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    निरस्त धारा 66A के तहत मामले दर्ज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को नोटिस
    निरस्त धारा 66A के तहत मामले दर्ज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को नोटिस

    निरस्त धारा 66A के तहत मामले दर्ज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को नोटिस

    लेखन प्रमोद कुमार
    Aug 02, 2021
    01:08 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निरस्त हो चुकी IT अधिनियम की धारा 66A के तहत मामले दर्ज करने के लिए नोटिस दिया है।

    साथ ही सभी हाई कोर्ट्स के रजिस्ट्रार जनरल को भी नोटिस भेजकर चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।

    सुनवाई के दौरान जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि यह मामला केवल अदालत से नहीं बल्कि पुलिस से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए नोटिस जारी किया जा रहा है।

    जानकारी

    PUCL की याचिका पर हो रही सुनवाई

    पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (PUCL) की तरफ से जारी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि चूंकि पुलिस राज्य का विषय है इसलिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पार्टी बनाकर एक आदेश दिया जाए ताकि एक बार में ही मामला निपट सके।

    अब चार सप्ताह बाद मामले की अगली सुनवाई होगी। इससे पहले 5 जुलाई को यह मामला सुना गया था।

    सुनवाई

    याचिकाकर्ता ने क्या दलील दी?

    PUCL की तरफ से दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि इस मामले के दो पहलू हैं। पहला पुलिस है, जो इस धारा में मामले दर्ज कर रही है और दूसरी न्यायपालिका है, जहां इस धारा के तहत मुकदमे चल रहे हैं।

    इस पर बेंच ने कहा कि जहां तक न्यायपालिका का मामला है तो वह इस पर ध्यान देगी और सभी कोर्ट्स को नोटिस जारी किए जाएंगे।

    धारा 66A

    केंद्र ने भी राज्यों से मामले दर्ज न करने को कहा

    PUCL ने अपनी याचिका में बताया है कि 66A खत्म होने से पहले इसके तहत 229 मामले चल रहे थे और उसके बाद से 1,307 नए मामले दर्ज किए जा चुके हैं। 5 जुलाई को इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए इसे भयानक बताया था।

    इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्यों को नोटिस भेजकर कहा था कि निरस्त हुई धाराओं के तहत कोई मामला दर्ज नहीं हो और पुराने मामले रद्द किए जाने चाहिए।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त की थी धारा 66A

    सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को अपने ऐतिहासिक फैसले में IT अधिनियम की धारा 66A को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए निरस्त कर दिया था।

    इस धारा के तहत किसी भी तरह की 'अपमानजनक' सामग्री ऑनलाइन डालने पर तीन साल तक की सजा हो सकती थी। इसके साथ दिक्कत ये थी कि किस सामग्री को अपमानजनक माना जाएगा, ये तय नहीं था और सरकारें अक्सर इसका उपयोग अपनी आलोचना को दबाने के लिए करती थीं।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चल रहे मामले

    याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 66A को निरस्त करने के अपने आदेश की कॉपी हाई कोर्ट्स के जरिए हर जिला कोर्ट को भेजने निर्देश भी दिया था। इसके अलावा केंद्र सरकार को सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को इसकी कॉपी भेजने और मुख्य सचिवों को सभी पुलिस विभागों को इसकी कॉपी भेजने का निर्देश भी दिया गया था।

    याचिका के अनुसार, इसके बावजूद न केवल पुलिस स्टेशन बल्कि स्थानीय कोर्ट्स में भी 66A के मामले चल रहे हैं।

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