मथुरा कोर्ट ने खारिज की कृष्ण जन्मभूमि विवाद वाली याचिका, इलाहबाद हाईकोर्ट जाएंगे याचिकाकर्ता
क्या है खबर?
मथुरा सिविल कोर्ट ने बुधवार को 13.37 एकड़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक देने और जमीन पर स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
यह याचिका 'भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर' के नाम से उनकी अंतरंग सखी रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों ने दाखिल की थी।
याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने अब इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने का फैसला किया है।
याचिका
याचिका में लगाया गया था कृष्ण जन्मभूमि पर मस्जिद निर्माण का आरोप
गत 26 सितंबर को दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया था कि मस्जिद को श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर ही बनाया गया है। ऐसे में उसे हटाया जाना चाहिए और 13.37 एकड़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मालिकाना हक भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को मिलना चाहिए।
इसके अलावा यह भी कहा गया था कि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह या मुस्लिम समुदाय के किसी भी सदस्य को संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
खारिज
मथुरा सिविल कोर्ट ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के आधार पर खारिज की याचिका
टाइम्स नाऊ के अनुसार याचिका पर सुनवाई करते हुए मथुरा सिविल न्यायाधीश सीनियर डिवीजन छाया शर्मा ने कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत 15 अगस्त, 1947 से पहले बने सभी धर्मस्थलों की यथास्थिति बनाए रखने का प्रावधान है।
इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामला ही एक अपवाद रहा है। कोर्ट ने कहा इस याचिका पर सुनवाई के लिए स्वीकार करने के पर्याप्त आधार नहीं हैं। ऐसे में इसे तत्काल प्रभाव से खारिज किया जा रहा है।
जानकारी
इलाहबाद हाईकोर्ट में उठाएंगे मामला
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता और याचिकाकर्ता करुणेश शुक्ला ने बताया कि कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया है इसको स्वीकार करने का कोई कारण नहीं है। ऐसे में वह अब मामले को लेकर जल्द ही इलाहाबाद हाईकोर्ट जाएंगे।
इतिहास
याचिका में दी गई थी औरंगजेब द्वारा कृष्ण मंदिर को ध्वस्त करने की दलील
इतिहासकार जदु नाथ सरकार के हवाले से जगह के इतिहास के बारे में याचिकाकर्ता अग्निहोत्री ने कहा था कि 1669-70 में औरंगजेब ने भगवान कृष्ण के जन्म मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और एक संरचना बनाई गई थी और इसे ईदगाह मस्जिद कहा गया था।
100 साल बाद मराठों ने गोवर्धन की लड़ाई जीत ली और आगरा और मथुरा के पूरे क्षेत्र के शासक बन गए। मराठों ने मस्जिद को हटाकर भगवान श्रीकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।
नीलामी
1815 में अग्रेजों ने की थी जमीन की नीलामी
याचिका में कहा गया था कि 1815 में अंग्रेजों ने जमीन की नीलामी कर राजापाटनी मल को बेची थी। साल 1944 में राजापाटनी के वारिसों ने जमीन पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त को 19,400 रुपये में बेच दी।
उन्होंने मार्च 1951 में एक ट्रस्ट बनाया और जमीन पर मंदिर बनाने की घोषणा की।
अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह सोसाइटी के बीच जमीन का ट्रस्ट की होने पर समझौता हुआ था।
जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी रोक
बता दें पिछले साल 9 नवंबर को अयोध्या पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ऐसे मामलों में काशी मथुरा सहित देश में 1947 के समय के मौजूद धार्मिक स्थलों पर नए मुकदमे दायर करने पर रोक लगा दी थी।