मंदिर विशेष: कई रहस्यों से भरा है जगन्नाथ पुरी मंंदिर, माना जाता है धरती का बैकुंठ
भारत के सबसे बड़े मंदिरों में शामिल पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा पर पहले रोक लगाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इसकी मंजूरी दे दी है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। आइए इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं।
कहां पर स्थित है ये मंदिर?
हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र नगरी पुरी ओडिशा राज्य के समुद्र तट पर बसी है। यहां जगन्नाथ मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है। मंदिर कलिंग शैली से बना हुआ है जिसके आश्चर्यजनक प्रयोग स्थापत्य कला और शिल्प की खूबसूरती की मिसाल कायम करते हैं। मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र है जो शहर के किसी भी कोने से देखने पर मध्य में ही नजर आता है।
कई मशक्कतों के बाद हुआ मंदिर की निर्माण
गंग वंश में मिले ताम्र पत्रों के मुताबिक, 12वीं शताब्दी के कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने इस मंदिर का निर्माण शुरु करवाया था जो उनके शासनकाल में पूरा नहीं हुआ। इसके बाद ओडिशा राज्य के शासक अनंग भीम ने सन् 1197 में इस मंदिर को वर्तमान रुप दिया। लेकिन सन् 1558 में अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला करके मूर्तियों समेत मंदिर को तबाह कर दिया। इसके बाद खुर्दा में मंदिर समेत मूर्तियों की पुन: स्थापना हुई।
धरती का बैकुंठ माना जाता है जगन्नाथ मंदिर
पुराणों में जगन्नाथ मंदिर को धरती का बैकुंठ माना गया है क्योंकि यहां भगवान श्रीकृष्ण हमेशा उपस्थित रहते हैं। यहां की सबर जनजाति उन्हें अपना अराध्य देव मानती है, इसलिए यहां भगवान विष्णु का रूप अन्य मंदिरों की तुलना में थोड़ा अलग नजर आता है।
कई रहस्यों से परिपूर्ण है भगवान जगन्नाथ का मंदिर
हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का बहुत महत्व है, जिसमें रामेश्वरम, बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी और जगन्नाथ पुरी के नाम शामिल हैं। मगर रोचक बात यह है कि केवल जगन्नाथ पुरी की यात्रा चार धामों की यात्रा के बराबर है। इसके अलावा जगन्नाथ पुरी मंदिर से संबंधित कई चमत्कार बहुत ही प्रसिद्ध हैं, जिन पर विश्वास करना बहुत ही कठिन है क्योंकि विज्ञान भी अब तक इनके जबाव ढूंढने में असमर्थ रहा है।
मंदिर के आस-पास की हवा बहती है विपरीत दिशा में
आमतौर पर हवा दिन में समुद्र से धरती की तरफ और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चलती है। मगर मंदिर की चोटी पर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है क्योंकि मंदिर में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात में मंदिर की तरफ बहती है। इसके अलावा मंदिर पर लगे सुदर्शन चक्र के दर्शन आप मंदिर परिसर में कहीं से भी कर सकते हैं, क्योंकि हर तरफ से ये आपके सामने नजर आएगा।
बहुत ही अनोखे तरीके से तैयार होता है मंदिर का प्रसाद
इस मंदिर का प्रसाद बहुत ही अनोखे तरीके से पकाया जाता है। दरअसल, प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं, जिन्हें लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। मगर इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर बर्तन में रखी गई सामग्री सबसे पहले पकती है और फिर धीरे-धीरे नीचे के बर्तनों में रखी सामग्री पकती है। साथ ही यहां की विशाल रसोई में भगवान जगन्नाथ को चढ़ने वाले महाप्रसाद को करीब 800 लोग मिलकर तैयार करते हैं।
मंदिर में आए भक्तों के लिए कभी भी कम नहीं पड़ता प्रसाद
इस मंदिर से जुड़ा यह अद्भुत रहस्य भी काफी प्रसिद्ध है कि इसके मुख्य गुंबद की छाया दिन के समय जमीन पर नहीं पड़ती है। इसके अलावा ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन चाहे कितने भी श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां आएं, मगर प्रसाद की मात्रा कभी घटती नहीं है। इस मंदिर में चाहे श्रद्धालुओं की संख्या में कितनी भी वृद्धि हो जाए, लेकिन इसके अंदर पकाया जाने वाला प्रसाद कभी कम नहीं होता है।
मंदिर में समुद्र की आवाज नहीं आती
आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन इस मंदिर की एक और चमत्कारी बात यह है कि मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आपको समुद्र की लहरों की ध्वनि नहीं सुनाई देगी। लेकिन जैसे ही आप मंदिर प्रांगण से निकलेंगे तो आप समुद्र की लहरों की ध्वनि स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आप सुबह और शाम के समय इस चमत्कार को और अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर सकते हैं।
ऐसा हुआ तो 18 वर्षों के लिए बंद करना पड़ेगा मंदिर
भारत में स्थित किसी मंदिर का ध्वज हर दिन नहीं बदला जाता है, लेकिन भगवान जगन्नाथ का मंदिर ही एक ऐसा मात्र मंदिर है जिसका ध्वज हर दिन बदला जाता है। जानकारी के मुताबिक, हर दिन इस मंदिर के एक पुजारी को ऊंचे गुंबद पर चढ़कर ध्वज बदलना होता है। दरअसल, जगन्नाथ मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर को 18 वर्षों के लिए बंद करना पड़ेगा।
इस वजह से निकलती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
रथयात्रा तभी शुरू होती है, जब भगवान जगन्नाथ पूरी तरह स्वस्थ होते हैं। मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक भगवान जगन्नाथजी बीमार रहते हैं और इन 15 दिनों में इनका उपचार शिशु की भांति चलता है। इस रथ यात्रा के चलते भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ निमंत्रण पर गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। गुंडीचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर कहते हैं, जहां भगवान हफ्ते भर रहते हैं।
जगन्नाथ जी के जन्म स्नान का है बहुत महत्व
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की ही तरह उनको उनके जन्मदिन के अवसर पर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मंदिर से बाहर लेकर जाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के जन्मदिन को उनके श्रदालु एक उत्सव की तरह मनाते है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बालभद्रजी को मंदिर से बाहर लाकर स्नान बेदी पर पूरे पारंपरिक तरीके से शुद्ध जल से भरे 108 घड़ों से स्नान कराया जाता है। यह परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के समय से चली आ रही है।