नागरिकता संशोधन बिल को पहली कानूनी चुनौती, सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका
क्या है खबर?
नागरिकता कानून में मोदी सरकार के संशोधनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहली याचिका दायर हो गई है।
केरल की राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने नागरिकता (संशोधन) बिल को चुनौती देते हुए ये याचिका दायर की है। IUML के संसद में चार सांसद हैं।
याचिका में संशोधनों को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। इन्हें धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया गया है।
याचिका
क्या कहा गया याचिका में?
अपनी याचिका में IUML ने कहा है, "संशोधन लोगों को धर्म के आधार पर अलग करता है और अगर वो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं तो उन्हें फायदा पहुंचाता है।"
इसमें कहा गया है कि ये बंटवारा न केवल अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है बल्कि संविधान के बुनियादी ढांचे और सभी धर्म के लोगों के साथ बराबरी का व्यवहार करने के भारत के विचार के ही खिलाफ है।
जानकारी
अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का किया गया जिक्र
याचिका में बिल के दायरे से बाहर रखे गए अन्य धार्मिक अल्पसंंख्यकों जैसे कि अहमदिया, शिया और हजारा का भी जिक्र किया गया है जिन पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लगातार अत्याचार होते हैं।
जानकारी
क्या है नागरिकता संशोधन बिल?
नागरिकता (संशोधन) बिल के जरिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन किया जाएगा।
प्रस्तावित संशोधन से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार का सामना कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ होगा।
इन धार्मिक शरणार्थियों को छह साल भारत में रहने के बाद ही भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी।
अभी भारत की नागरिकता हासिल करने से पहले 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है।
जानकारी
31 दिसंबर, 2014 तक शरणार्थियों को दी जाएगी भारतीय नागरिकता
बिल के तहत, इन तीन देशों से 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत का नागरिकता दे दी जाएगी, वहीं इसके बाद आए शरणार्थियों को छह साल रहने के बाद नागरिकता मिलेगी।
विरोध
इस कारण हो रहा बिल का विरोध
बिल के दायरे से मुस्लिम समुदाय के लोगों को बाहर रखने के कारण विपक्षी पार्टियां इसे लेकर सवाल उठा रही हैं। उन्होंने इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया है।
इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों में भी बिल का जबरदस्त विरोध हो रहा है। इन राज्यों में घुसपैठ की समस्या को धर्म की नजर से नहीं देखा जाता और उनके लिए बाहर से आए सभी लोग समान हैं चाहें वो किसी भी धर्म के क्यों न हो।
संसद
संसद से पारित हुआ बिल, अब बस राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना बाकी
बिल सोमवार को लोकसभा से पारित हुआ था जिसके बाद बुधवार को इसे राज्यसभा में पेश किया गया।
बिल राज्यसभा से भी 105 के मुकाबले 125 वोटों से पारित होने में कामयाब रहा।
अब इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास जाएगा।
बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये कानून का रूप लेगा।
इस बीच इसे सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ती पड़ सकती है जिसकी शुरूआत IUML की याचिका के साथ हो गई है।