जम्मू-कश्मीर: प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी की 90 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त
जम्मू-कश्मीर में आज प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की 11 बड़ी संपत्तियों को जब्त कर लिया गया। जिलाधिकारी से अनुमति लेने के बाद राज्य के अनंतनाग जिले में ये कार्रवाई की गई। राज्य जांच एजेंसी (SIA) के अधिकारियों ने पुलिस के साथ मिलकर इन जगहों पर छापा मारा। नोटिस लगाकर इन संपत्तियों के इस्तेमाल और इनमें प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। जब्त की गई संपत्ति की कीमत लगभग 90 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
जमात पर नकेल कसने में लगा हुआ है जम्मू-कश्मीर प्रशासन
जम्मू-कश्मीर प्रशासन पिछले काफी समय से जमात-ए-इस्लामी पर नकेल कसने की कोशिश में लगा हुआ है। SIA ने पूरे जम्मू-कश्मीर में जमात की लगभग 200 ऐसी संपत्तियों की पहचान की है जिनके खिलाफ कार्रवाई की जानी है। शोपियां स्थित इनमें से नौ संपत्तियों के खिलाफ इस महीने की शुरूआत में कार्रवाई की गई थी और उन्हें जब्त कर लिया गया था। इन संपत्तियों को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जब्त किया जा रहा है।
क्या है जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर)?
जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा राजनीतिक-धार्मिक संगठन है और इससे सैकड़ों मदरसे और अन्य सामाजिक संगठन जुड़े हुए थे। यह अधिक प्रसिद्ध जमात-ए-इस्लामी हिंद से बिल्कुल अलग संगठन है और इनका कोई संबंध नहीं है। जमात जम्मू-कश्मीर की राजनीति में भी सक्रिय रहा है, लेकिन 2019 में उस पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी साल जून में उससे जुड़े एक ट्रस्ट के लगभग 300 स्कूलों को बंद कर दिया गया था।
जमात पर क्यों लगाया गया था प्रतिबंध?
जमात पर कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंध लगाया गया था। उस पर आतंकियों को ट्रेनिंग देने, उन्हें फंड प्रदान करने और शरण देने का आरोप है। जमात ने ही हिजबुल मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठन को खड़ा किया था और वह इसका वैचारिक गुरू है। यह संगठन कश्मीर में कई आतंकी हमले कर चुका है। आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल होने के कारण जमात पर 1975 और 1990 में भी प्रतिबंध लग चुका है।
न्यूजबाइट्स प्लस
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल नवंबर की शुरुआत तक कश्मीर में 176 आतंकियों को ढेर किया जा चुका था। इनमें से 126 स्थानीय और 50 विदेशी आतंकी थे। मरने वाले आतंकियों में से अधिकतर लश्कर-ए-तैयबा, द रजिस्टेंस फोर्स, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन से जुड़े हुए थे। आतंकियों ने भी इस साल सुरक्षाबलों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को निशाना बनाया है और कई प्रवासी मजदूरों और अल्पसंख्यकों की हत्या की है।