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    मैरिटल रेप: फैसले को लेकर दिल्ली HC के जजों की अलग-अलग राय

    मैरिटल रेप: फैसले को लेकर दिल्ली HC के जजों की अलग-अलग राय
    लेखन प्रमोद कुमार
    May 11, 2022, 04:35 pm 1 मिनट में पढ़ें
    मैरिटल रेप: फैसले को लेकर दिल्ली HC के जजों की अलग-अलग राय
    मैरिटल रेप: फैसले को लेकर दिल्ली HC के जजों की अलग-अलग राय

    मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की याचिका पर सुनवाई कर रही दिल्ली हाई कोर्ट को डबल बेंच फैसले पर एकमत नहीं हो सकी। इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच के दोनों जजों की मुद्दे पर अलग-अलग राय रही। हालांकि, दोनों जजों ने इस पर सहमति जताई कि यह अहम कानून से जुड़ा मुद्दा है इसलिए सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई होनी चाहिए। अन्य हाई कोर्ट्स के भी इस पर फैसले हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के सामने हैं।

    क्या होता है मैरिटल रेप?

    अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बिना या जबरन यौन संबंध स्थापित करता है तो उसे मैरिटल रेप कहा जाता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) में रेप की परिभाषा तो तय की गई है, लेकिन मैरिटल रेप को कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऐसे में यदि शादी के बाद कोई पति अपनी पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाता है तो उसके लिए रेप केस में कानूनी मदद का प्रावधान नहीं है।

    ये रही जजों की राय

    जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि मौजूदा कानून के प्रावधान का विरोध करते हुए कहा कि पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना जबरन संबंध बनाना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसलिए उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए। जस्टिस सी हरिशंकर उनके फैसले से सहमत नहीं हुए और कहा कि मौजूदा प्रावधान असंवैधानिक नहीं है। इस तरह दोनों जजों की अलग-अलग राय के चलते इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ पाया।

    21 फरवरी को कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला

    NGO RIT फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमन एसोसिएशन की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई थी। 21 फरवरी को सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध बनाना 'झूठे मामलों की बाढ़' ला सकता है। भारत में महिलाओं की वित्तीय स्थिति, साक्षरता, गरीबी जैसी समस्याएं हैं और मैरिटल रेप को अपराध बनाने से पहले इन पर विचार करना चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था जरूरी फैसला

    दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फैसले से एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था। दरअसल, मार्च में कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपनी पत्नी से रेप के आरोपी के खिलाफ ट्रायल जारी रखने का फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा था कि बतौर संस्था शादी पुरुषों को किसी तरह का विशेषाधिकार नहीं देती है।

    IPC में क्या है रेप की परिभाषा?

    भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी महिला से उसकी इच्छा और सहमति के बिना, जान से मारने की धमकी या अन्य तरीके से सहमति लेकर, शादी का झांसा देकर, महिला की खराब मानसिक स्थिति में या नशीला पदार्थ खिलाकर सहमति लेकर यौन संबंध बनाता है तो इसे रेप कहा जाएगा। वहीं 16 साल से कम उम्र की किशोरी से उसकी सहमति या जबरन बनाया गया यौन संबंध भी रेप माना जाता है।

    ये अपवाद बना विवाद का कारण

    IPC की धारा 375 में एक बड़ा अपवाद रह गया है, जिसके कारण ही मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है। धारा 375 में प्रावधान है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम भी है तो पति का उसके साथ बनाया गया यौन संबंध दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। फिर चाहे पति ने वह यौन संबंध जबरदस्ती या पत्नी की सहमति के बगैर ही क्यों न बनाया हो। ऐसे में यह अपवाद विवाद का कारण बना हुआ है।

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