भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हुई, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लगाई तीनों रथों की परिक्रमा
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई है। गर्मी और उमस के बावजूद हजारों की तादाद में लोग मौजूद हैं। ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी यात्रा में शामिल होने पहुंची हैं। 3 अलग-अलग रथों में सवार होकर भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले हैं। 53 साल बाद ऐसा हो रहा है, जब रथयात्रा की शुरुआती अवधि 2 दिन रहेगी।
पुरी के राजा ने सोने की झाड़ू से की रथ की सफाई
यात्रा शुरू होने से पहले पुरी के राजा दिव्य सिंह देब ने छोरा पोहरा की परंपरा पूरी की। इसमें राजा ने सोने की झाड़ू से रथ की सफलाई की। बता दें कि इस झाड़ू का हत्था सोने का होता है। इससे पहले पुरी के गजपति महाराजा ने भगवान की पूजा की। गजपति महाराजा को जगन्नाथ का प्रमुख सेवक माना जाता है। पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए।
राष्ट्रपति मुर्मू ने की तीनों रथों की परिक्रमा
रथ यात्रा शुरू होने से पहले राष्ट्रपति मुर्मू ने तीनों रथों की परिक्रमा कर सुख-शांति की कामना की। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री पटनायक ने परिक्रमा लगाई। सबसे पहले बलभद्र का रथ खींचा गया। उसके बाद सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ का रख खींचा गया।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
पुरी के पुलिस अधीक्षक पिनाक मिश्रा ने समाचार एजेंसी PTI से कहा, "राज्य और केंद्र सरकार की सुरक्षाबलों की 180 प्लाटून को कानून और व्यवस्था का प्रबंधन करने और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तैनात किया गया है।" उन्होंने आगे कहा, "यात्रा मार्ग और प्रमुख स्थलों पर AI से लैस कैमरे लगाए गए हैं। यात्रा के दौरान अगर कोई बीमार पड़ता है तो उसके लिए ग्रीन कॉरिडोर की व्यवस्था भी की गई है।"
यात्रा में कब-क्या होगा?
7 जुलाई को सूर्यास्त के बाद रथों को रोक दिया जाएगा। इसके बाद 8 जुलाई को रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचेंगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की मौसी थी और रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जी अपनी मौसी के घर 7 दिन तक रुकते हैं। 9 से 15 जुलाई तक भगवान जगन्नाथ यहीं रहेंगे। 16 जुलाई को रथ यात्रा का समापन हो जाएगा और तीनों देवी-देवता वापस जगन्नाथ मंदिर लौट आएंगे।
कैसे हुई जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत?
मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई थी। एक बार भगवान जगन्नाथ की बहत सुभद्रा ने नगर घूमने की इच्छा जताई थी। उसके बाद भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलराम ने तीन भव्य रथ तैयार कराए और उन्हीं से तीनों नगर भ्रमण पर गए थे। रास्ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और वहां 7 दिन ठहरकर वापस पुरी लौट आए। उसके बाद से यह यात्रा जारी है।