी को उसे नाबालिग होने के कारण मिलने वाली राहत पाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। ऐसे में उत्तर प्रदेश जुवेनाइल बोर्ड ही यह तय करे कि दोषी को कितनी सजा मिलनी चाहिए।
क्या है जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000?
बता दें कि 30 दिसंबर, 2000 को अस्तित्व में आए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तहत 14 से 18 साल के बीच के किशोरों के किसी अपराध में लिप्त होने पर सुनवाई के लिए किशोर न्याय बोर्ड बनाया गया था। इसमें किशोरों को पुनर्वास केंद्र या अधिकतम तीन वर्ष तक बाल सुधार गृह भेजने का प्रावधान था। हालांकि, 2015 में इसमें संशोधन किया गया था। जिसके तहत जघन्य अपराध में लिप्त होने पर किशोरों को बालिग माना जा सकता है।