#NewsBytesExplainer: अनुच्छेद 370 को लेकर सोमवार को फैसला सुनाएगा सुप्रीम, जानें पूरा विवाद
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर सोमवार (11 दिसंबर) को अपना फैसला सुनाएगा। मामले से संंबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई पूरी हो गई है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने याचिकाओं पर 16 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
आइए जानते हैं कि अनुच्छेद 370 क्या था और इसे हटाने को लेकर विवाद क्यों है।
क्या है अनुच्छेद
अनुच्छेद 370 क्या था?
1949 में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था। ये एक अस्थायी प्रावधान था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति दी गई थी।
संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता और विशेष अधिकार प्रदान करता था। इसका मतलब था कि भारत सरकार केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार के मसलों में ही राज्य में हस्तक्षेप कर सकती थी।
इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और जम्मू-कश्मीर) होती थी।
विवाद
क्यों है विवाद?
अनुच्छेद 370 को तब तक अस्थायी माना जाता था, जब तक कि 1951 से 1957 तक अस्तित्व में रही जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने इसे निरस्त करने के बारे में निर्णय नहीं ले लिया।
चूंकि कोई निर्णय नहीं लिया गया, इसलिए यह स्वत: स्थायी हो गया। इसके बाद अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए कोई संवैधानिक प्रक्रिया नहीं बची थी।
इसका अर्थ है कि इसे निरस्त करने का कोई निर्णय राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से ही लिया जा सकता था।
संविधान
क्या कहता है संविधान?
जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान के अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।
अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है।
राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा को भंग नहीं कर सकते थे।
आपत्ति
क्या है आपत्ति?
संविधान के अनुच्छेद 3 ने संघ को राज्यों की सीमाओं को बदलने और यहां तक कि विभाजन के माध्यम से छोटे राज्य बनाने की शक्ति दी है।
इसका उपयोग पहले कभी भी पूरे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करने के लिए नहीं किया गया।
अनुच्छेद 3 का प्रावधान राष्ट्रपति के लिए किसी राज्य के पुनर्गठन के लिए विधेयक को संदर्भित करना अनिवार्य बनाता है, लेकिन पुनर्गठन विधेयक पेश करने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति नहीं ली गई।
सुनवाई
कोर्ट ने केंद्र से पूछी थी राज्य का दर्जा बहाल करने की समयसीमा
CJI चंद्रचूड़ ने केंद्र से पूछा था, "क्या आप एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकते हैं? क्या एक केंद्र शासित प्रदेश को एक राज्य से अलग किया जा सकता है? और यहां चुनाव कब होंगे। हमें कोई विशिष्ट समयसीमा बताइए।"
इस पर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कहा था, "जम्मू-कश्मीर हमेशा के लिए केंद्र शासित प्रदेश नहीं रहेगा और यह निर्णय अस्थायी और स्थिति सामान्य करने के प्रयास किए जा रहे हैं।"
कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में कब से लंबित हैं मामला?
सुप्रीम कोर्ट में 2020 से यह मामला लंबित था। 2 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी।
इसे लेकर कोर्ट में 16 दिन तक काफी विस्तार से चर्चा और व्यापक बहस की गई। याचिकर्ताओं और केंद्र की ओर से पीठ के समक्ष अपने-अपने तर्क रखे गए।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
जानकारी
संवैधानिक पीठ कौन-कौन शामिल?
CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ में न्यायाधीश संजय किशन कौल, न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश सूर्यकांत शामिल थे, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने की वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।
अनुच्छेद
अनुच्छेद 370 कब किया गया निरस्त?
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर इसका विशेष दर्जा खत्म कर दिया था और राज्य को 2 अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश में बांटा था।
लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, जो बाद में अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में अनुच्छेद 370 के हटाने के फैसले अलावा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को भी चुनौती दी थी, जिसका उपयोग राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के लिए किया गया।