रविवार को लाखों ग्रामीण लोगों को उनकी संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज सौंपेंगे प्रधानमंत्री मोदी
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री मोदी रविवार को अलग-अलग राज्यों के 763 गांवों के लगभग 1.32 लाख लोगों को उनके घर और उसके आसपास की जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज सौपेंगे।
इस कदम को भूमि स्वामित्व के मामले में बड़े सुधार के तौर पर देखा जा रहा है।
इससे न केवल ग्रामीण इलाकों में संपत्ति की पहचान आसान होगी बल्कि सालों और कुछ मामलों में दशकों से चले आ रहे भूमि विवाद का भी निपटारा करने में मदद मिलेगी।
फायदा
इसका फायदा क्या होगा?
इस दस्तावेजों को लोग लोन लेने के लिए अपनी वित्तीय संपत्ति के तौर पर दिखा सकते हैं। साथ ही इससे ग्रामीण इलाकों में प्रोपर्टी का रिकॉर्ड रखन में मदद मिलेगी। अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 24 अप्रैल को 'स्वामित्व' अभियान शुरू किया था।
इसी अभियान के तहत लोगों को टाइटल डीड सौंपी जा रही है। अभियान के तहत 2024 तक देश के सभी शहरी और आबादी इलाकों की पैमाइश का लक्ष्य है।
स्वामित्व योजना
आधार कार्ड जैसा होगा प्रोपर्टी कार्ड
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार को हरियाणा के 221, कर्नाटक के दो, महाराष्ट्र के 100, मध्य प्रदेश के 44, उत्तर प्रदेश के 346 और उत्तराखंड के 50 गांवों के लोगों को मालिकाना हक के दस्तावेजों की फिजिकल कॉपी के साथ-साथ डिजिटल प्रोपर्टी कार्ड भी सौंपेंगे।
मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि ये आधार कार्ड की तरह दिखने वाला एक कार्ड होगा, जिस पर सभी जरूरी जानकारियां अंकित होगी।
योजना
ड्रोन की मदद से मापी गई है जमीन
पहचान जाहिर न करने की शर्त पर अधिकारियों ने बताया कि इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में संपत्ति को सत्यापित करवाने के एक आसान समाधान उपलब्ध कराना है।
इसमें ड्रोन की मदद से पंचायती राज मंत्रालय, राज्यों के राजस्व विभाग और सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा लोगों की जमीनों की निशानदेही की गई है।
उन्होंने कहा कि इससे ग्रामीण इलाकों में भूमि विवाद भी सुलझेंगे और लोगों को लोन लेने में भी आसानी होगी।
भूमि स्वामित्व
अभी तक केवल खेती लायक जमीन का रिकॉर्ड मौजूद
राजस्व विभाग के स्थानीय प्रतिनिधि वहां रहने वाले लोगों की उपस्थिति में जमीन के मालिक का रिकॉर्ड तैयार करेंगे। इसके साथ ही अगर कोई विवाद होता है तो मौके पर ही उसके निवारण की व्यवस्था भी की गई है।
अभी सिर्फ खेती लायक जमीनों के का रिकॉर्ड मौजूद है। गांवों में रहने वाले लोगों के घरों और उसके आसपास की जमीन का रिकॉर्ड तैयार नहीं किया गया है।
अब सरकार इस समस्या को दूर करने का प्रयास कर रही है।
जरूरत
क्यों पड़ी नई व्यवस्था की जरूरत?
गांवों में रहने वाले अधिकतर लोगों के पास उनके घरों पर मालिकाना हक का रिकॉर्ड नहीं है।
ऐसी स्थिति में किसी भी प्रकार का विवाद होने पर इसका मामला दीवानी अदालतों में पहुंचता है, जहां कई सालों तक इस पर सुनवाई चलती रहती है और मौके पर इसका समाधान नहीं हो पाता।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश की दीवानी अदालतों में लंबित पड़े लगभग 40 प्रतिशत मामले आबादी जमीन को लेकर चल रहे विवादों से जुड़े हुए हैं।