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    महाराष्ट्र की झोली से गया 1.8 लाख करोड़ रुपये का निवेश, विपक्ष के निशाने पर सरकार

    महाराष्ट्र की झोली से गया 1.8 लाख करोड़ रुपये का निवेश, विपक्ष के निशाने पर सरकार
    लेखन प्रमोद कुमार
    Oct 29, 2022, 12:57 pm 1 मिनट में पढ़ें
    महाराष्ट्र की झोली से गया 1.8 लाख करोड़ रुपये का निवेश, विपक्ष के निशाने पर सरकार
    दो महीनों में महाराष्ट्र की झोली से गया 1.8 लाख करोड़ का निवेश

    इसी सप्ताह खबर आई थी कि यूरोपीय कंपनी एयरबस गुजरात में औद्योगिक कारखाना लगाने जा रही है। इस कारखाने में कंपनी टाटा समूह के साथ सैन्य विमानों का निर्माण करेगी। यह पहली बार है, जब देश में कोई निजी कंपनी सैन्य विमान बनाने जा रही है। पहले यह कारखाना महाराष्ट्र में लगना था, लेकिन आखिरी समय में यह गुजरात के हाथ लग गया। पिछले दो महीनों में यह चौथा प्रोजेक्ट है, जो महाराष्ट्र की झोली से गया है।

    गुजरात की झोली में गए 1.8 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट

    महाराष्ट्र से गुजरात के पास जाने वाले कुल निवेश की कीमत 1.8 लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसे लेकर विपक्ष महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर बना हुआ है। वहीं मौजूदा सरकार पूर्व सरकार पर दोष मढ़ रही है।

    नितिन गडकरी को नागपुर में थी निवेश की उम्मीद

    केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के औद्योगिक मंत्री उदय सामंत को इस बात की उम्मीद थी कि टाटा-एयरबस का करीब 22,000 करोड़ रुपये का निवेश महाराष्ट्र में आएगा और दोनों कंपनियां नागपुर के मिहान में अपना प्लांट लगाएंगी। इस प्रोजेक्ट से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के 6,000 मौके सृजित होने की उम्मीद है। हालांकि, अब यह निवेश गुजरात चला गया है और यहां की सरकार आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इसे भुनाने की कोशिश करेगी।

    सितंबर में वेदांता-फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट गया था गुजरात

    इससे पहले पिछले महीने 1.54 लाख करोड़ रुपये के निवेश वाला वेदांता-फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट भी महाराष्ट्र से गुजरात गया था। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना आदि विपक्षी पार्टियों ने दावा किया था कि इस प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र पहली पसंद था और कंपनी ने राज्य में जमीन भी देख ली थी। इसके बाद यह निवेश गुजरात कैसे चला गया, इसकी जांच होनी चाहिए। दोनों कंपनियों के इस निवेश से रोजगार के एक लाख अवसर पैदा होने की उम्मीद है।

    महाराष्ट्र के हाथ से निकला ड्रग पार्क

    करीब 3,000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले एक बल्क ड्रग पार्क प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र भी रेस में था। इससे रोजगार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष 50,000 मौके सृजित होने की उम्मीद थी। महाराष्ट्र रायगढ़ जिले की रोहा और मुरुड तहसील में यह पार्क बनाने की कोशिश में लगी थी, लेकिन केंद्र ने 1 सितंबर को महाराष्ट्र को छोड़ते हुए गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में यह पार्क बनने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी।

    मेडिकल डिवाइस पार्क भी नहीं आया हाथ

    सितंबर के ही आखिरी सप्ताह में केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के 424 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले मेडिकल डिवाइस पार्क के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। यह पार्क औरंगाबाद में बनना था। यहां भी महाराष्ट्र के आवेदन को ठुकराते हुए केंद्र सरकार ने तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में मेडिकल डिवाइस पार्क बनाने की मंजूरी दी थी। इस तरह महाराष्ट्र पिछले दो महीनों में चार बड़े प्रोजेक्ट अपनी झोली से गंवा चुका है।

    विपक्ष ने साधा सरकार पर निशाना

    महाराष्ट्र से निवेश और रोजगार के मौके जाने पर राज्य सरकार को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने कहा कि निवेशकों को मौजूदा राज्य सरकार पर भरोसा नहीं है। इसलिए बड़ी परियोजनाएं महाराष्ट्र से बाहर जा रही हैं। वहीं पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि राज्य सरकार को ऐसी परियोजनाओं को बाहर जाने से रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए।

    राज्य सरकार का क्या कहना है?

    महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने विपक्ष को चुनौती देते हुए कहा कि वह एक भी ऐसा दस्तावेज दिखा दें, जिसमें यह बताया गया हो कि टाटा-एयरबस परियोजना महाराष्ट्र में लगनी थी। इसके अलावा राज्य सरकार महाराष्ट्र से बाहर जा रही परियोजनाओं के लिए पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। वेदांता परियोजना पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा था कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने परियोजना के लिए सहयोग नहीं किया था।

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