#NewsBytesExplainer: किसी सांसद की संसद सदस्यता किन-किन कारणों से छिन सकती है?
तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा को पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया। सदन की आचार समिति की रिपोर्ट के आधार पर महुआ के खिलाफ ये कार्रवाई हुई। समिति ने जांच के बाद उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश की थी, लेकिन और भी कई कारण हैं, जिनकी वजह से सदन के सदस्यों की सदस्यता छिनी जा सकती है। आइए ऐसे ही कुछ मुख्य कारणों पर एक नजर डालते हैं।
संसद के दोनों सदनों की सदस्यता पर
संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों, जनप्रतिनिधित्व से जुड़े कानूनों और संसदीय नियमों के तहत संसद से किसी सदस्य को निलंबित किया जाता है। इसके तहत संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा के नियम-कानून तय हैं। अगर कोई व्यक्ति दोनों सदनों के लिए चुन लिया जाता है तो उसे एक निश्चित समयावधि में किसी एक सदन की सदस्यता से इस्तीफा देना होता है। ऐसा न करने पर संविधान के अनुच्छेद 101 के तहत उनकी सदस्यता छीनी जा सकती है।
बिना बताए अनुपस्थित रहने पर
संसद का कोई सदस्य अगर सदन को बिना सूचित किए सभी बैठकों से 60 दिनों की अवधि तक अनुपस्थित रहता है तो उसकी सीट रिक्त घोषित की जा सकती है। इसका सीधा मतलब है कि उस सासंद की सदस्यता रद्द हो जाती है। संविधान के अनुच्छेद 101 के अनुसार, इन 60 दिनों की अनुपस्थिति में उन दिनों को नहीं गिना जाएगा, जिस दौरान संसद का सत्र 4 से अधिक दिनों तक स्थगित हो या सत्र की समाप्ति हो गई हो।
सरकार में अन्य लाभ के पद पर रहने पर
ससंद का कोई सदस्य अगर भारत सरकार या राज्य सरकार में ऐसे पद पर है, जो लाभ के पद की श्रेणी में आता है तो उसकी सांसदी रद्द की जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (A) के तहत संसद के सदस्यों के लिए नियम तय किए गए हैं। इसके किसी भी संसद सदस्य के लिए अन्य लाभ के पद लेने की मनाही है, जहां वेतन, भत्ते और दूसरी तरह के सरकारी लाभ मिलते हैं।
अपनी पार्टी बदलने पर
किसी सांसद की सदस्यता दल-बदल कानून के तहत भी खत्म की जा सकती है। संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, अगर कोई सांसद उस पार्टी की सदस्यता छोड़ता है, जिससे वह चुना गया है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। हालांकि, इस कानून में एक अपवाद है कि अगर एक राजनीतिक पार्टी के सदस्य किसी दूसरे पार्टी में विलय करते हैं और कम से कम 2 तिहाई इसके समर्थन में हो, तो इन सदस्यों की सदस्यता बनी रहेगी।
पार्टी के आदेशों का उल्लंघन करने पर
संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, पार्टी के आदेशों का उल्लंघन करने पर भी संसद सदस्यता रद्द की जा सकती है। इसमें प्रावधान है कि सांसद को अपनी पार्टी की ओर से जारी व्हिप का सम्मान करना होगा। इसके अनुसार, अगर कोई सांसद किसी विषय पर मतदान के दौरान अपनी पार्टी के आदेशों का पालन ना करें या फिर सदन में पार्टी की वोटिंग से अनुपस्थित रहे तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।
जेल की सजा होने पर
लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत अगर कोई सांसद 2 या इससे अधिक साल की सजा पाता है तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। हालांकि, अगर सजा पर कोई कोर्ट लोग लगा दें तो सांसदी बहाल भी हो सकती है। जैसा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले में हुआ। कानून से तहत अन्य मामलों जैसे गलत प्रमाणपत्र के आधार पर चुनाव लड़ना, नफरती भाषण, गंभीर अपराध में दोषी पाए जाने पर भी सदस्यता रद्द हो सकती है।
नागरिकता छोड़ने और दिवालिया होने पर
भारत की नागरिकता छोड़ने और किसी अन्य देश की नागरिकता अपनाने पर भी उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है। संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार, सांसद किसी अन्य देश के प्रति निष्ठावान नहीं हो सकता है। किसी संसद सदस्य के कोर्ट द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित होने पर उसकी सदस्यता छीनी जा सकती है। इसके अलावा किसी सासंद के दीवालिया होने और कोर्ट द्वारा उसे राहत न मिलने पर भी उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।
आचार समिति की जांच के आधार पर
संसद के दोनों सदनों में आचार समितियां भी हैं, जो सांसदों के आचरण संबंधित शिकायतों की जांच कर करती हैं। राज्यसभा में 1997 और लोकसभा में 2000 से ये समितियां काम कर रही हैं। इन समितियों को समय समय पर नियम बनाने और उन्हें संशोधित करने का भी अधिकार है। हाल में तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ की संसद सदस्यता भी लोकसभा की आचार कमेटी की सिफारिश के आधार पर रद्द की गई है।