सुप्रीम कोर्ट से हरियाणा सरकार को राहत, निजी क्षेत्र में आरक्षण वाले कानून से रोक हटाई
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट के उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने के हरियाणा सरकार के कानून पर रोक लगाई गई थी। हरियाणा सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को एक महीने के भीतर इस मामले पर फैसला लेने को कहा है। साथ ही आदेश दिया है कि राज्य सरकार इस दौरान नियोक्ताओं के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगी।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा था जवाब
हाई कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजी क्षेत्र में नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती हैं। अगर कंपनियों से यह अधिकार छीन लिया जाएगा तो उद्योग आगे नहीं बढ़ पाएंगे। वहीं हरियाणा सरकार ने इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी। इस महीने की शुरुआत में इन पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा था।
हरियाणा सरकार ने दी यह दलील
हाई कोर्ट की तरफ से कानून पर लगाई रोक के खिलाफ हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। गुरुवार को सुनवाई के दौरान हरियाणा की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड में भी ऐसे कानून है। झारखंड और महाराष्ट्र में इन्हें चुनौती नहीं दी गई, जबकि आंध्र प्रदेश में इस पर कोई रोक नहीं है। दाखिलों आदि में पहले भी डोमिसाइल की इजाजत है।
हाई कोर्ट ने नहीं दिए पर्याप्त कारण- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कानून पर रोक लगाने के पर्याप्त कारण नहीं बताए हैं। जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने कहा, "हम इस मामले की मेरिट पर नहीं जाना चाहते और हाई कोर्ट से इस मामले में चार हफ्ते में फैसला लेने के निवेदन करते हैं। सभी पक्षों को तारीखें आगे न बढ़ाने और सुनवाई के दौरान मौजूद रहने का निर्देश दिया जाता है।"
हरियाणा के उप मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
इसी साल लागू हुआ है कानून
हरियाणा में निजी क्षेत्र में स्थानीय युवाओं के लिए 75 फीसदी नौकरियां आरक्षित रखने का कानून इसी साल 15 जनवरी से लागू हुआ है। निजी कंपनी, सोसायटी, ट्रस्ट और पार्टनरशिप फर्में इसके दायरे में आएंगी और यह कानून 30,000 रुपये मासिक वेतन वाली नौकरियों पर लागू होगा। यह कानून 10 साल तक प्रभावी रहना है। दूसरी तरफ निजी कंपनियां इसका भारी विरोध कर रही थी और इसे योग्यता के सिद्धांत के खिलाफ बताया जा रहा था।