पिछड़ी जातियों को 75 साल बाद भी योग्यता के समान स्तर पर नहीं पहुंचा सके- केंद्र
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (ST) और अनुसूचित जनजाति (SC) के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें कोर्ट ने कहा कि सरकार की ग्रुप A की नौकरियों में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व कम है और यह उचित नहीं है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि 75 साल के बाद भी ST और SC को उच्च जातियों की योग्यता के स्तर पर नहीं पहुंचा सके हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट ने निरस्त की थी केंद्र सरकार की अधिसूचना
बता दें कि साल 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की अधिसूचना को निरस्त कर दिया था, जिसमें आरक्षित वर्ग के केंद्रीय कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण दिया गया था। अदालत ने कहा था कि 1997 के फैसले के तहत यह आरक्षण तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक यह न देखा जाए कि उच्च पदों पर पिछड़े वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। यह प्रतिनिधित्व तय करने के लिए संख्यात्मक आंकड़ा होना जरूरी है।
इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला
दिल्ली हाई कोर्ट के अधिसूचना को निरस्त करने के बाद पिछड़ी जातियों के कर्मचारियों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए इसे अपना मौलिक अधिकार बताया था। कर्मचारियों ने पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को यथावत रखने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों पर छोड़ा था आरक्षण देने का निर्णय
मामले में लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट साल 2020 में कहा था कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या न करना राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर करता है। कोर्ट ने कहा कि कोई अदालत SC-ST वर्ग के लोगों को आरक्षण देने का आदेश नहीं दे सकती है। इस टिप्पणी के बाद ऐसी बातें होने लगी थीं कि आरक्षण खत्म हो सकता है। सड़क से संसद तक हंगामा हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद राज्यों ने किया अलग-अलग निर्णय
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद राज्यों ने पदोन्नति में आरक्षण को लेकर अलग-अलग निर्णय किए थे। उच्च जाति के सैकड़ों लोग आरक्षण के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए थे। इसको लेकर विरोधाभास हो गया था। बाद में कई राज्य सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से मांगी थी रिपोर्ट
मामले में 14 सितंबर को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में आ रही सभी तरह की कानूनी अड़चनों की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर पहले भी कई गाइडलाइंस बनाई गई हैं और कई फैसलों में उनका जिक्र भी हुआ है। इसको लागू करना राज्यों पर निर्भर करता है कि वह किस तरह पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व देती है या देना चाहती है।
ग्रुप A की नौकरियों में कम है ST और SC का प्रतिनिधित्व- सुप्रीम कोर्ट
मामले में गुरुवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रुप A की नौकरियों में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व कम है और यह उचित नहीं है। सरकार इसे सुधारने के बजाय ग्रुप B और C श्रेणियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर रही है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को आरक्षण में समान प्रतिनिधित्व करने की ओर कदम उठाना चाहिए।
ST और SC को नहीं बना सके उच्च जातियों जितना योग्य- केंद्र
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि 75 साल बाद भी ST-SC के लोगों को योग्यता के उस स्तर पर नहीं लाया जा सका, जिस पर उच्च जातियां हैं। उन्होंने कहा ST और SC वर्ग के लोगों के लिए ग्रुप A की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है। अब समय आ गया है, जब शीर्ष अदालत को रिक्त पदों को भरने के मामले में ST-SC और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
ग्रुप A की नौकरियों में योग्यता का ध्यान रखना जरूरी- केंद्र
वेणुगोपाल ने कहा ग्रुप A में बराबरी के लिए योग्यता को उच्च स्तर पर पहुंचाना होगा, क्योंकि इसमें दक्षता पर ध्यान दिया जाता है और पिछड़ेपन का कोई महत्व नहीं है। ऐसे में रिक्तियों को भरने के लिए ठोस आधार देने का समय आ गया।
वेणुगोपाल ने कही हलफनामा दाखिल करने की बात
वेणुगोपाल ने कहा कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अनुसार केंद्र सरकार में 5,000 कैडर और 53 विभाग हैं। ऐसे में इस मामले में अलग से हलफनामा दायर करेंगे। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने पीठ को बताया कि 1965 से 2017 के बीच उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ग्रुप A और B श्रेणी में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व कम है, जबकि ग्रुप C और D में इन जातियों का प्रतिनिधित्व ज्यादा है। इसे समान करना होगा।