क्यों महत्वपूर्ण है अंबाला एयरबेस, जहां तैनात हुए राफेल लड़ाकू विमान?

लंबे इंतजार के बाद आखिरकार राफेल लड़ाकू विमान भारत पहुंच गए हैं। सोमवार को फ्रांस से उड़ने वाले पांच विमान बुधवार को हरियाणा स्थित अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर उतरे। अब ये औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना की 'गोल्डन एरो' स्क्वॉड्रन में शामिल हो जाएंगे। खुद वायुसेना प्रमुख इनकी अगवानी के लिए अंबाला पहुंचे थे। इसी बीच कई लोगों के मन में अंबाला एयरफोर्स स्टेशन को लेकर कई सवाल हैं। आइये, ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानते हैं।
अंबाला हरियाणा और पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के पास स्थित एक प्रमुख शहर हैं। यहां मौजूद सैन्य छावनी के इतिहास की बात करें तो इसकी स्थापना अंग्रेजों ने साल 1843 में की थी। इससे पहले यह मौजूदा हरियाणा के ही दूसरे शहर करनाल में मौजूद थी। वहां मलेरिया फैलने के लिए कारण छावनी को अंबाला में शिफ्ट किया गया। 1919 में अंबाला (तब उमबाला) में रॉयल एयर फोर्स (RAF) की 99 स्क्वॉड्रन का बेस बनाया गया।
शुरुआत में यहां से D हैविलैंड 9A और ब्रिस्टल F2B जैसे विमान उड़ान भरते थे। धीरे-धीरे भारत में हवाई परिचालन बढ़ता गया। इसे देखते हुए अंग्रेजों ने और अधिकारियों को अंबाला भेजना शुरू कर दिया। जून, 1938 में में इसे परमानेंट एयबेस बना दिया गया। यहां पर एक ट्रेनिंग स्कूल भी था। अगले ही साल तत्कालीन फ्लाइट लेफ्टिनेंट और बाद में एयर मार्शल बने सुब्रतो मुखर्जी अंबाला में स्क्वॉड्रन लीडर बने। इस पद पर पहुंचने वाले वो पहले भारतीय थे।
1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद तत्कालीन ग्रुप कैप्टन और बाद में वायुसेना के मार्शल बने अर्जन सिंह ने अंबाला एयरबेस की कमांड संभाली। उन्होंने आजादी के बाद स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के ऊपर से फ्लाई पास्ट किया था। बाद में सरकार ने अंबाला एयरबेस को एरियल फोटोग्राफिक सर्वे का केंद्र भी बनाया। आजतक के मुताबिक, अनेक अभियानों के लिए यहां वैम्पायर्स, टोफोरिस, मिसटियर्स और हंटर्स आदि विमानों का भी संचालन किया गया।
1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने अंबाला एयरबेस पर हमला किया था। पाकिस्तानी पायलट एयरबेस को तबाह करना चाहते थे, लेकिन उनका निशाना चूक गया और बम हैंगर और रनवे की जगह पास के चर्च पर गिरा। इसी तरह 1971 में भी पाकिस्तान ने फिर ऐसी कोशिश की, लेकिन वो नाकामयाब रहा। इस युद्ध में अंबाला एयरबेस पर तैनात फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान के दो विमान मार गिराए थे।
करगिल युद्ध के समय ऑपरेशन सफेद सागर के दौरान अंबाला एयरबेस से 234 उड़ानें भरी गई थी। इसके अलावा पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में की गई एयरस्ट्राइक के लिए भी यहां से विमान उड़े थे।
एयर वाइस मार्शल (रिटायर्ड) सुनील नानोदकर ने अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर जगुआर स्क्वॉड्रन के कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर लंबा समय बिताया था। वो कहते हैं कि अंबाला में कई विमान अंबाला में लैंड होकर वायुसेना में शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा, "फ्रांस से आए मिसटियर्स विमान, जगुआर विमानों की पहली दो स्क्वॉड्रन और मिग-21 बाइसन की पहली स्क्वॉड्रन और अब राफेल, ये सब अंबाला में ही वायुसेना में शामिल किए गए हैं।"
अंबाला भौगोलिक और रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह उत्तर पश्चिम में नियंत्रण रेखा और उत्तर पूर्व में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगभग समान दूरी पर है। यहां पर पहले से ही जगुआर विमानों की दो स्क्वॉड्रन तैनात हैं। यहां से विमान उड़कर कम समय में चीन और पाकिस्तान की सीमा पर पहुंच सकते हैं, लेकिन यह सीमा से इतनी दूर है कि दुश्मन की निगरानी की पहुंच से बाहर है।
The Touchdown of Rafale at Ambala. pic.twitter.com/e3OFQa1bZY
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) July 29, 2020
इसके अलावा सीमा से दूरी, बेस इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी सुविधा, विमान उड़ाने के लिए खाली एयरस्पेस और ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त संसाधन जैसे दूसरे कई महत्वपूर्ण कारणों से राफेल को यहां तैनात किया गया है।