सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने की वैधता पर सुनाया फैसला, पक्ष-विपक्ष ने दिए थे ये तर्क
सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने की संवैधानिक वैधता पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने के राष्ट्रपति के आदेश को वैध ठहराया है। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने को कहा है। बता दें, 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में कई याचिकाएं दी गई थीं।
सबसे पहले जानें क्या था अनुच्छेद 370
1949 में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था। ये एक अस्थायी प्रावधान था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति दी गई थी। संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता और विशेष अधिकार प्रदान करता था। इसका मतलब था कि भारत सरकार केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार के मसलों में ही राज्य में हस्तक्षेप कर सकती थी। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और जम्मू-कश्मीर) होती थी।
याचिकाकर्ताओं ने क्या तर्क दिया था?
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था, "अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। 1957 में संविधान सभा के विघटन के बाद अनुच्छेद 370 स्थायी हो गया और इसे हटाने की कोई संवैधानिक प्रक्रिया नहीं बची थी।" उन्होंने कहा, "केंद्र को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संविधान सभा की भूमिका नहीं निभानी चाहिए थी। इसको निरस्त करने का कोई निर्णय राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से ही लिया जा सकता था और यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।"
केंद्र ने निभाई संविधान सभा की भूमिका- याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ताओं ने कहा, "संविधान सभा की अनुपस्थिति में केंद्र सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की भूमिका निभाई और राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से शक्तियों का प्रयोग किया।" उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी कानून में बदलाव के लिए राज्य सरकार की सहमति अनिवार्य है। यह ध्यान में रखते हुए कि जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और इसमें राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी।"
याचिकाकर्ताओं ने राज्य का दर्जा खत्म करने पर भी उठाए सवाल
याचिकाकर्ताओं ने कहा, "राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा को भंग नहीं कर सकते थे और केंद्र ने जो किया है, वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और अंतिम साधन को उचित नहीं ठहराता है।" उन्होंने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 3 ने केंद्र को राज्यों की सीमाओं को बदलने और विभाजन के माध्यम से छोटे राज्य बनाने की शक्ति दी है, लेकिन कभी भी पूरे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश नहीं बनाया गया।"
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
सुनवाई में केंद्र ने कहा था, "संविधान के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और केंद्र के पास राष्ट्रपति का आदेश जारी करने की शक्ति थी। अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की 'संवैधानिक धोखाधड़ी' नहीं हुई है।" उसने कहा, "राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार की सहमति से जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान में संशोधन करने की शक्ति है। वह संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकते हैं।"
अनुच्छेद 370 के विनाशकारी प्रभाव हो सकते थे- केंद्र
केंद्र ने कोर्ट में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने के संभावित नकारात्मक प्रभावों का हवाला दिया। उसने कहा, "अगर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया गया होता तो इसका पूर्ववर्ती राज्य में 'विनाशकारी प्रभाव' हो सकता था। जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के लिए इसे हटाना जरूरी था। अनुच्छेद 370 एक स्थायी अनुच्छेद नहीं था और इसका मतलब संविधान में केवल एक अस्थायी प्रावधान था।"
कोर्ट ने पूछे ये सवाल
सुनवाई को दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा, "क्या अनुच्छेद 370 संविधान में स्थायी प्रावधान बन गया? क्या धारा 370 स्थायी प्रावधान बन जाने पर संसद के पास इसमें संशोधन करने की शक्ति है?" उन्होने पूछा, "क्या संसद के राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाने पर प्रतिबंध है और केंद्र शासित प्रदेश कब तक अस्तित्व में रह सकता है? संविधान सभा के अभाव में धारा 370 को हटाने की सिफारिश कौन कर सकता है?"