जम्मू-कश्मीर में गैर कश्मीरियों को वोट डालने का अधिकार देने के क्या मायने हैं?
क्या है खबर?
जम्मू-कश्मीर में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सरकार ने बड़ा कदम उठाया है।
सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाए जाने का फायदा उठाते हुए अब वहां रह रहे अन्य राज्यों के लोगों (गैर कश्मीरियों) को भी चुनाव में वोट डालने का अधिकार दे दिया है।
इस निर्णय ने केंद्र शासित प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों में उथल-पुथल मचा दी है।
आइये जानते हैं कि गैर कश्मीरियों को वोट डालने का अधिकार देने के मायने क्या हैं।
पृष्ठभूमि
मुख्य चुनाव अधिकारी ने क्या की है घोषणा?
जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) हृदेश कुमार ने गुरुवार को कहा कि राज्य में रहने वाले गैर कश्मीरी लोग (कर्मचारी, छात्र, मजदूर आदि) मतदाता सूची में अपना शामिल कराकर वोट डाल सकते हैं। इसके लिए उन्हें निवास प्रमाण पत्र देने की भी जरूरत नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में तैनात सुरक्षाबलों के जवान भी मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकते हैं। ऐसे में वह ड्यूटी पर होते हुए भी मतदान कर सकेंगे।
परिणाम
सरकार की इस घोषणा के क्या होंगे परिणाम?
इस घोषणा से जम्मू-कश्मीर की मतदाता सूची में 25-27 लाख नए मतदाता जुड़ने की संभावना है।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां कुल 78.4 लाख मतदाता था, लेकिन अब लद्दाख के अलग होने के बाद यह संख्या 76.7 लाख रह गई है।
ऐसे में यदि अब 25-27 लाख नए मतदाता जुड़ते हैं तो यहां मतदाताओं की कुल संख्या एक करोड़ के पार पहुंच जाएगी।
बता दें कि यहां 2014 से 2019 के बीच 6.5 लाख नए मतदाता जुड़े थे।
फायदा
गैर कश्मीरियों के वोट डालने से किसको होगा फायदा?
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने से पहले चुनावों में केवल स्थानीय नागरिकों को ही वोट डालने का अधिकार था। गैर कश्मीरी चाहकर भी वोट नहीं डाल पाते थे, जबकि वहां उनकी संख्या बहुत अधिक है।
अब सरकार के निर्णय से वो भी वोट डाल सकेंगे, लेकिन इसका फायदा भाजपा या कांग्रेस को ही होगा।
इसका कारण है कि गैर कश्मीरी लोगों का PDP, नेशनल कान्फ्रेंस सहित अन्य स्थानीय पार्टियों से कोई लगाव नहीं है।
विरोध
स्थानीय राजनीतिक दलों ने शुरू किया निर्णय का विरोध
जम्मू-कश्मीर के स्थानीय राजनीतिक दलों ने सरकार के इस निर्णय का विरोध शुरू कर दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के असली मतदाताओं के समर्थन को लेकर असुरक्षित है और जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात करना चाहती है।
इसी तरह महबूबा मुफ्ती ने कहा कि बाहरी लोगों को मतदाता सूची में शामिल करने के पीछे की मंशा स्पष्ट है कि भाजपा चुनाव परिणामों को प्रभावित करना चाहती है।
बैठक
फारूक अब्दुल्ला ने बुलाई सर्वदलीय बैठक
इस मामले में नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने 22 अगस्त को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।
इसी तरह जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि यह खतरनाक है। ऐसा करना बहुत विनाशकारी होगा।उन्हें नहीं पता कि सरकार क्या हासिल करना चाहती है। 1987 को याद करें। लोग अभी तक इससे बाहर नहीं आए हैं। 1987 को फिर से न दोहराएं।
कारण
क्या राजनीतिक दलों के विरोध का कारण?
दरअसल, स्थानीय राजनीतिक दलों को कश्मीर घाटी में तो सफलता मिल जाती है, लेकिन जम्मू क्षेत्र में उनका कोई जोर नहीं चलता है।
2014 में यहां कुल 83 विधानसभा सीटें थीं। इसमें जम्मू में 37 और कश्मीर घाटी में 46 सीटें थीं। परिसीमन में सात सीटें बढ़ाने के बाद कुल 90 सीटें हो गईं। इसमें जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हैं।
स्थानीय दलों का मानना है कि इस निर्णय से भाजपा राज्य में सरकार बना सकती है।
जानकारी
जम्मू क्षेत्र में रहा है भाजपा का बोलबाला
जम्मू क्षेत्र में शुरू से ही भाजपा का बोलबाला रहा है। 2014 के चुनाव में जम्मू की 37 में से 25 सीटें भाजपा ने जीती थीं। स्थानीय दलों को डर है कि गैर कश्मीरियों के वोट डालने से प्रदेश में उनका एकाधिकार खत्म हो जाएगा।
निष्कर्ष
सरकार के इस निर्णय के क्या है मायने?
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो सरकार इस निर्णय के जरिए कश्मीर घाटी में अपना वोट शेयर बढ़ा रही है। यदि इससे कश्मीर में भाजपा को दो-चार सीटों का भी लाभ मिलता है तो वह जम्मू क्षेत्र में कायम अपने प्रभाव के दम पर सत्ता हासिल कर सकती है।
हालांकि, इस निर्णय के बाद हालात बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। इसका कारण है कि द लश्कर-ए-तैयबा समर्थित आतंकी समूह कश्मीर फाइट ने गैर कश्मीरियों पर हमलों की धमकी दी है।