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लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा दांव, आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10% आरक्षण

लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा दांव, आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10% आरक्षण

Jan 07, 2019
03:35 pm

क्या है खबर?

लोकसभा चुनाव 2019 को अब गिनती के दिन बचे हुए हैं, ऐसे में मोदी सरकार ने एक बड़ा चुनावी दांव खेला है। जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने सोमवार को आर्थिक आधार पर सवर्ण जातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर दी है। यह आरक्षण नौकरियों और शिक्षा में दिया जाएगा। आपको बता दें कि इससे पहले सवर्ण जाति के लोगों को किसी भी तरह का आरक्षण नहीं दिया जाता था।

चुनावी दांव

सवर्णों को ख़ुश करने के लिए मोदी सरकार ने खेला चुनावी दांव

बताया जा रहा है कि मोदी सरकार ने नाराज सवर्णों को ख़ुश करने के लिए यह बड़ा चुनावी दांव खेला है। मोदी कैबिनेट ने आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया है। भारतीय संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। भारत में आरक्षण शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को दिया जाता है, लेकिन अब से Rs. 8 लाख से कम सालाना आय वाले सवर्णों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।

आरक्षण

आरक्षण दिए जाने का आँकड़ा नहीं हो सकता 50 प्रतिशत से ज़्यादा

मोदी सरकार के इस फ़ैसले से अब कमजोर आर्थिक वर्ग के सवर्णों को काफ़ी फ़ायदा मिलेगा। आरक्षण लागू करने के लिए सरकार कल संविधान संशोधन विधेयक भी ला सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ़ किया था कि किसी भी स्थिति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या अन्य किसी श्रेणी में दिए जानें वाले आरक्षण का कुल आँकड़ा 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं हो सकता है।

जानकारी

केवल तमिलनाडु में मिल सकता हैं 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण

आपको बता दें कि पूरे देश में तमिलनाडु ही एक ऐसा राज्य है, जहाँ 50 प्रतिशत से ज़्यादा आरक्षण देने का प्रावधान है। राज्य में 68 प्रतिशत आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है, इसलिए संसद ने इसे अनुसूची 9 में डलवा दिया है।

आंदोलन

पिछले साल सवर्णों ने किये थे आरक्षण को लेकर आंदोलन

पिछले साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के ख़िलाफ़ सवर्णों ने आंदोलन की शुरुआत की थी। इसका सबसे ज़्यादा असर मध्य प्रदेश में देखा गया था। सवर्णों का यह आंदोलन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ था। कई लोगों का मानना है कि सवर्णों के इसी आंदोलन की वजह से इन तीनों राज्यों में भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा है।